"चऊदह, सोला, अठारह..." खांडू माने ह अठ्ठ्या के पीठ मं लदय बोरा के झोला मं रखाय कइनचा ईंटा ला गिने ला बंद कर देथे, अऊ गधा ला चले सेती कहिथे, “चल...फर्र...फर्र“. अठ्ठ्या अऊ दू दीगर ईंटा ले लदे गधा मन भट्टा डहर जेन ह करीबन 50 मीटर दुरिहा होही रेंगे ला धरथें. ये ईंटा मं ला उहाँ जराय बर उतारे जाही.

खांडू कहिथे, “एक घंटा अऊ फेर हमन सुस्ताबो.” फेर अभू त बिहनिया के 9 बजे हवय! हमर अकबकाय चेहरा ला देखत वो हा बताथे, “हमन रात के एक बजे अंधियार मं सुरु करेन. हमर पारी बिहनिया 10 बजे खतम हो जाथे. रातभर ले ये हा चलत रहिथे (रातभर हे असाच चालू आहे)

खांडू के चार गधा खाली झोला ले के भट्टी ले लहूँटे हवंय. वो हा फिर ले गिने ला सुरु कर देथे "चऊदह, सोला, अठारह..."

फेर अचानक, "रुको..." वो अपन एक गधा ला हिंदी मं कहिथे. “हमर इहाँ के गधा मन मराठी भासा ला समझथें, फेर ये ह नई समझय. ये ह राजस्थान के आय. हमन ला वोला हिंदी मं पुकारे ला परथे,” ठहाका मार के वो ह कहिथे. अऊ वो हा हमन ला ये दखाय बर आगू आथे: रुको. गधा रुक गीस. चलो. रेंगे ला धरिस.

खांडू के मया अपन ये चौपाया संगी मन बर साफ झलकत रहिस. “लिंबू अऊ पंढरिया चरत हवंय, अऊ ये मोर पसंद के सवारी आय. वो हा लंबा, सुंदर अऊ सुपरफास्ट आय!”

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खांडू माने सांगली सहर के बाहरी इलाका मं सांगलीवाड़ी के जोतिबा मंदिर इलाका के तीर के एक ठन ईंट भठ्ठा मं अठ्ठ्या के पीठ मं ईंटा मं ला जोरत हवय

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डेरी : कर्नाटक के बेलगाम जिला के अथानी तालुका के जोतिबा मंदिर , विलास कुडाची अऊ रवि कुडाची के तीर भठ्ठा मं , कुसियार के छुही  ला उठातवत , येला ईंट बनाय मं बऊरे जाही. जउनि : लदाय ईंटा ला गिराके अऊ ईंटा लेगे बर लहुंटत गधा मन

हमन वो मन ले महाराष्ट्र के सांगली सहर के बाहरी इलाका सांगलीवाड़ी के तीर एक ठन भठ्ठा मं मिलेन. जोतिबा मंदिर के तीर तखार मं ईंटा भठ्ठा मन ले भरे हवय – हमन गिनती करेन करीबन 25 ठो.

पेराय कुसियार के महमहावत सुक्खा छुही – जेकर ले ईंटा मन ला पकाय बर जराय जाथे-भठ्ठा मन ले कुंहरत निकरत हवा हा बिहनिया के हवा मं मेंझर जाथे. हरेक भठ्ठा मन मं हमन मरद, अऊरत, लइका अऊ गधा मन ला घड़ी का कलपुरजा बरोबर बूता करत देखे रहेन. कुछेक मन माटी सानत रहंय, दिगर मन ईंटा बनावत रहेंय, कुछेक मन जोरत रहेंय अऊ दिगर मन उतारत अऊ जमावत रहंय.

गधा मन आथें अऊ चले जाथें, दू के जोड़ मं...चार...छह...

खांडू कहिथे, “हमन पुरखा ले गधा मन ला पालत हवन. मोर दाई ददा करिन, मोर डोकरा ददा-डोकरी दई मन करिन, अब मंय करत हवंव.” मूल रूप ले सोलापुर जिला के पंढरपुर ब्लॉक के सांगली सहर ले करीबन 50 कोस (150 किलोमीटर) दूरिहा - खांडू, ओकर परिवार अऊ ओकर गधा मन हरेक बछर ईंट-भट्ठा के मौसम बखत (नवंबर-दिसंबर ले अप्रैल-मई तक ले) अपन गांव वेलापुर से सांगली चले आथें.

