एगो आदमी कुल्हाड़ी से लकड़ी चीर रहल बाड़न. ऊ कुल्हाड़ी उठावेलन आउर जोर से लकड़ी पर मारेलन. कोई दस फीट दूर ठाड़ हम हड़बड़ा के पाछू हट जात बानी. उनकर पीठ से पसीना चू रहल बा. कमर पर लपेटल तउनी (तौलिया) पूरा भीज गइल बा. खच्च! ऊ फेरु कुल्हाड़ी उठावत बाड़न. अबकी लकड़ी फट जात बा... ओकर छोट-छोट टुकड़ा हवा में उड़े लागत बा. लकड़ी काटे वाला के नाम एम. कामाची बा. ऊ कारीगर बाड़न. एकरा से पहिले ऊ खेतिहर मजूर रहस. हमरा ओरी बिना देखले ऊ बतियावत जात बाड़न. उनकर आंख कुल्हाड़ी से नइखे हटत.
पछिला तीस बरिस से तंजावुर के एगो पुरान बगइचा- शिवगंगई पूंगा लगे छावल एगो जगह, कामाची के काम करे के जगह बा. ऊ अबही 67 बरिस के बाड़न. बगइचा उनका से दोगुना उमिर, 150 बरिस के हो गइल बा.
उहंई बगल में 1,100 साल पुरान भव्य मंदिर, बृहदीश्वर कोविल बा. ऊ हाथ से जवन वाद्ययंत्र बना रहल बाड़न, ग्रंथ में ओकर जिकिर एकरो से पुरान बा. कामाची कटहल के लकड़ी के चार फुट के कुंदा से एगो वीणई- जेकरा आमतौर पर वीणा नाम से जानल जाला, गढ़ रहल बाड़न.
कुंदा के स्थिर रखे खातिर ऊ आपन दहिना गोड़ एकर खोखला हिस्सा के भीतरी धइले बाड़न. तइयार भइला के बाद एक दिन इहे हिस्सा वीणा के कुडम (गूंज पैदा करे वाला हिस्सा) बन जाई. छांह में होखला के बादो उहंवा गरमी बा, चारो ओरी धूल-धक्कड़ बा. एहि से कामाची के लकड़ी काटे में बहुते मिहनत लागेला. एहि मिहनत आउर कारीगरी के बूता पर ऊ रोज के 600 रुपइया कमा लेवेलन. कुल्हाड़ी जब-जब लकड़ी पर पड़ेला उनकरा मुंह से घर-घर के आवाज निकलेला. बीच-बीच में ऊ मोट तउनी से आपन मुंह पोंछत रहेलन.
कुछे घंटा में 30 किलो के कुंदा, छिलइला-कटइला के बाद 20 किलो के रह गइल बा. अब ई पट्टरई (वर्कशॉप) जाए खातिर तइयार बा. उहंवा एकरा चिकना करके पॉलिश कइल जाई. एक महीना में ई पूरा तरीका से तइयार हो जाई. फेरु कवनो वीणावादक के गोदी के शोभा बढ़ाई, आउर आपन मिश्री जेका धुन से लोग के मन प्रसन्न कर दीही.
वीणा के जन्म तंजावुर में भइल. सरस्वती वीणा, तंजावुर वीणा के पुरान रूप, भारत के राष्ट्रीय वाद्ययंत्र मानल जाला. मृदंगम आउर बांसुरी संगे, एकर जिकिर वैदिक काल के तीन गो ‘ दिव्य वाद्ययंत्र ’ में से होखेला.
मृदंगम, कंजीरा, तविल, उडुक्कई आदि थाप वाद्ययंत्र जेका, वीणा के यात्रा भी पनरुती लगे के बगइचा से सुरु भइल. कडलूर के एगो छोट शहर, पनरुती मीठ आउर गूदावाला कटहल खातिर जानल जाला. बाकिर बहुत कम लोग जानेला कि कटहल के संबंध भारत के कुछ सबले पुरान आउर प्रतिष्ठित वाद्ययंत्र संगे बा.
*****
“
हमार
बात सुन के ऊ रुके खातिर मान गइल,
जइसे एगो बिगड़ल हाथी, जे अंकुश से ना,
बाकिर याल के आवाज से काबू में आ जाला.
”
तंजावुर वीणा के साल 2013 में जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) हासिल भइल. टैग खातिर जे आवेदन ( स्टेटमेंट ऑफ केस ) कइल गइल रहे, ओह में एह तार यंत्र के इतिहास से जुड़ल कइएक उल्लेख मिलेला. ई उल्लेख संगम काल (कोई 2,000 साल पहिले) तक जाला. ओह काल में वीणा के स्वरूप के ‘याल’ पुकारल जात रहे.
“
तोहार जे चारण हमरा से कहले रहस
जदि तू दोसर मेहरारू लगे
जइब
,
त ऊ हमरा से कुछ
ुओ
ना छिपइहन,
आपन याल के बेर-बेर सौगंध खइलन,
बाकिर देखनी तोहार गरदन सौतन के
चूड़ी से छिला गइल बा,
तोहार झूठ पर भरोसा करके ऊ
तोहरा संगे कइसे रहली
?
