धड़गांव इलाका के अकरानी तालुक़ा मं तिपत मझंनिया शेवंता तड़वी अपन मुड़ ला लुगरा के पल्लू ले तोपे छेरी मन के नानकन गोहड़ी के पाछू भागत रहय. जब कऊनो छेरी पिल्ला झाड़ी मन मं घुसय धन ककरो खेत मं घुसे के कोसिस करय, त वो ह भूईंय्या मं लऊठी ला पटकत वो ला गोहड़ी मं लहूँटा लाथे. वो ह मुचमुचावत कहिथे, “मोला ये मन के ऊपर भारी नजर रखे ला परथे, नान कन मन जियादा उतइल आंय, वो मन कऊनो डहर भाग जाथें, अब त ये मन मोर लइका जइसने आंय.”

वो ह जंगल डहर जावत हवय जऊन ह नंदुरबार जिला के हरणखुरी गांव के ‘महाराजपाड़ा’ बस्ती के ओकर घर ले एक कोस ले जियादा (चार किलोमीटर) दूरिहा हवय. इहाँ वो ह अपन छेरी मन के संग, चहचहावत चिरई-चिरगुन मन के संग अऊ हवा ले झूंपत रुख मन के मंझा मं अकेल्ला रहिथे अऊ अपन मन के जिये ला अजाद हवय. वो ह वनज़ोटी (बाँझ), दलभद्री (हतभागी) अऊ दुष्ट (टोनही) जइसने ताना ले अजाद हवय, जऊन ह बिहाव के 12 बछर मं रोज देय जाय.

शेवंता सवाल करे जइसने कहिथे, “जऊन मरद लइका नई जन्माय सकय, ओकर बर अइसने अपमान के भाखा काबर नई बने हवंय?”

अपन जिनगी के 25 बछर गुजार चुके शेवंता (असल नांव नई) बिहाव के बखत सिरिफ 14 बछर के रहिस. ओकर 32 बछर के घरवाला रवि खेत मजूर आय, जऊन ह बूता मिले ले 150 रुपिया रोजी कमा लेथे. वो ह दरूहा घलो आय. महाराष्ट्र के आदिवासी मन के इलाका के जिला मं रहेइय्या ये लोगन मन भील आदिवासी समाज के आंय. वो ह खांध ला उचकावत कहिथे, “ये कऊनो नवा बात नई ये. मंय वोला लइका नई देय सकंव. डॉक्टर ह कहे रहिस के मोर कोख मं दिक्कत हवय, येकरे सेती मंय दूसर बेर महतारी नई बन सकंव.”

2010 मं धड़गांव के सरकारी अस्पताल मं शेवंता के गरभपात बखत ये पाय गेय रहिस के शेवंता ला पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) हवय, शेवंता के हिसाब ले येकर मतलब खराब कोख होथे. वो ह तऊन बखत सिरिफ 15 बछर के रहिस अऊ वो हा तीन महिना के गरभ ले रहिस.

When Shevanta Tadvi is out grazing her 12 goats near the forest in Maharajapada hamlet, she is free from taunts of being 'barren'
PHOTO • Jyoti Shinoli

शेवंता जब महाराजपाड़ा बस्ती मं जंगल तीर अपन 12 ठन छेरी मन ला चराय ला बहिर मं रहिथे, तऊन समे वो ह ‘बांझ’ जइसने ताना ले अजाद रहिथे

पीसीओएस ह हार्मोन से जुरे एक ठन विकार आय, जऊन ह जनम करे के उमर मं कुछेक माईलोगन मन ला होथे. येकर ले वो मन ला अजीब, बेबखत धन लम्बा बखत तक ले महवारी होथे, बढ़े एण्ड्रोजन (मरद-हार्मोन) के स्तर अऊ बढ़े अंडाशय के संग अंडा के तीर मं गर्भाशयी पुटक (फ़ॉलिकल) होथे. ये विकार ले बांझपन, गर्भपात अऊ समे ले पहिली जचकी जइसने दिक्कत हो सकत हवय.