हमन देखेन, खांडू के घरवाली माधुरी ह भट्टी के बूता मं लगे रहिस, गधा मन के लाय गदोय कइनचा ईंटा मन ला उतारे अऊ ढेरी बनाय मं. ये जोड़ा के नोनी मन, कल्याणी, श्रद्धा अऊ श्रावणी जेन ह 9 ले 13 बछर के आंय, गधा मन के संग चलत रहिन, ओकर ठिकाना तक ले के जावत रहिन. ये मन का भाई जेकर उमर 4-5 बछर के आय, अपन ददा करा बिस्कुट अऊ चाहा धरके बईठे हवय.

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डेरी : माधुरी माने कुढोय एक जोड़ी ईंटा ला दिगर मजूर डहर फेंक के देथे ,जेन ह वोला रंचत जाथे. जउनि : माधुरी अऊ ओकर लईका मन भठ्ठा मं बने कुरिया मं .जेन ह अलवा जलवा बने अऊ टपरा ले छवाय हवय. न तो इहाँ सौचालय हवय अऊ न तो दिन मं बिजली

माधुरी कहिथे, "श्रवणी अऊ श्रद्धा सांगली के एक ठन आवासीय इस्कूल मं पढ़थें, फेर हमन अपन मदद सेती उहाँ ले अब बहिर लाय ला परिस." वो हा एक घाव मं दू ठन ईंटा फेंके सकथे. वो हा कहिथे, “हमन अपन सहायता सेती एक जोड़ा ला कम मं रखे रहेन. वो मन 80 हजार रुपिया एडवांस ले के भाग गीन. अब हमन ला ये सब ला अवेइय्या दू महिना मं खतम करे बर हवय. फिर वो ह जल्दीच कम मं लहुंट गेय.

माधुरी जेन एक ईंटा ला उतारत हवय तेकर वजन कम से कम दो किलो हवय. ये ला वो हा टेकर कोति फेंकथे जेन ह रंचाय ईंटा मन के ऊपर ठाढ़े हवय.

"दस, बारह, चऊदह..." वो ह गिनथे, वोला तेजी ले धरे बर झुकथे, अऊ वो ईंटा मन ला रंचे मं लगा जाथे जेन ह आगि धरा य ला अगोरत हवय.

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रोजेच, आधा रतिहा ले बिहनिया 10 बजे तक ले खांडू, माधुरी अऊ ओकर लईका मन मिलके 15,000 ईंटा चढ़ाथें अऊ उतारथें. ये ला ओकर 13 ठन गधा मं ले जाय जाथे,जेन मन के हरेक के वजन एक दिन मं 2,300 किलो के आसपास रहिथे. जानवर एक चरवाहा के संग चलथे,सब्बो मिलाके 4 कोस (12 किलोमीटर).

खांडू के परिवार ह हजार ईंटा पाछू 200 रुपिया कमाथे. जेन ला ईंट भट्ठा मालिक डहर ले दे गेय 6 महिना के एडवांस मं काट लेय जाथे. पाछू के सीजन मं खांडू अऊ माधुरी ला 2.6 लाख रुपिया मिले रहिस. हरेक गधा पाछू 20 हजार रुपिया.

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माधुरी अऊ ओकर घरवाला खांडू (पीला टी-शर्ट मं) अपन गधा मन ले डोहारे ईंटा मन ला उतारके, रंचेइय्या मन ला देथें

सांगली ले 25 कोस (75 किलोमीटर) दुरिहा कोल्हापुर जिला के बामबावड़े मं दू ईंट भठ्ठा के मालिक विकास कुंभर कहिथे, “हमन आम तौर ले जानवर पाछू 20 हजार देथन अऊ सब्बो एडवांस मं.” वो ह कहिथे, जतके गधा ओतके आगू .

आखिरी हिसाब किताब 6 महिना मं डोहारे गेय जम्मो ईंटा ले करे जाथे, ये मं ओकर एडवांस अऊ दिगर खर्ची ला काटके. विकास कहिथे, “हमन ओकर बनाय के, घर खरचा सेती हफ्ता मं देय (200-250 रुपिया हरेक परिवार) अऊ कऊनो दीगर खरचा.” वो हा कहिथे, अऊ कउनो ये सीजन मं लेय एडवांस के जतक बूता नई कर सकेंय त वोला अवेइय्या सीजन के करजा मं राख देय जाथे. खांडू अऊ माधुरी जइसन कुछेक लोगन मन मदद सेती अपन एडवांस के रकम के एक हिस्सा अलग रखे हवंय.