”
कलितोकई 71, संगम काव्य , प्रिया आपन प्रेमी से शिकायत करत बाड़ी.
जीआई टैग से जुड़ल कागज में कटहल के लकड़ी के कच्चा माल बतावल गइल बा आउर एकरा बनावे के बारे में लंबा-चौड़ा विवरण देहल बा. ओह में लिखल बा, चार फुट लमहर वीणा, “एगो विशाल आउर गोल वाद्ययंत्र बा, जेकर गरदन लमहर आउर मोट होखेला. एकर अंतिम छोर पर नक्काशी कइल ड्रैगन के मुंडी बनावल रहेला.”
वीणा के बारे में जइसन लिखल बा, ऊ ओकरा से कहीं जादे सुंदर देखाई देवेला. जगह-जगह से नक्काशीदार, घुमावदार. ड्रैगन के मुंडी- जेकरा याली कहल जाला- रंगीन आउर मनभावन बा. लकड़ी से बनल वीणा के गरदन में 24 ठो घुंडी सभ लागल होखेला. एकरा अलावे एह में चार ठो तार तानल रहेला. सभे सुर इहंई से निकलेला. ‘खास’ तरह के वीणा में ‘कुडम’ (गूंज पैदा करे वाला यंत्र) जइसन जटिल आउर खास डिजाइन होखेला. एकर दाम साधारण वीणा से कमो ना त दोगुना होखेला.
कोई 30 से 50 बरिस पहिले जब वाद्ययंत्र बनावे खातिर पलामरम (कटहल के गाछ) के इस्तेमाल ना होखत रहे, तब ई तमिलनाडु के कडलूर जिला में पनरुती लगे के गांव में उगत रहे. मवेशी जेका पेड़ भी धन होखेला. गांव-देहात के लोग खातिर ई शेयर बजार जेका बा, जेकर दाम अपने आप बढ़त रहेला, आउर एकरा बाद में बेच के अच्छा नफा कमाइल जा सकेला. आर. विजयकुमार, 40 बरिस, पनरुती शहर के एगो कटहल ब्यापारी बाड़न. ऊ बतावत बाड़न जब कटहल के तना आठ हाथ चौड़ा आउर 7 चाहे 9 फीट लमहर हो जाला, त खाली लकड़ी 50,000 रुपइया में बिकाला.
कटहल किसान लोग, जहां ले संभव होखे गाछ ना काटे. “बाकिर जब बियाह, चाहे इलाज खातिर अचके पइसा-कौड़ी के जरूरत पड़ेला त हमनी कुछ बड़ गाछ के चुन के लकड़ी खातिर बेच दीहिला,” कटहल किसान, 47 बरिस के के. पट्टुसामी बतइलन. “बेचला पर लाख-दू लाख मिल जाला. कवनो दुख-तकलीफ से निपटे आउर कल्याणम (बियाह) खातिर एतना पइसा पर्याप्त होखेला.”
तंजावुर पहुंचे से पहिले लकड़ी के सबले नीमन हिस्सा के मृदंगम बनावे खातिर अलगे हटा देवल जाला. मृदंगम थाप से बजे वाला याला वाद्ययंत्र बा. जानल-मानल संगीतकार, लेखक, वक्ता आउर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता टी. एम. कृष्णा आपन किताब ‘सेबस्टियन एंड संस: अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ मृदंगम मेकर्स’ में एह वाद्ययंत्र के तराशे वाला गुमनाम कारीगर लोग के बारे में लिखले बाड़न.
आईं, सबले पहिले “मृदंगम 101” के बात कइल जाव. कृष्णा एकरा इहे नाम से पुकारेलन. मृदंगम दू गो मुंह वाला बेलनाकार वाद्ययंत्र होखेला. ई मुख्य रूप से ताल वाद्ययंत्र बा, जेकरा कर्नाटक संगीत समारोह आउर भरतनाट्यम गायन के दौरान बजावल जाला. ई कटहल के लकड़ी से बनल एगो खोखला गुंजायमान वाद्ययंत्र होखेला. एकर दुनो छोर पर मौजूद मुंह पर खाल के तीन-तीन परत चढ़ावल रहेला.
कृष्णा के हिसाब से कटहल के लकड़ी मृदंगम बनावे खातिर सबले “पवित्र चीज” हवे. “जदि कटहल के गाछ कवनो मंदिर लगे उगल बा, त एकरा आउर जादे पवित्र मानल जाला. मंदिर के घंटी, वैदिक मंत्रोच्चारण जइसन स्वर के बीच उगल पेड़ में दैवीय गुण आ जाला. एकर लकड़ी से बनल वाद्ययंत्र के अनुनाद बेजोड़ हो जाला. मणि अय्यर जइसन कलाकार लोग एह तरह के शुभ मानल गइल गाछ के लकड़ी हासिल करे खातिर कवनो हद तक चल जाला.”