मुंबई मं भारत के प्रसूति अऊ स्त्रीरोग संबंधी संघ (फ़ेडरेशन ऑफ आब्स्टेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसायटीज़ ऑफ इंडिया) के अध्यक्ष डॉक्टर कोमल चव्हाण बताथें, “पीसीओएस ला छोर के, ख़ून के कमी, सिकल सेल रोग, साफ़-सफ़ई डहर धियान के कमी, अऊ यौन संचारित रोग घलो माईलोगन मन मं बांझ होय के कारन बनथें.”

शेवंता ला मई 2010 के वो दिन आज तक ले बने करके सुरता हवय, जब ओकर पात होय रहिस अऊ वोला पीसीओएस के पता चले रहिस. वो ह भरे घाम मं अपन खेत जोतत रहिस. वो ह सुरता करके बताथे, “बिहनिया ले मोर पेट मं दरद होवत रहिस. मोर घरवाला मोर संग डाक्टर करा जाय ला मना कर देय रहिस, येकरे सेती मंय दरद ला नज़रंदाज़ करत बूता करे ला चले गेंय. मझंनिया तक ले दरद सहन ले बहिर हो गेय अऊ खून आय ला धरिस. मोर लुगरा खून ले सना गेय रहिस. मोला समझ मं नई आवत रहिस के ये का होवत हवय.” जब वो ह बेहोस होगे, त दीगर खेत मजूर मन वोला धड़गांव के अस्पताल ले गीन, जऊन ह करीबन आधा कोस दूरिहा मं हवय.

पीसीओएस के पता चले के बाद ओकर जिनगी एकदम ले बदल गीस.

शेवंता के घरवाला ह त ये नई मानय के शेवंता ला कऊनो अइसने बीमारी हवय जेकर ले बांझपन होथे. शेवंता कहिथे, “गर वो ह मोर संग डाक्टर तीर जाय नई, त वोला कइसने पता चलही के मंय दाई काबर नई बन सकंव?” फेर वो ह मामला ला समझे बिना ओकर संग अक्सर बिन सुरच्छा के संबंध बनाथे अऊ कभू-कभू अलकरहा जगा ला चोट पहुंचाथे, शेवंता बताथे, “घेरी-बेरी कोसिस करे के बाद घलो जब मोर महवारी के दिन आते त वो कुंठा ले भर जाथे अऊ येकरे खातिर वो (संबंध के बखत) अऊ घलो ऊतइल हो जाथे.” वो थोकन फुस-फुसावत कहिथे, “मोला ये ह (संबंध) पसंद नई ये. मोला भारी दरद होथे. कभू-कभू जरथे अऊ खजवाथे घलो. ये सब 10 बछर तक ले चलत रहय. सुरु मं मंय रोवत रहंय, फेर धीरे-धीरे अंसुवाय घलो बंद हो गे.”

अब वोला लागथे के बांझपन अऊ ओकर संग समाजिक लांछन, असुरच्छा अऊ नसीब मं मिले अकेलापन ओकर किस्मत मं बदे हवय. वो ह कहिथे, ”बिहाव ले पहिली मंय अब्बड़ बकबकहिन रहंय. जब मंय पहिली पईंत इहाँ आय रहंय, तब मुहल्ला के माइलोगन मन मोर संग संगी-सहेली कस बेवहार करत रहिन. फेर जब वो मन देखिन के बिहाव के दू बछर बाद घलो कोख नई भरिस, त मोला नज़रंदाज़ करे ला सुरु कर दीन. वो अपन नवा जन्मे लइका मन ला घलो मोर ले दूरिहा रखे के कोसिस करथें. वो मन कहिथें के मंय पापी हवंव.”