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ये इलाका मं काम करेइय्या पशु कल्याण संगठन एनिमल राहत के एक ठन फील्ड वर्कर ह कहिथे, ''सांगली जिला मं कृष्णा नदी के किनारा पलुस ले म्हैसाल के मंझा मं करीबन 450 ईंट भठ्ठा हवंय.'' सांगलीवाड़ी 26-28 कोस आसपास (80-85 किलोमीटर) के ये नदी किनारा के मंझा मं पड़थे. ओकर एक ठन संगवारी कहिथे, “भठ्ठा मन मं 4,000 ले जियादा गधा काम मं लगे हवंय.” गधा मन के स्वास्थ्य के जांच सेती दू ठन टीम घड़ी के घड़ी इहाँ आथे. ओकर संगठन एक ठन आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा घलो चलाथे, अऊ जानवर मन के देखभाल करथे.

ये दिन के पारी के आखिर मं हमन देखेन के बनेच अकन गधा जोतिबा मंदिर के तीर के नदी डहर भागत जावत हवंय. मोटरसइकिल अऊ सइकिल मं सवार जवान टूरा चरवाहा मन वो मन ला चराय ले जावत रहिन. ये मन जियादा करके कचरा के ढेरी मं मैला खाथें अऊ ओकर चरवाहा मन संझा के ओलियाय ला ले आथें. वइसे खांडू, माधुरी अऊ गधा रखेईय्या दिगर मन के कहना रहिस के वो मन अपन जानवर ला चारा देथें, फेर ये हा कहूँ देखे मं नई आइस.

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डेरी : गधा मन के एक ठन गोहड़ी ला ओकर चरवाहा चराय ले जावत हवय , जेन ह अपन मोटरसइकिल मं बइठे वो मन ला खेदत जावत हवय. जउनि: जगू माने के देय दवई के सुजी लगावत पसु इलाज मं मदद करेइय्या गैर सरकारी संगठन के एक झिन कार्यकर्ता

45 बछर के जनाबाई माने कहिथे, “हम अपन मवेशी मन ला घास अऊ कडबा (रक्सी के सुक्खा ढेंठा) खवाय बर हर बछर दू गुंठा (करीबन 0.05 एकड़) खेत भाड़ा मं लेथन.” भाड़ा 2,000 रुपिया (छह महिना के)." फेर, देखव, हमर जिनगी इहिचे मन के ऊपर आसरित हवय. फेर ये मन ला खाय ला नई देबो त हमन ला बने खाय ला कइसे मिलही?”

जब वो हा अपन टपरा छानी वाले कुरिया मं हमन ले गोठीयावत अपन मंझनिया के खाय ला खतम करत रहिस. अलवा-जलवा ईंटा ले बने ओकर कुरिया के भुईंया तजा गोबर ले लिपाय रहिस. वो ह जोर देके कहिथे हमन प्लास्टिक के चटाई मं बइठथन. जनाबाई कहिथे, “हमन फलटन (सितारा जिला) ले अन, फेर मोर गधा मन बर उहाँ कऊनो काम नई ये. एकरे सेती हमन इहाँ सांगली मं पाछू के 10-12 बछर ले बूता करत हवन. “जिहां मिलिस काम, उहाँ हमन” (जिथे त्यान्ना काम, दशमांश अम्ही). जनाबाई के सात झिन के परिवार साल भर सांगली मं रहिथे, खांडू अऊ ओकर परिवार के उल्टा, जेन ह समे आय ले इहाँ आथे.

जनाबाई अऊ ओकर परिवार हालेच मं सांगली सहर के बाहरी इलाका मं 2.5 गुंठा जमीन (करीब 0.6 एकड़) बिसोय हवय. “बार-बार अवेइय्या पूर मं मोर मवेशी मन बर जानलेवा होथे. तेकरे सेती हमन पहाड़ मं जमीन बिसोयेन. हमन अइसने घर बनाबो जेन मं तरी तल्ला मं गधा मन रहीं अऊ ऊपर मं हमन.” वो हा कहिथे ओकर पोता आथे अऊ ओकर गोदी मं बइठ जाथे, खुस दिखत हवय. वो ह छेरी घलो पाले हवय, जब वो मन चारा ला अगोरत रहिन, हमन वोकर मेमियात ला सुन सकत रहेन. जनाबाई खुस ओके के कहिथे, मोर बहिनी ह मोला एक ठन छेरी देय रहिस. अब मोर करा 10 ठन हवंय.