कुप्पुसामी आसारी, आपन परिवार में एह वाद्ययंत्र के बनावे वाला तेसर पीढ़ी के कारीगर बाड़न. ऊ कृष्णा के बतइलन “अइसन मानल जाला कि कवनो गिरिजा, चाहे मंदिर लगे के गाछ, इहंवा ले कि रस्ता पर के गाछ जहंवा लोग घूमे आउर बतियाए आवेला, चाहे जहंवा घंटी बाजेला, उहंवा के गाछ माहौल के तरंग के अपना भीतर सोख लेवेला आउर फेरु मन मोह लेवे वाला ध्वनि निकालेला.”
अइसे त कृष्णा के हिसाब से “मृदंगम कलाकार लोग हिंदू मंदिर के घंटी आउर मंत्रोच्चारण के दैवीय मानेला. एहि से बढ़ई लोग अइसन मन के शांत कर देवे वाला कंपन के बीच उगे वाला गाछ खोजेला.”
अप्रिल 2022 में हम कटहल उगावे वाला किसान आउर ब्यापारी लोग से भेंट करे पनरुती पहुंचनी. दुपहरिया में हम कुप्पुसामी आसारी के ब्यस्त वर्कशॉप में गइनी. ऊ जगह आधुनिक (खराद आउर मसीन) आउर पारंपरिक (पुरान औजार आउर देवी-देवता के फोटो) के मेल रहे, एकदम कुप्पुसामी के मृदंगम बनावे के तेवर जइसन.
“पूछ, का पूछत बाडू,” कुप्पुसामी कहले. ऊ जल्दबाजी में रहस, काहे कि बहुते ब्यस्त आदमी बाड़न. हम पूछनी, कटहले के लकड़ी काहे. ऊ बतइले, “काहेकि पलामरम सबले उत्तम होखेला. ई वजन में हल्का होखेला आउर एकर नादम (धुन) अचूक होखेला. इहंवा हमनी वीणा के छोड़ के, थाप से बजे वाला सभे वाद्ययंत्र तइयार करेनी.” कुप्पुसामी एह मामला के बहुते गहिर जानकार मानल जालन. “रउआ टी. एम. कृष्णा के किताब में हमनी बारे में पढ़ सकिला. ओह में खराद मसीन पर काम करत हमार एगो फोटो भी बा.”
कुप्पुसामी के चेन्नई के एगो छोट शहर, माधवरम में मृदंगम बनावे के “कोई 50 बरिस के अनुभव” बा. ऊ जब 10 बरिस के रहस, तबे से ई कारीगरी सीखे के सुरु कर देलन. उनकर पढ़ाई में कम आउर लकड़ी के काम में जादे रुचि रहत रहे. “ओह घरिया सभे काम हाथे से कइल जात रहे. हमार बाऊजी पलामरम के वंडि सक्करम (गाड़ी के पहिया) पर चढ़ाके ओकरा भीतर से खोखला करे के काम करत रहस. दू लोग पहिया घुमावे आउर अप्पा ओकरा भीतर से छीलस.” जल्दिए परिवार के लोग भी एह काम से तालमेल बइठा लेलक. “समय के साथे हमनियो बदलत गइनी.”
कइएक शिल्पकार से उलट, उ नयका मसीन के लेके बहुते उत्साहित रहेलन. “अब देखीं, मृदंगम बनावे खातिर लकड़ी के भीतरी से खुरचे में पूरा दिन खरचा हो जाला. अब खराद आ गइल बा, त ई काम एकदम फटाफट आउर कुशल तरीके से हो जाला. काम में जादे सफाई भी आवेला.” पनरुती में खराद मसीन काम में लावे में ऊ सबले आगू रहलन. उनकर वर्कशॉप में ई मसीन 25 बरिस पहिलहीं आ गइल रहे. उनकरा देखादेखी शहर में आउर बहुते लोग एकरा अजमइलक.
“इहे ना, हम चार-पांच लोग के थाप वाद्ययंत्र बनावे के भी सिखइनी. ऊ लोग पूरा तरीका से सीखला के बाद आपन दोकान खोल लेलक. ऊ लोग उहे दोकानदार के आपन सामान बेचेला जेकरा हम मयलापुर, चेन्नई में सप्लाई करिला. ऊ लोग उहंवा अपना के हमार चेला बतावेला. दोकान के मालिक हमरा के फोन करके पूछेलन, रउआ केतना लोग के सिखइले बानी?” कुप्पुसामी सभ कहानी सुनावत हंसे लगले.
उनकर लइका सबरीनातन इंजीनियरिंग के पढ़ाई पढ़ले बाड़न. “हम उनका कहनी कि एकर नाप-जोख लेवे आउर वाद्ययंत्र बनावे के सीख ल. जदि उनकर नौकरी कहूं लगियो जाई, त कारीगर रख के ई काम जारी रखल जा सकेला, ह कि ना?”