Utensils and the brick-lined stove in Shevanta's one-room home. She fears that her husband will marry again and then abandon her
PHOTO • Jyoti Shinoli

शेवंता के एक खोली के घर मं बर्तन अऊ ईंट के चूल्हा. वो ला डर हवय के ओकर घरवाला वोला छोड़के दूसर बिहाव कर लिही

अपन परिवार के ईंटा ले बने एक खोली के घर मं, जिहां गिनती के बरतन हवंय अऊ ईंटा के चूल्हा हवय, अकेल्ला रहत शेवंता ला ये डर सतावत रहिथे के ओकर घरवाला दूसर बिहाव कर लिही. वो ह कहिथे, “मंय कहूँ अऊ जाय घलो नई सकंव. मोर दाई-ददा घास-फूस के बने कुरिया मं रहिथें अऊ दूसर मन के खेत मं बूता करके रोजी मं मुस्किल ले 100 रुपिया कमाथें. मोर चार छोटे बहिनी मन अपन-अपन दुनिया मं मगन हवंय. मोर ससुराल वाले मन मोर घरवाला ले बिहाव सेती टुरी मन ला देखावत रहिथें. गर वो ह मोला छोर दिही, त मंय कहां जाहूँ?”

शेवंता ला खेत मजूरी मं साल भर मं करीबन 160 दिन, 100 रुपिया रोजी मं बूता मिल जाथे. कऊनो-कऊनो महिना किस्मत संग रहे ले वो ह महिना के 1000-1500 रुपिया कमा लेथे, फेर अतेक कमई घलो ओकर हाथ मं नई रहय. वो ह बताथे, ”मोर करा रासन कारड तक ले नई ये. मंय महिना मं करीबन 500 रुपिया के चऊंर, जवार के पिसान, तेल अऊ पिसे मिर्चा बिसोथों. बांचे रुपिया मोर घरवाला छीन के ले लेथे. वो मोला घर चलाय सेती घलो पइसा नई देय, इलाज के बात त दूरिहा आय. अऊ गर मंय येकरे सेती पइसा मांगथों, त वो ह मोला मारथे. मोला नई पता के वो ह कभू-कभार के अपन कमई ले दारू पिये ला छोर के अऊ का बूता करथे.”

कभू ओकर करा एक कोरी छेरी रहिन, फेर ओकर घरवाला एक-एक करके छेरी मन ला बेंचत जावत हवय अऊ ओकर तीर सिरिफ 12 ठन छेरी बांहचे हवंय.

घर के भारी खराब हालत के बाद घलो शेवंता ह अपन बस्ती ले 20 कोस दूरिहा बसे शहाडे क़स्बा के एक ठन डाक्टर के निजी दवाखाना मं अपन बांझपन के इलाज करवाय सेती पइसा बचा के रखे हवय, वो ह पात होय ले रोके के इलाज मं 2015 मं तीन महिना अऊ 2016 मं अऊ तीन महिना बर क्लोमीफ़ीन थेरेपी करवाय सेती 6,000 रुपिया दीस. वो ह बताथे, तब “वो बखत धड़गांव के अस्पताल मं कऊनो दवई घलो नई रहिस, येकरे सेती मंय अपन दाई के संग शहाडे के निजी दवाखाना मं इलाज करवाय गेंय.”

साल 2018 मं वोला इही इलाज धड़गांव ग्रामीण अस्पताल मं मुफत मं मिलिस, फेर तीसर बेर घलो नकाम हो गे. वो ह निरास हो के कहिथे, “ओकर बाद ले मंय इलाज करवाय के सोचे ला घलो छोर देंय, अब छेरी मन मोर लइका आंय.”

Many Adivasi families live in the hilly region of Dhadgaon
PHOTO • Jyoti Shinoli

कतको आदिवासी परिवार धड़गांव के पहाड़ी इलाका मं रहिथें

30 बिस्तरा के सुविधा वाले धड़गांव ग्रामीण अस्पताल मं तीर-तखार के 150 गाँव के मरीज मन आथें अऊ रोज के ओपीडी मं क़रीबन 400 बिमरहा मन के नांव दरज करे जाथे. उहां के स्त्रीरोग विशेषज्ञ अऊ ग्रामीण स्वास्थ्य अधिकारी, डॉक्टर संतोष परमार बताथें के हरेक इलाज मामला के हिसाब ले अलगे-अलगे होथे. वो ह कहिथे, “क्लोमीफ़ीन सिट्रेट, गोनैडोट्रॉपिंस, अऊ ब्रोमोक्रिप्टीन जइसने दवई कुछेक लोगन मन के ऊपर काम करथे. दीगर मामला मन मं कृत्रिम गर्भाधान (आइवीएफ) अऊ अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान (आइयूआइ) जइसने नवा विकसित प्रजनन तकनीक के इस्तेमाल मं लाय के जरूरत परथे.”