"अब गधा मन ला पाले पोसे मं दिक्कत होवत जात हवय,” वो हा कहिथे. “हमर करा 40 ठन रहिस जेन मं गुजरात ले लाय एक ठन के दिल के दौरा परे ले मर गे. हमन वोला बचाय नई सकेन.” अब वो मन करा 28 ठन गधा हवंय. सांगली के एक झिन पशु चिकित्सक हर छह महिना मं एक धन दू घाओ जानवर मन ला देखे बर आथे, फेर पाछू के सिरिफ तीन महिना मं परिवार ह चार गधा ला गंवा दीन-तीन के मऊत कऊनो जहर के सेती होय रहिस जेन ला वोमन चरत खाय रहिन अऊ एक ठन हादसा मं. "मोर दाई-ददा के पीढ़ी ह जरी-बूटी के दवई मं ला जानत रहिस. फेर हमन नईं करन,” जनाबाई कहिथे. "अब हमन बस एक दुकान मं जाथन अऊ दवा मन के बोतल बिसो लेथन."

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डेरी : जनाबाई माने अऊ ओकर परिवार करा  सांगली मं 28 ठन गधा हवंय. ‘अब गधा मन ला पाले पोसे मं दिक्कत होवत जात हवय.’ जउनि : ओकर बेटा सोमनाथ माने दिन के बूता सुरु करे के पहिले गधा मन के जांच करथे

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महाराष्ट्र मं, गधा मन ला कैकाडी, बेलदार, कुम्भर अऊ वदर समेत कतको समाज मन पाल-पोसथें अऊ च्रराथें. कैकाडी समाज-जेकर ले खांडू, माधुरी अऊ जनाबाई आथें - ये ह अंगरेज मन डहर ले 'अपराधी' घोसित खानाबदोश आदिवासी मन ले एक ठन रहिस. 1952 मं औपनिवेशिक आपराधिक जनजाति अधिनियम ला खतम करे जय के बाद ये मन ला अधिसूचित कर दे गेय रहिस, फेर आज तक ले ये मं ला ये कलंक के सामना करे ला परथे अऊ समाज मं ये मन ला संदेह के नजर मं देखे जाथे. पुरखा ले कैकाडी लोगन मन टुकना अऊ बहिरी बनावत रहिन. विदर्भ इलाका के आठ जिला मन ला छोड़के, जिहाँ ये ला अनुसूचित जाति के रूप मं वर्गीकृत करे गे हवय, ये समाज ला अब महाराष्ट्र के जियादतर हिस्सा मं विमुक्त जाति (विमुक्त जनजाति) के रूप मं सूचीबद्ध करे गे हवय.

कतको कैकाडी जेन मन गधा ला पशुधन के रूप मं पालथें, तऊन मन ये जानवर ला पुणे जिला के जेजुरी धन अहमदनगर जिला के मढ़ी ले बिसोथें. कुछेक मन गुजरात अऊ राजस्थान के गधा बजार मन मं घलो जाथें. जनबाई कहिथे, "एक जोड़ी के दाम 60,000 ले 120,000 रुपिया हवय.” वो हा जानवर के उमर के जिकर करत कहिथे, “उदन्त गधा के दाम सबले जादा होथे.” वो हा आगू बताथे के जानवर के उमर के पहिचान ओकर दांत ले करे जाथे. गधा के पहिली दांत जनम के कुछेक हफ्ता मं जामे ला धरथे, फेर वो हा धीरे-धीरे गिरत जाथे अऊ पांच बछर के आसपास के उमर मं स्थायी जवान दांत मं बन जाथे.

ये चिंता के बात आय के पाछू के एक दसक मं भारत के गधा मन के अबादी भारी घटत जावत हवय. 2012 अऊ 2019 के मंझा मं , ओकर संख्या 61.2 फीसदी गिर गे – 2012 के पसुधन जनगणना मं दरज 3.2 लाख गधा मन ले, 2019 मं 1.2 लाख तक. ये हा महाराष्ट्र मं गधा मन के दूसर सबले बड़े आबादी आय - 2019 पशुधन गणना के मुताबिक 17,572 - ये बखत मं अबादी मं 40 फीसदी के आसपास कमी आय रहिस.