*****
टी.एम कृष्णा आपन किताब सेबेस्टियन एंड संस में लिखत बाड़न, “आसारी लोग विश्वकर्मा समाज से आवेला. ऊ लोग धातु, लकड़ी आ पत्थर जइसन चीज के कारीगर बा. रचनात्मक काम से दूर, एह समाज के कइएक लोग अब पारंपरिक जाति आधारित पेशा से जुड़ के, अब सिरिफ एकर मजूरी के काम तक सिमट गइल बा. नयका पीढ़ी के लइका लोग महीनवारी पगार वाला काम में लाग गइल बा.”
“पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिले, चाहे जाति आधारित काम के बारे में बात करे घरिया हमनी के सावधान रहे के पड़ी. काहे कि सभे कोई जानत बा हमनी के मौजूदा सामाजिक ढांचा में सभे इंसान आउर सभे पेशा बराबर नइखे,” कृष्णा बतइलन. “जातिगत विशेषाधिकार वाला समुदाय, चाहे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहे वाला काम के ज्ञान, हुनर मानल जाला. अइसन काम करे वाला के कबो उत्पीड़न के सामना ना करे के पड़े. बाकिर पीड़ित, चाहे हाशिया पर रहे वाला समुदाय में पीढ़ी दर पीढ़ी जारी होखे वाला काम के ज्ञान चाहे हुनर ना मानल जाए. ओह काम के नीचा नजर से देखल जाला, ओकर कवनो मोल ना समझल जाला. अइसन काम के सिरिफ शारीरिक श्रम के गिनती में रखल जाला. सबले जरूरी बात ई बा कि जे लोग अइसन काम करेला, उनकरा जातिगत शोषण आउर हिंसा झेले के पड़ेला. बहुते मामला में समाजिक परिस्थिति चलते लोग के आगू कवनो विकल्प ना होखे. ओह लोग के मजबूरी में पारिवारिक जाति आधारित पेशा अपनावे के पड़ेला.”
“एह देस में जब कबो वाद्ययंत्र बनावे वाला कारीगर के बात होखेला, त बस एकर तकनीकी पहलू पर चरचा होखेला,” कृष्णा कहेलन . ओह लोग लगे कला से जुड़ल ज्ञान होखला के बावजूद, कलाकार के रूप में ना देखल जाए. सिरिफ काम करे वाला मिस्त्री के रूप में देखल जाला. असली कर्ता-धर्ता वाद्ययंत्र बजावे वाला के मानल जाला, आउर ओकरे आर्किटेक्ट कहल जाला. ओह लोग के आपन कला के, हुनर के श्रेय काहे ना देवल जाए, चाहे देवलो जाला त बेमन से, चाहे तनी सा? साफ बात बा, जाति चलते ओह लगो संगे अइसन कंजूसी, चाहे बेईमानी कइल जाला.”
मृदंगम बनावे के पेशा पर मरद लोग के दबदबा रहल बा, कुप्पुसामी कहले. “चमड़ा के काम करे में कुछ मेहरारू लोग लागल बा. बाकिर लकड़ी के काम पूरा तरीका से मरदे लोग करेला. लकड़ी खास तौर से कटहल के ओह गाछ से लेवल जाला, जे अब ना फरे. ऊ लोग पुरान आउर ना फरे वाला गाछ के ‘बंद’ कर देवेला. बाकिर जदि 10 गो गाछ कटाई, त ओकरा जगहा पर 30 गो लगावल भी जाई.”
कुप्पुसामी खास तरह के लकड़ी के खोज में रहेलन. उनकरा जादे करके 9 से 10 फीट लमहर, चौड़ा आउर मजबूत गाछ पसंद आवेला. ऊ रस्ता चाहे बाड़ी के किनारे लागल गाछ खोजेलन. उनकरा हिसाब से गाछ के निचलका हिस्सा जादे नीमन होखेला. एकर रंग बनिस्पत तनी गहिर होखेला. एकरा में से नीमन आवाज निकले के गारंटी होखेला.
एक दिन में ऊ करीब छव गो मृदंगम के काट के आकार दे सकेलन. बाकिर ओकरा पूरा तरीका से तइयार होखे में दू दिन आउर लागेला. एह काम में उनकरा नाममात्र के नफा होखेला. मजूरी चुकइला के बाद, जदि एगो मृदंगम पर उनकरा 1,000 रुपइया के कमाई हो गइल, त ऊ खुस रहेलन. “मजूर के एह काम खातिर 1,000 रुपइया देवे के पड़ेला. रउआ नइखी जानत, ई केतना मिहनत वाला काम बा. एतना ना देहम, त ऊ लोग काम करे ना आई.”
कटहल के लकड़ी सालो भर उपलब्ध ना होखे. गाछ में जब फल-फूल फरत रहेला, त ओकरा काटल ना जाला, ऊ बतइलन. एहि से “हमरा लकड़ी जोगा के रखे के पड़ेला.” ऊ 25,000 रुपइया के भाव से पांच लाख रुपइया खरचा करके 20 गो कुंदा कीनेलन. उनकरा लागेला इहंवा सरकार के दखल देवे के चाहीं. “जदि लकड़ी कीने खातिर हमनी के सब्सिडी, चाहे करजा मिल जाव... त बहुते राहत हो जाई!”
