आदिवासी-विश्वदृष्टि-और-चंद्रमैन

Narmada, Gujarat

May 13, 2022

आदिवासी विश्वदृष्टि और 'चंद्रमैन'

गुजरात के नर्मदा ज़िले का एक आदिवासी कवि अपनी पांच कविताओं की एक शृंखला में आदिवासी समुदायों के जिए अनुभवों और मान्यताओं को बयान करता है. पेश है उस शृंखला की दूसरी कविता

Poem and Text

Jitendra Vasava

Illustration

Labani Jangi

Translator

Devesh

Want to republish this article? Please write to [email protected] with a cc to [email protected]

Poem and Text

Jitendra Vasava

गुजरात के नर्मदा ज़िले के महुपाड़ा के रहने वाले जितेंद्र वसावा एक कवि हैं और देहवली भीली में लिखते हैं. वह आदिवासी साहित्य अकादमी (2014) के संस्थापक अध्यक्ष, और आदिवासी आवाज़ों को जगह देने वाली एक कविता केंद्रित पत्रिका लखारा के संपादक हैं. उन्होंने वाचिक आदिवासी साहित्य पर चार पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं. वह नर्मदा ज़िले के भीलों की मौखिक लोककथाओं के सांस्कृतिक और पौराणिक पहलुओं पर शोध कर रहे हैं. पारी पर प्रकाशित कविताएं उनके आने वाले पहले काव्य संग्रह का हिस्सा हैं.

Illustration

Labani Jangi

लाबनी जंगी साल 2020 की पारी फ़ेलो हैं. वह पश्चिम बंगाल के नदिया ज़िले की एक कुशल पेंटर हैं, और उन्होंने इसकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हासिल की है. लाबनी, कोलकाता के 'सेंटर फ़ॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज़' से मज़दूरों के पलायन के मुद्दे पर पीएचडी लिख रही हैं.

Translator

Devesh

देवेश एक कवि, पत्रकार, फ़िल्ममेकर, और अनुवादक हैं. वह पीपल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया के हिन्दी एडिटर हैं और बतौर ‘ट्रांसलेशंस एडिटर: हिन्दी’ भी काम करते हैं.