मुरझाते-हुए-महुआ-बर्बाद-होती-टोकरियां-और-ख़ामोश-हाट

Dhamtari, Chhattisgarh

Apr 26, 2020

मुरझाते हुए महुआ, बर्बाद होती टोकरियां और ख़ामोश हाट

कोविड-19 लॉकडाउन ने छत्तीसगढ़ में रहने वाले कामर समूह, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, जो टोकरियां बुनकर और महुआ के फूल बेचकर चंद रूपए कमाता है, की नाज़ुक अर्थव्यवस्था को तार-तार कर दिया है

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Author

Purusottam Thakur

पुरुषोत्तम ठाकुर, साल 2015 के पारी फ़ेलो रह चुके हैं. वह एक पत्रकार व डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर हैं और फ़िलहाल अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के लिए काम करते हैं और सामाजिक बदलावों से जुड़ी स्टोरी लिखते हैं.

Translator

Neha Kulshreshtha

नेहा कुलश्रेष्ठ, जर्मनी के गॉटिंगन विश्वविद्यालय से भाषा विज्ञान (लिंग्विस्टिक्स) में पीएचडी कर रही हैं. उनके शोध का विषय है भारतीय सांकेतिक भाषा, जो भारत के बधिर समुदाय की भाषा है. उन्होंने साल 2016-2017 में पीपल्स लिंग्विस्टिक्स सर्वे ऑफ़ इंडिया के द्वारा निकाली गई किताबों की शृंखला में से एक, भारत की सांकेतिक भाषा(एं) का अंग्रेज़ी से हिंदी में सह-अनुवाद भी किया है.