देस-बिदेस में, हर जगह मृदंगम के बहुते पूछ बा, कुप्पुसामी कहेलन. “एक महीना में हमार 50 ठो मृदंगम आउर 25 ठो तविल बिका जाला.” असली दिक्कत नीमन लकड़ी मिले आउर एकरा चार महीना ले बचा के रखे में आवेला. आउर चूंकि पनरुती कटहल के लकड़ी “उत्तम” होखेला,” कुप्पूसामी कहलन, “एहि से एकर मांग भी बहुते बा.” उनकर मानना बा कि एह प्रदेस के लाल माटी के चलते कटहल के लकड़ी से बनल वाद्ययंत्र से संगीत भी अलौकिक निकलेला.
“दस फुट लमहर एगो कुंदा से, जेकर दाम 25,000 रुपइया होखेला, सिरिफ तीन गो नीमन मृदंगम तइयार हो सकेला. लकड़ी के हर खेप में अलग-अलग तरह के लकड़ी रहेला. कुछ लकड़ी से नीमन धुन ना निकले.” कुप्पुसामी अइसन लकड़ी से छोट उडुक्कई (हाथ से पकड़ के बजावे वाला ताल वाद्ययंत्र) बना लेवेलन.
“एगो नीमन ‘कट्टई’ के दाम ‘एट्टु रूबा’ होखेला,” ऊ समझावत कहले. कट्टई से उनकर मतलब मृदंगम के लकड़ी से बनल गोल हिस्सा से बा. जबकि एट्टु रूबा के मतलब 8,000 रुपइया बा. ऊ बतावत बाड़न कि ई ‘ओनाम गिनती’ (पहिल क्वालिटी) होखेला, आउक ग्राहक एकरा कबहू ना लउटावे. बाकिर “जदि लकड़ी फट गइल, चाहे नादम (स्वर) नीमन ना निकलल, त ग्राहक एकरा पक्का वापिस कर देवेला.”
आमतौर पर एगो मृदंगम 22, चाहे 24 इंच के होखेला. एह तरह के वाद्ययंत्र के माइक्रोफोन संगे बजावल जाला, ऊ कहले. “कुतु (रंगमंच) खातिर, जहंवा ई बिना माइक के बजावल जाला, मृदंगम 28 इंची वाला होखेला. एक तरफ से एकर मुंह पातर, दोसर तरफ से चौड़ा होखेला. एकर आवाज बहुते दूर ले सुनाई पड़ेला.”
कुप्पुसामी मृदंगम बनावे खातिर तइयार लकड़ी के ढांचा, चेन्नई के म्यूजिक कंपनी के सप्लाई करेलन. उहंवा से हर महीना 20 से 30 गो ऑर्डर आवेला. ऑर्डर अइला के बाद ढांचा के चमड़ा मजूर सभ के सौंप देवल जाला. उहंवा मृदंगम के अंतिम रूप देवल जाला. एह प्रक्रिया चलते दाम अलग से 4,500 रुपइया बढ़ जाला. कुप्पुसामी समझइलन, “आउर संगे जिप वाला झोला भी रहेला,” अइसन बतावत कुप्पुसामी के हाथ, मृदंगम के ऊपर लागल एगो ख्याली जिप खोले लागत बा.
नीमन मृदंगम कोई 15,000 रुपइया में पड़ेला. उनकरा उहो बखत इयाद बा जब एकर दाम 50 आउर 75 रुपइया रहत रहे. “गुरु लोग के मृदंगम पहुंचावेला, बाऊजी हमरा मद्रास (अब चेन्नई) के मयलापुर ले जात रहस. उहंवा ऊ लोग हमनी के करारा नोट देवे! हम तब लइका रहीं,” ऊ मुस्कइलन.
कर्नाटक संगीत के दुनिया के कुछ जानल-मानल हस्ताक्षर- कारईकुडी मणि, उमयालपुरम शिवरामन जइसन मृदंगम के उस्ताद लोग, आपन वाद्ययंत्र कुप्पुसामी से ही कीनेला. “हमनी इहंवा सभे विद्वान लोग आवेला आउर कीन के ले जाला,” ऊ तनी गर्व से कहलन. “ई प्रसिद्ध, पुरान दोकान बा...”
कुप्पुसामी ताल वाद्ययंत्र से जुड़ल कइएक किस्सा सुनइलन. उनकर कहानी में पुरान आउर नया के अनोखा मेल बा. “रउआ स्वर्गीय पालघाट मणि अय्यर के जानिला? उनकर वाद्ययंत्र एतना भारी रहत रहे कि ओकरा उठावे खातिर एगो आदमी के जरूरत पड़त रहे!” भारी मृदंगम के जादे डिमांड रहत रहे, काहेकि मानल जात रहे कि एकरा से “गनीर, गनीर” मतलब साफ आउर ऊंच आवाज निकलेला. आजकल के पीढ़ी के अइसन चीज ना चाहीं, कुप्पुसामी कहलन.