परमार के मुताबिक, धड़गांव के अस्पताल मं वीर्य के जांच, शुक्राणु के गणना, ख़ून अऊ पेशाब के जांच अऊ नाजुक जगा के जांच जइसने बुनियादी जांच होय सकत हवय, फेर बांझपन के विकसित इलाज इहाँ त का, नंदुरबार सिविल अस्पताल मं घलो नई होय सकय. वो हा बताथें, “येकरे सेती लोगन मन इलाज बर खासकरके निजी दवाखाना मन के ऊपर आसरित रहिथें, जिहां वो मन ला हजारों रुपिया खरचा करे ला परथे.” अस्पताल मं परमार एकेच स्त्रीरोग विशेषज्ञ आंय, जऊन ह गर्भनिरोधक सेवा ले लेके महतारी-लइका के इलाज के जिम्मा संभालथें.

साल 2009 मं स्वास्थ्य नीति अऊ योजना (हेल्थ पॉलिसी एंड प्लानिंग) नांव के पत्रिका मं छपे एक ठन शोधपत्र मं कहे गे हवय के भारत मं बांझपन के बगरे के बारे मं सबूत ‘बनेच कम अऊ जुन्ना हवंय’. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( एनएफएचएस-4 : 2015-16) के मुताबिक कहे जाय त 40-44 बछर के उमर के माईलोगन मन ले 3.6 फीसदी ला कभू लइका नई होइस. अबादी ला थिर रखे मं धियान देय ले, बांझपन के रोक-थाम अऊ इलाज ह जइसने कम जरूरी अऊ नजरंदाज करे के कामेच रहिगे.

शेवंता ये सवाल बिल्कुले वाजिब आय, “गर सरकार गर्भनिरोध सेती कंडोम अऊ दवई पठोते, त का सरकार बांझपन सेती इहाँ मुफत इलाज नई करवाय सकय?”

इंडियन जर्नल ऑफ़ कम्युनिटी मेडिसिन मं 2012-13 मं छपे 12 राज मं करे गे एक ठन अध्ययन मं पता चलिस के जियादा करके जिला अस्पताल मन मं रोकथाम अऊ येकर प्रबंध के प्राथमिक ढांचागत अऊ निदान के सुविधा मन रहिन. फेर अधिकतर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मन (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) मं ये नई रहिस. वीर्य के जांच के सेवा 94 फीसदी पीएचसी अऊ 79 फीसदी सीएचसी मं नई रहिस. एडवांस लेबोरेटरी सर्विस 42 फीसदी ज़िला अस्पताल मं रहिस, फेर सीएचसी के मामला मं ये आंकड़ा सिरिफ 8 फीसदीच रहिस. निदान लेप्रोस्कोपी के सुविधा सिरिफ 25 फीसदी ज़िला अस्पताल मं रहिस अऊ हिस्टेरोस्कोपी वो मन मं सिरिफ 8 फीसदी मेंच रहिस. क्लोमीफ़ीन ले डिंबक्षरण प्रवर्तन (ऑव्युलेशन इंडक्शन) के सुविधा 83 फीसदी ज़िला अस्पताल अऊ गोनैडोट्रॉपिंस के सुविधा वो मन मं सिरिफ 33 फीसदी मेंच रहिस. ये सर्वेक्षण ले ये घलो पता लगिस के जऊन स्वास्थ्य केंद्र मन के सर्वे करेगे रहिस, ऊहां के कर्मचारी मन ले कऊनो ला घलो वो मन के केंद्र डहर ले बांझपन प्रबंधन के प्रशिक्षन नई मिले रहिस.