ये तेज गिरावट ह ब्रुक इंडिया अऊ एक गैर-लाभकारी पशु कल्याण संगठन ह पत्रकार शरत के वर्मा ला खोजी अध्ययन बर प्रेरित करिस. ओकर ये रिपोर्ट ये गिरावट के कतको कारन के पहिचान करथे – जानवर मन के कम होवत उपयोग, वोला पाले-पोसे ले बहिर जावत समाज, मसिनीकरन, चरी-चरागान मं कमी, अवैध हत्या अऊ चोरी.

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डेरी : एक ठन चरवाहा अपन गधा ला सहलावत. जउनि : मिराज कस्बा के लक्ष्मी मंदिर इलाका मं एक भठ्ठा मं ईंटा उतारत एक झिन मजूर

ब्रुक इंडिया सांगली के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर डॉ. सुजीत पवार कहिथे, ''रकसहूँ दिग के राज मन मं, खासकर के आंध्र प्रदेश के गुंटूर इलाका मं गधा के गोस के मांग हवय.” वर्मा के अध्ययन मं कहे गे हवय के गोस सेती गधा मन के अवैध कतल आंध्र के कतको जिला मं बड़े पइमाना मं होथे. सस्ता होय ला छोड़ के, माने जाथे के एकर गोस हा दवा के काम करथे अऊ मरद मन के मरदानगी बढ़ाथे.

पवार कहिथे, समे समे मं गधा के चमड़ी के तस्करी करके चीन ला भेजे जाथे. ये ह पारंपरिक चीनी दवा बर जरूरी जिनिस आय जेन ला 'इजियाओ' कहे जाथे अऊ एकरे सेती एकर बहुत मांग हवय. ब्रुक इंडिया के जारी रिपोर्ट गधा मन के कतल अऊ चोरी के बीच के एक ठन कड़ी ला बताथे. जेकर सार ये आय के चीन ले मांग के सेती गधा के चोरी छिपे बेपार मं बढ़ोत्तरी, इही कारन आय के भारत मं ये जानवर नंदाय जावत हवय.

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45 बछर के बाबासाहेब बबन माने ह छे बछर पहिली अपन सब्बो 10 गधा ला चोरी मं गँवा दीस. “तब ले मंय, ईंटा कुढ़ोवत हवंव, पहिली ले कम कमावत हवंव.” गधा ले ईंटा डोहारे मन ला हजार ईंटा पाछू 200 रुपिया अऊ ईंटा रचेइय्या मन ला सिरिफ 180 रुपिया. (एला छोड़ के 20 रुपिया जादा गधा मालिक मन ला चारा बर घलो देय जाथे, माधुरी ह हमन ला बाते रहिस). हमन बाबासाहेब ले मिराज सहर के लक्ष्मी मंदिर इलाका के तीर बसे सांगलीवाड़ी ले 4 कोस (12 किलोमीटर) दुरिहा एक भठ्ठा मं मिले रहेन. वो हा कहिथे, “गधा ले ईंटा डोहरेइय्या एक झिन के एक पईंत म्हैसल फाटा ले ओकर एक कोरी (20) गधा मन के चोरी हो गीस.” ये भठ्ठा ले 3 कोस दुरिहा होय एक ठन अऊ चोरी ला सुरता करत कहिथे. “मोला लागथे के वो मन जानवर मं ला नसा खवा देथें अऊ अपन गाड़ी मं धर के रेंग देथें.” दू बछर पहिली, जनाबाई के सात ठन गधा के चोरी हो गेय रहिस.

महाराष्ट्र के सांगली, सोलापुर, बीड अऊ दिगर जिला मं गधा मन के चोरी बाढ़त हवय, जेकर सेती  बाबासाहेब अऊ जनाबाई जइसने चरवाहा मन ला नुकसान होवत हवय, जेकर आमदनी गधा गोहड़ी के ताकत ऊपर आसरित हवय. मिराज के ईंट भठ्ठा मं बूता करेइय्या जगू माने कहिथे, ''चोर मन मोर गोहड़ी ले पांच ठन गधा ला चुरा लीन.'' जेकर ले मोला करीबन 2 लाख के नुकसान होईस. "मंय ये नुकसान ले कइसने उबरहूँ?"