“आजकल बिदेस जाए वाला हल्का बाजा खोजेला. ऊ लोग आपन वाद्ययंत्र हमनी इहंवा लावेला, आउर हम ओकर वजन 12 से छव किलो कम करिला.” ई कइसे संभव बा, हम पूछनी. “हमनी एकर पेट के हिस्सा से लकड़ी खुरच-खुरच के हटा दीहिला. बीच-बीच में तउलत रहिला, जबले ई छव किलो ले कम ना हो जाए.”
रउआ कह सकत बानी कि मृदंगम के पेटे काट लेवल जाला...
बाकिर खाली मृदंगमे ना, उनकर बनावल कइएक तरह के थाप वाला वाद्ययंत्र दुनिया भर में जाल. “पछिला 20 बरिस से हमार उरुमी मेलम (दो सिरा वाला ड्रम) मलेशिया भेजल जात बा. बस कोविड में ई सिलसिला थम गइल रहे...”
मृदंगम, ताविल, तबेला, वीणा, कंजीरा, उडुक्कई, उडुमी आ पंबई जइसन वाद्ययंत्र बनावे खातिर कटहल के गाछ के तना एकदम दुरुस्त होखेला. “हम एकरा से 15 गो अलग-अलग तरह के वाद्ययंत्र बना सकिला.”
ऊ दोसर तरह के वाद्ययंत्र बनावे वाला शिल्पकार लोग से भी परिचित बानी. कुछ के त नाम आ, पता तक उनकरा इयाद बा. “अरे, राउर वीणा बजार में नारायणन से भेंट बा? ऊ तंजावुर के साउथ मेन स्ट्रीट में रहेलन, ह कि ना?” कुप्पुसामी खातिर वीणा बनावल कठिन काम बा. “एक बेरा हम वीणा बनत देखनी. आसारी घुमावदार तना बनावत रहस. हम दू घंटा ले चुप्पे बइठ के उनकरा देखत रहनी. कबो ऊ लकड़ी काटस, ओकरा आकार देवस आउर कबो ओकरा मिलावस, फेरु से काटस, आकार देवस, जांचस... ऊ सभ अद्भुत रहे, आउर मजेदार भी.”
*****
पहिल बेर वीणा बनावे वाला से हमार भेंट तंजावुर में, 2015 में एम. नारायणन के वर्कशॉप में भइल रहे. अगस्त 2023 में ऊ हमरा से भेंट करे फेरु अइलन. ऊ कहले, “रउआ ई घर इयाद बा? ई उहे घर बा जेकरा बाहिर गाछ लागल रहे.” भले ई एगो पहचान खातिर बतावल जात होखे, बाकिर पुंगई गाछ (भारत में उगे वाला बीच) शायद साउथ मेन स्ट्रीट के अकेला गाछ रहे. सीमेंट से बनल वीणा पहिलका तल्ला के शोभा बढ़ावत रहे. उनकर घर के पाछू बनल वर्कशॉप पहिलहीं जइसन रहे, जहंवा तक हमरा इयाद बा. उहे सीमेंट के अलमारी पर रखल औजार, देवाल पर फोटो आउर कैलेंडर आउर भूइंया पर रखल अनगढ़ वीणा.
वीणा जब शिवगंगई पूंगा से आवेला, त ई मजबूत बाकिर टेढ़-मेढ़ शक्ल के लकड़ी के टुकड़ा जइसन देखाई दीही. वर्कशॉप में एक बेर पहुंचला के बाद एकर कायापलट हो जाला. इहंवा औजार बदल जाला, तराशे के तरीका बदल जाला. आउर जाहिर बा, एकर नतीज भी अलग होखेला. खोखला पेट वाला 16 इंची के चौड़ा लकड़ी के टुकड़ा से, नारायणन आउर उनकर कारीगर लोग एकरा छिल-छिल के पातर 14.5 इंची चौड़ा कटोरा जइसन बनावेला. एकर देवाल के मोटाई सिरिफ आधा इंची होखेला. ऊ बतइलन कि अइसन करे खातिर ऊ एगो कम्पास के काम में लावेलन. एकरा से लकड़ी पर गोल घेरा बनावे के बाद, एहतियात से उल्ली (छेनी) से फालतू लकड़ी के छिल के हटा देवल जाला.
सुर निकाले खातिर, लकड़ी के ठहर-ठहर के छिले के पड़ेला. बीच में बिराम लेवे से लकड़ी के सूखे आउर तइयार होखे में मदद मिलेला. बाहिर-भीतर से अच्छा से सूखला के बाद लकड़ी हलका हो जाला. जवन वीणा तंजावुर अइला पर 30 किलो के होखेला, ऊ शिवगंगई पूंगा में बस 20 किलो के रह जाला. वीणई पट्टरई में ई आउर कम, आठ किलो तक हल्का हो जाला. एकरा आसानी से उठा के चलल जा सकेला.