भारतीय चिकित्सा संघ (आइएमए) के नासिक चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष, डॉक्टर चंद्रकांत संकलेचा कहिथें, इलाज के सहूलियत त एक मुद्दा आयेच, फेर ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचा मं स्त्रीरोग विशेषज्ञ के नई होना ओकर ले बड़े महत्तम मुद्दा आय. बांझपन के इलाज मं  प्रशिक्षित अऊ क़ाबिल स्टाफ़ अऊ उच्च तकनीकी उपकरन के ज़रूरत होथे. फेर सरकार के प्राथमिकता मं महतारी-लइका के सेहत के देखभाल हवय, येकरे सेती सिविल अस्पताल अऊ पीएचसी मं बांझपन के सस्ता इलाज दे पाय ह पइसा के सेती मुस्किल आय.

Geeta Valavi spreading kidney beans on a charpoy; she cultivates one acre in Barispada without her husband's help. His harassment over the years has left her with backaches and chronic pains
PHOTO • Jyoti Shinoli

गीता वलवी खटिया मं राजमा सुखावत, वो अपन घरवाला के मदद के बगेर बरिसपाड़ा के एक एकड़ ज़मीन मं खेती करथे. घरवाला के अतके बछर करे गे अतियाचार के सेती ओकर पीठ अऊ देह के कतको जगा सरलग पिरावत रहिथे

शेवंता के गांव ले दू कोस दुरिहा बसे बरिसपाड़ा गाँव मं, गीता वलवी अपन कुरिया के बहिर खटिया मं राजमा सुखावत हवय. 30 बछर के गीता के बिहाव 17 बछर पहिली 45 बछर के सूरज संग होय रहिस, जऊन ह खेत मजूर आय. वो ह बहुते जियादा दारू पीथे. ये मन घलो भील समाज के आंय. आशा कार्यकर्ता के बनेच घाओ कहे के बाद सूरज (असल नांव नई) ह 2010 मं जाँच करवाइस अऊ येकर बाद पता चलिस के ओकर मं शुक्राणु के कमी हवय. ओकर कुछु बरस पहिली 2005 मं ये जोड़ा हा एक नोनी ला गोद लेय रहिन, फेर गीता के सास अऊ ओकर घरवाला वोला लइका नई होय सेती दुख देवत रहिन. गीता कहिथे, “वो ह लइका नई होय के दोस मोला देथे, फेर कमी ओकर मेर हवय, मोर मं नई. फेर मंय माई अऊरत अंव, येकरे सेती दूसर बिहाव नई करे सकंव.”

गीता (असल नांव नई) ह 2019 मं अपन एक एकड़ के खेत मं 20 किलो राजमा अऊ एक क्विंटल ज्वार कमाय रहिस. अपन गुस्सा ला उजागर करत गीता कहिथे, “ये सब्बो घर मं खाय सेती आय. मोर घरवाला खेत मं कऊनो बूता नई करय. वो ह खेत मं मजूरी करके जऊन कुछु कमाथे वोला दारू अऊ जुआ मं उड़ा देथे. बस मुफत के खाथे!”

वो ह बताथे, “वो ह जब दारू पीके घर आथे, त मोला लात मारथे अऊ कभू-कभू लऊठी ले घलो मारथे. नशा के हालत मं नई होय ले वो ह मोर ले नई गोठियाय.” अतक बछर तक ले सरलग होय अतियाचार सेती ओकर पीठ, खांध अऊ घेंच मं दरद रहिथे.

गीता कहिथे, “हमन देवर के बेटी ला गोद लेय रहेन, फेर मोर घरवाला ला अपन लइका चाही, वो घलो टूरा, येकरे सेती आशा ताई के कहे के बाद घलो वो ह कंडोम लगाय अऊ दारू पिये ला बंद करे ले मना करथे.” आशा कार्यकर्ता हर हफ्ता ओकर हालचाल जाने ला आथे अऊ सलाह घलो दे हवय के ओकर घरवाला कंडोम लगाय करय. काबर गीता ला संबंध बखत दरद, घाव, पेसाब मं जलन, भारी सफेद पानी आय अऊ पेट के तरी मं दरद होथे. ये सब्बो यौन संचारित रोग धन प्रजनन नली के संक्रमन के सूचक आंय.