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डेरी : बाबू विट्ठल जाधव (पीला कमीज मं) मिराज मं भठ्ठा मं ईंटा के ढेरी मं सुस्तावत. जउनि : कैकडी समाज के 13 बछर के लईका रमेश माने घास अऊ सूक्खा ढेंठा परे एक ठन खेत मं अपन गधा मं ला चरत देखत

फेर पवार ला लागथे के गधा के मालिक मन ला घलो संतोस हवय, वो दिन भर खुल्ला छोड़ देथें अऊ ओकर ऊपर ककरो नजर नई रहय. कऊनो सुरक्छा नई ये. बूता के बखत होय ला धरे लेच अपन गधा मन ला लेके आथें. एकर बीच मं कुछु हो जाथे, त ओकर देखेइय्या कऊनो नई ये.”

बाबासाहेब ले गोठियावत, हमन देखेन के बाबू विट्ठल जाधव अपन चार ठन गधा ले ईंटा उतारे सेती लावत हवय. 60 बछर के बाबू, जेन ह घलो कैकडी समाज ले आथे, बीते 25 बछर ले ईंटा भठ्ठा मन मं बूता करत हवय. मूल रूप ले सोलापुर जिला के मोहोल ब्लॉक के पटकुल के बासिंदा आय, ओ हा बछर भर मं छह महिना सेती मिराज मं आथे. वो हा थके मांदे दिखते अऊ बइठ जाथे. बिहनिया के 9 बजत हवय, बाबासाहेब अऊ दू माईलोगन मन के संग चुटकुला सुनावत हवय, बाबू दिन मं अराम करथे, काबर के ओकर घरवाली काम ला संभाल लेथे. ओकर करा छै ठन गधा हवंय, जेन मन दुबराय अऊ जियादा काम वाले दिखथें. दू ठन के गोड़ मं चोट लगे हवय. ओकर पारी खत्म होय मं दू घंटा लागही.

महिना मं सिरिफ एक दिन के छुट्टी - अमावस मं - हरेक कऊनो थक जाथे अऊ अराम चाहथे. जोतिबा मंदिर मं माधुरी हमन ले पूछथे, “फेर हमन छुट्टी लेबो त ईंटा पकोय बर कऊन ले के जाही? वो हा कहिथे, फेर हमन सुक्खा ईंटा ला नई ले जाबो, त नवा ईंटा धरे ला कऊनो जगा नई ये, एकरे सेती हमन छुट्टी नई ले सकन. छै महिना मं अमावस एकेच छुट्टी आय,” वो हा कहिथे. अमावस मं भठ्ठा बंद रहिथे काबर के येला अशुभ माने जाथे. एला छोड़ के हिन्दू तिहार के तीन छुट्टी मिलथे: शिवरात्रि, शिमगा (होली) अऊ गुड़ी पड़वा (नवा बछर ).

मंझनिया तक ले बनेच मजूर मन भठ्ठा के तीर बने अपन कुरिया मन मं लहूँट के आ गे हवंय. श्रावणी अऊ श्रद्धा तीर के एक ठन नल मं कपड़ा धोय ले गे हवंय. खांडू माने गधा मन ला चराय बर बहिर लेके गे हवय. माधुरी अब अपन परिवार बर रांधही अऊ ये भारी गरमी मं सोय के कोसिस करही. भठ्ठा दिन भर बर बंद रहिथे. “पइसा (कमई) बने हवय, अऊ हमर करा खाय बर भरपूर हवय,” माधुरी कहिथे, “फेर सूते नई सकंव तुमन जानत हवव.”

रितायन मुखर्जी ह सरा देस मं घूम-घूमके ख़ानाबदोश चरवाहा समाज मनके ऊपर रिपोर्टिंग करथे. एकर बर वोला सेंटर फ़ॉर पेस्टोरलिज़्म डहर ले एक स्वतंत्र यात्रा अनुदान मिले हवय. सेंटर फ़ॉर पेस्टोरलिज़्म ह ये रिपोर्ताज के बिसयवस्तु ऊपर कउनो संपादकीय रोक नई रखे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Photographs : Ritayan Mukherjee

Ritayan Mukherjee is a Kolkata-based photographer and a PARI Senior Fellow. He is working on a long-term project that documents the lives of pastoral and nomadic communities in India.

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Text : Medha Kale

Medha Kale is based in Pune and has worked in the field of women and health. She is the Marathi Translations Editor at the People’s Archive of Rural India.

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Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

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