वर्कशॉप के सोझे, आपन घर में बइठल नारायणन हमरा हाथ में वीणा थमा देलन. कहलन, “देखीं, एकरा ठीक से धरीं.” ऊ छुए में चिक्कन आउर अच्छा-खासा भारी रहे. एकर एक-एक हिस्सा अच्छा से तराशल आउर चिकनावल रहे. नारायण कहले, “ई सभ हाथ से कइल बा.” उनकर आवाज में तनी गर्व झलकत रहे.
“वीणा सिरिफ तंजावुर में बनावल जाला. इहंवा से ई पूरा दुनिया में जाला. हमनी के जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) भी मिल चुकल बा. ई सभ वकील संजय गांधी के मेहरबानी बा.”
ई वाद्य यंत्र हरमेसा कटहल के लकड़ी से बनेला. “एकरा एह से चुनल जाला काहे कि पलामरम हर तरह के मौसम में फिट रहेला. आज तंजावुर में तापमान 39 डिग्री बा. इहंवा के बनावल वीणा जब अमेरिका पहुंची, त उहंवा के तापमान संभवत: जीरो डिग्री होखी. तापमान में एतना उतार-चढ़ाव झेलला के बादो इहंवा वीणा के सुर पर कवनो फरक ना पड़ी. इहे ना, जदि एकरा इहंवा से दक्खिनी एशिया जइसन गरम इलाका में ले जाएम, तबो कुछुओ असर ना होई. ई हर जगह मीठ धुन निकाली. एकर इहे गुण दुर्लभ बा. आउर एहि से हमनी कटहल के लकड़ी उपयोग करिला.”
“वीणा आम के लकड़ी से ना बन सके. काहे? काहेकि गरमी में आम के लकड़ी से बनल दरवाजा आराम से बंद हो जाला. बाकिर बरखा में एकरा पर बहुते जोर लगावे के पड़ेला. इहे ना, एह लकड़ी के चाहे रउआ केतनो नीमन से काटी, तराशी, नक्काशी करीं, कटहल के लकड़ी से बनल वीणा के आगू एकर कवनो मोल नइखे.” एकरा अलावे, पलमारम में तनबुटकी-तनबुटकी (छोट) गो छेद होखेला, नारायणन समझइलन, हमनी के माथा के केस से भी पातर. “एकरा से लकड़ी में हवा आ-जा सकेला.”
कटहल के लकड़ी के खेती बिस्तृत पैमाना पर होखेला. “बाकिर जहंवा तक हम जानत बानी, कुछ इलाका- पट्टूकोट्टाई (तंजावुर जिला) आउर गंधर्वकोट्टाई (पडूकोट्टाई जिला)- में ऊ लोग बहुते गाछ काट देले बा. आउर एकरा बदले एको गाछ नइखे लगावल गइल. बगइचा के मालिक आपन जमीन घर बनावे वाला कंपनी के बेच देलन, आउर पइसा बैंक में रख देलन. बिना गाछ,” नारायणन ध्यान दिलावत बाड़न, “तनिको छांह ना मिले, संगीत के त बाते छोड़ दीहीं. हमार गली में देखीं. इहंवा खाली हमार गाछ बचल बा... बाकी सभ कटा गइल.”
नयका कटहल के लकड़ी पियर रंग के होखेला. जइसे-जइसे ई पुरान पड़े आउर सूखे लागेला, एकर रंगत लाल पड़े लागेला. नारायणन कहले एहि से पुरान वीणई के बहुते खोज होखेला. ऊ हसंले, “आउर एहि से रउआ ई कबो बजार में बिकात ना मिली. काहेकि जेकरा लगे ई बा, ऊ ओकरा मरम्मत करवा के अपने लगे संभार के रखल पसंद करेला. आमतौर पर आपन परिवार से बाहिर केकरो ना देवे के चाहेलन.”
नारायणन आपन बनावल वीणई में हर बार कुछ नया स्टाइल जोड़ेलन. “हई गिटार के घुंडी सभ देखीं. हमनी एकरा एह में लगइले बानी ताकि आसानी से तार के कसल आउर ट्यून कइल जा सके.” वीणा बजावल सिखावे के तरीका में बदलाव आवे के बारे में ऊ बहुते उत्साहित नइखन. ऊ एकरा शॉर्ट-कट मानेलन (काहेकि मास्टर शिष्य के धुन के पिच ठीक करे के ना सिखावे). कटहल के लकड़ी आउर धातु के तार के मेल से निकल रहल सुंदर आवाज के बीच हमनी के बतकही चलत रहे.
वीणा गढ़े वाला दोसर शिल्पकार जेका, नारायणन भी आपन बनावल बाजा बजा सकेलन.
“बस तनिए सा,” ऊ तनी संकोच से कहलन. दहिना हाथ से तार कसत, ऊ बावां हाथ के अंगुरी से वीणा के तार छेड़े लगलन. “ग्राहक के का चाहीं, एतना त हमरा समझ में आवेला.”