स्वास्थ्य कार्यकर्ता ह गीता ला घलो इलाज करवाय के सलाह दे हवय, फेर वो ह धियान देय ला बंद कर दे हवय, वो ह इलाज नई करवाय ला चाहथे. गीता सवाल करे जइसने कहिथे, “अब डाक्टर ले मिले धन इलाज करवाय ले का फायदा? दवई मन ले हो सकत हवय के मोर देह के दरद खतम हो जाय, फेर का मोर घरवाला दारू पिये ला बंद कर दिही? का वो ह मोला परेसान करे ला बंद कर दिही?”

डॉक्टर परमार के कहना आय के वो ह हफ्ता मं कम से कम चार-पांच अइसने जोड़ा ला देखथें, जऊन मं घरवाला के दारू पिये के आदत सेती शुक्राणु मं कमी, बांझपन के माई कारन आय. वो ह बताथें, “बांझपन ला लेके मरद मन के देह के दोस के बारे मं गियान नई होय ले माईलोगन मन के संग अतियाचार करे जाथे, फेर जियादा करके माइलोगन मन अकेल्ला आथें. माईलोगन मन के ऊपर जम्मो दोस देय के जगा ये जरूरी आय के मरद ये बात ला समझें अऊ अपन जाँच करवायेंव.”

PHOTO • Jyoti Shinoli

अबादी ला थिर रखे मं धियान देय ले, बाँझपन के रोक-थाम अऊ जरूरी इलाज ह जन स्वास्थ्य सेवा के प्राथमिकता मं नई ये अऊ नजरंदाज करे गे हवय. बांझपन मं मरद के दोस के बारे मं गियान नई होय सेती माई लोगन मं के संग अतियाचार करे जाथे

डॉक्टर रानी बांग, जऊन ह बीते 30 बछर ले पूर्वी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली आदिवासी इलाका मं प्रजनन स्वास्थ्य ले जुरे मुद्दा मं काम करत आवत हवंय, बताथें के बांझपन के इलाज के मुद्दा, डाक्टरी ले जियादा समाजिक मुद्दा आय. वो ह कहिथें, “मरद मन मं बांझपन एक ठन बड़े समस्या आय, फेर बांझपन सिरिफ माईलोगन मन के समस्या मने जाथे. ये सोच ला बदले के जरूरत हवय.”

हेल्थ पॉलिसी एंड प्लानिंग पत्रिका मं छपे लेख मं, लेखक ह ये बात ला जोर देथे: “बहुते कम माइलोगन अऊ जोड़ा बांझपन के असर मं होथें, ये ह प्रजनन स्वास्थ्य अऊ हक ले जुरे भारी महत्तम मदद आय.” लेख के मुताबिक फेर बांझपन के माई अऊ दूसर कारन मरद अऊ अउरत दूनो ले जुरे हवय, फेर “बांझपन के डर अउरत मं बहुते जियादा होथे, ओकर चिन्हारी, ओकर हैसियत, अऊ सुरच्छा सब्बो ऊपर येकर असर परथे अऊ वो मन ला दोस अऊ अकेल्लापन झेले ला परथे; अऊ माईलोगन मन परिवार अऊ समाज मं अपन बात रखे अऊ अपन मुताबिक जिये के मऊका गंवा देथें.”

गीता कच्छा 8वीं तक ले पढ़े हवय अऊ 2003 मं 13 बछर के उमर मं ओकर बिहाव कर देय गीस. वो ह कभू ग्रैजुएट होय के सपना देखे रहिस. अब वो ह अपन 20 बछर के बेटी लता (असल नांव नई) ला अपन सपना पूरा करत देखे ला चाहत हवय. वो अभी धड़गांव जूनियर कालेज मं 12 वीं कच्छा मं पढ़त हवय. गीता कहिथे, “ये ह मोर कोख ले जन्मे नई ये त का होईस. मंय नई चाहंव के ओकर जिनगी घलो मोर कस बरबाद होय.”