उनकर गोदी में लकड़ी के एक टुकड़ा से बनावल एकांत वीणा रखल बा. ऊ एकरा बहुत ध्यान से पकड़ेलन, जइसे कवनो माई आपन सुतल लइका के सइहार के पकड़ेली. “कबो हमनी हरिन के सींग से सजावट के काम करत रहीं. अब बॉम्बे से मंगावल पिलास्टिक के हाथी के दांत लगावेनी...”
एक आदमी अकेले वीणई बनाई, त एकरा पूरा करे में 25 दिन लागी. “इहे से हमनी अलग-अलग काम, अलग-अलग लोग से कराइला आउर बाद में सभे के आपस में जोड़ दीहिला. एह तरीका से काम करे से, एक महीना में दू से तीन वीणई तइयार हो जाला. एक वीणई के दाम 25,000 से 75,000 रुपइया ले होला.”
वीणई बनावे वाला दोसर लोग जेका, नारायणनो आपन लकड़ी पनरुती से लाएलन. “या त हमनी उहंवा जाके लकड़ी कीन के लाइला, चाहे ऊ लोग हमनी के इहंवा लाके देवेला. 40, चाहे 50 गो पुरान पाकल गाछ अच्छा रहेला. दोकानदार हमनी के 20,000 में 10 फुट के उंच पेड़ बेच देवेला. एकरा से हमनी एकांत वीणई बना सकिला. तनी-मनी मोलभाव भी चलेला. एक बेरा खरीदला के बाद, हमनी एकरा आपन हिसाब से आकार दीहिला आउर फेरु शिवगंगई पूंगा में एकरा गढ़ल जाला.” अइसे त, लकड़ी के धंधा बहुते जोखिम वाला बा, नारायणन कहले. “लकड़ी में जदि कवनो दरार रह गइल, त ओह में से पानी रिस के अंदर जा सकेला आउर पूरा गाछ के खराब कर सकेला. ई बात हमनी के गाछ कटला के बादे मालूम पड़ेला.”
नारायणन के अंदाज से तंजावुर में कोई दस गो लोग वीणई बनावे के काम में लागल बा. एकरा अलावे कइएक लोग ई काम पार्ट टाइम भी करेला. सभे कारीगर लोग मिलाके एक महीना में 30 गो वीणई बनावेला. तंजावुर लकड़ी के कुंदा पहुंचे से लेके, साज बने तक 30 दिन लागेला. “एह में कवनो शक नइखे कि एकर खूब मांग बा,” नारायणन कहले.
“चिट्टीबाबू आउर शिवानंदम जइसन बड़ कलाकार लोग हमार बाऊजी से वाद्ययंत्र खरीदले बा. नयका उमिर के कलाकार के नयका खेप भी एह में बहुते दिलचस्पी रखेला. बाकिर एह में से जादे नौजवान लोग चेन्नई के ‘म्यूजिकल’ से सामान खरीदेला. कुछ लोग त सीधा इहंई आवेला, आउर खास डिजाइन, चाहे आपन तरीका के वीणा बनावे के ऑर्डर देवेला.” नारायणन के इहे पसंद बा.
उनकरा नीमन लागी, जदि ई ब्यापार फले-फूले. “हम 45 बरिस से ई काम कर रहल बानी. बाकिर हमार दुनो लइका लोग के एह काम में दिलचस्पी नइखे. ऊ लोग पढ़ल-लिखल बा, आउर नौकरी करेला. रउआ बता सकिला काहे?” ऊ तनी मेहराइल, ठिठक जालन. आपन घर में काज करत एगो आदमी ओरी देखावत कहेलन, “ई राजमिस्त्री बाड़न. रोज के 1,200 रुपइया कमाएलन. ओहू पर से इनका दिन में दू बेरा चाय आउर दू गो वड़ा खातिर पइसा मिलेला. बाकिर हमनी के देखीं, एतना खटला के बादो आधे पइसा मिलेला. हमनी के आराम हराम बा. काम के घंटा निस्चित नइखे. काम त बढ़िया बा, बाकिर अइसन लागेला कि खाली दलाले लोग पइसा कमाला. हम दस गुना दस फुट के वर्कशॉप में काम करिला. रउआ देखनी ना? सभे काम हाथ से कइल जाला. एकरा बादो बिजली बिल बाजार भाव से चुकाए के पड़ेला. हमनी बाबू लोग के समझावे के कोसिस कइनी कि ई कुटीर उद्योग बा. बाकिर अबले ओह लोग के ज्ञापन देवे में असमर्थ रहनी. एहि से कवनो समाधान ना निकल सकल...”
नारायणन आह भरलन. उनकर घर के पाछू, वर्कशॉप में, एगो बूढ़ कारीगर कुडम के चमकावे में लागल बाड़न. छेनी, ड्रिल आउर ब्लेड से, ऊ धीरे धीरे कटहल के लकड़ी में संगीत भर रहल बाड़न...
एह शोध के बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विस्विद्यालय के अनुसंधान अनुदान कार्यक्रम के तहत अनुदान मिलल बा.
अनुवादक: स्वर्ण कांता