एक जमाना मं गीता ला सजे संवरे पसंद रहिस. वो ह कहिथे, “मोला अपन चुंदी मं तेल लगाय, वो ला शिकाकाई ले धोय अऊ दरपन मं अपन आप ला निहारत बहुते बढ़िया लगय.” वो ला चेहरा मं पाउडर लगाय, चुंदी ला कोरे, अऊ बढ़िया ढंग ले लुगरा पहिरे सेती कऊनो खास मऊका ला अगोरे ला नई रहय, फेर बिहाव के 2 बछर बाद गरभ ले होय के कऊनो लच्छन नई दिखे ले सजे-संवरे सेती ओकर सास अऊ घरवाला ‘बेसरम’ कहे ला धर दीन, त  गीता ह खुदेच ला धियान देय ला बंद कर दीस. वो सवाल जइसने करत कहिथे, ”मोला अपन लइका नई होय के कऊनो दुख नई ये; मोला अब अपन लइका घलो नई चाही, फेर सुंदर लगे मं का गलत हवय?”

धीरे-धीरे रिश्तेदार मन वोला बिहाव, छठी, अऊ परिवार के दीगर कार्यक्रम मं नेवते ला बंद कर दीन अऊ एक तरीका ले ओकर समाजिक बहिस्कार कर देय गीस. गीता बताथे. “लोगन मन मोर घरवाला अऊ ससुराल वाले मन ला बलाथें. वो मन ला नई पता के मोर घरवाला मं शुक्राणु के कमी हवय. मंय बांझ नो हों. गर वो मन ला पता होतिस, त का वोला घलो बलाय ला बंद कर देतीन?”

पारी अऊ काउंटरमीडिया ट्रस्ट के तरफ ले भारत के गाँव देहात के किशोरी अऊ जवान माइलोगन मन ला धियान रखके करे  ये रिपोर्टिंग ह राष्ट्रव्यापी प्रोजेक्ट ' पापुलेशन फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया ' डहर ले समर्थित पहल के हिस्सा आय जेकर ले आम मइनखे के बात अऊ ओकर अनुभव ले ये महत्तम फेर कोंटा मं राख देय गेय समाज का हालत के पता लग सकय.

ये लेख ला फिर ले प्रकाशित करे ला चाहत हवव? त किरिपा करके [email protected] मं एक cc के संग [email protected] ला लिखव

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Jyoti Shinoli is a Senior Reporter at the People’s Archive of Rural India; she has previously worked with news channels like ‘Mi Marathi’ and ‘Maharashtra1’.

Other stories by Jyoti Shinoli
Illustration : Priyanka Borar

Priyanka Borar is a new media artist experimenting with technology to discover new forms of meaning and expression. She likes to design experiences for learning and play. As much as she enjoys juggling with interactive media she feels at home with the traditional pen and paper.

Other stories by Priyanka Borar
Editor : Hutokshi Doctor
Series Editor : Sharmila Joshi

Sharmila Joshi is former Executive Editor, People's Archive of Rural India, and a writer and occasional teacher.

Other stories by Sharmila Joshi
Translator : Nirmal Kumar Sahu

Nirmal Kumar Sahu has been associated with journalism for 26 years. He has been a part of the leading and prestigious newspapers of Raipur, Chhattisgarh as an editor. He also has experience of writing-translation in Hindi and Chhattisgarhi, and was the editor of OTV's Hindi digital portal Desh TV for 2 years. He has done his MA in Hindi linguistics, M. Phil, PhD and PG diploma in translation. Currently, Nirmal Kumar Sahu is the Editor-in-Chief of DeshDigital News portal Contact: [email protected]

Other stories by Nirmal Kumar Sahu