18 बछर के सुमित (बदले नांव) जब पहिली बेर हरियाणा के रोहतक के एक ठन सरकारी जिला अस्पताल में छाती बनवाय के आपरेसन के बारे मं पूछताछ करे ला गीस, त वोला बताय गीस के वोला जरे रोगी के रूप मं भर्ती होय ला परही.

भारत के ट्रांसजेंडर समाज गर जनम धरे देह मन बदलाव ला करे ला चाहथें, जेकर ले वो ह सहज मसूस कर सकय.तब वो मन ला जटिल इलाज के कानून ले जुरे सरकारी झंझट ले बचे सेती वोला लबारी मारे ला परिस. ओकर बाद घलो ये झूठ काम नइ आइस.

सुमित ला 'टॉप सर्जरी' (छाती के बड़े आपरेसन) जइसने के बोलचाल के भाखा मं कहे जाथे, करवाय के पहिली कतको कागजात बनावाय, अनगिनत मनोवैज्ञानिक जाँच, बखत-बखत मं डाक्टर करा जाय मं 8 बछर अऊ लगही. सर्जरी रोहतक ले करीबन 33 कोस दूरिहा हिसार के एक ठन निजी अस्पताल मं होही. ये सबके बीच मं ओकर उपर एक लाख रूपिया ले जियादा के करजा अऊ पारिवारिक तनाव झेले ला परत हवय.

डेढ़ बछर बीते, 26 बछर के सुमित अभू घलो रेंगे बखत अपन खांध ला ओरमा के चलथे. ये आदत ओकर आपरेसन के पहिली के आय जब वो ह अपन छाती सेती वोला लाज लगय अऊ मन मं सुख नइ रहत रहिस.

येकर कऊनो आंकड़ा नइ ये के भारत मं सुमित जइसने कतक लोगन मन हवंय जेन मन जनम के बखत तय लिंग ले दूसर लिंग ले चिन्हारी होथें. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सहयोग ले करे गे एक ठन अध्ययन के मुताबिक, साल 2017 मं भारत मं किन्नर (ट्रांसजेंडर)मन के आबादी 4.88 लाख होही.

साल 2014 के राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ मामला मं, सुप्रीम कोर्ट ह एक ठन ऐतिहासिक फइसला दिस, जेन मं ट्रांसजेंडर अऊ वो मन के खुद के पहिचान लिंग के संग पहिचान के वो मन के हक ला मान्यता दे गीस, अऊ सरकार ला वो मन के इलाज तय करे ला कहिस. पांच बछर बाद किन्नर मइनखे ((अधिकार के संरक्षण) अधिनियम, 2019 ह समाज ला लिंग-पुष्टि सर्जरी, हार्मोन थेरेपी अऊ मानसिक इलाज जइसने सब्बो इलाज के सुविधा देय ला सरकार के भूमका उपर जोर दीस.

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माई देह धरे जन्मे सुमित के जनम हरियाणा के रोहतक जिला मं होय रहिस. तीन बछर के लइका उमर मं घलो सुमित ला फ्राक पहिरे के पीरा अब तक ले मसूस होथे

ये कानूनी बदलाव के पहिली कतको बछर तक ले, कतको ट्रांसलोगन मन ला लिंग बदलाव (जेन ला सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी धन जेंडर अफ़र्मिंग सर्जरी के रूप मं घलो जाने जाथे) आपरेसन करवाय के मऊका नई मिलत रहिस, जऊन मं चेहरा के आपरेसन अऊ 'टॉप' धन 'बॉटम' सर्जरी होय सके रतिस. ये मं छाती अऊ जननांग के आपरेसन घलो सामिल रहिस.

सुमित तऊन लोगन मन ले एक झिन रहिस जेन ह आठ बछर तक अऊ साल 2019 के बाद घलो अइसने आपरेसन के लाभ नई लेगे सकिस.

हरियाणा के रोहतक जिला मं एक ठन दलित परिवार मं माईलोगन के रूप मं जन्मे सुमित अपन तीन भाई-बहिनी मन बर एक किसम ले दाई-ददा कस रहिस. सुमित के ददा, परिवार मं पहिली सरकारी नऊकरी करेइय्या रहिस जेकर सेती अधिकतर बखत बहिर मं रहत रहिस. ओकर दाई-ददा मं बनत नई रहिस. जब सुमित बनेच नान रहिस ओकर रोजी मजूरी करेइय्या ओकर दादा-दादी गुजर गे रहिन. सुमित के ऊपर घर के जम्मो जिम्मेवारी रहिस, वो ह घर के सबले बड़े बेटी कस ये भार ला उठावत रहिस. फेर ये ह सुमित के पहिचान के मुताबिक नइ रहिस. वो ह कहिथे, “मंय जम्मो जिम्मेवारी ला एक झिन मरद के रूप मं उठायेंव.”

सुमित ला सुरता हवय जब वो ह तीन बछर के रहिस तब घलो वोला फ्राक पहिरे ला भवत नइ रहिस. अइसने मं हरियाणा के खेल संस्कृति विभाग सेती वोला राहत मिलिस. ये मं नोनी मन खेलकूद वाले टूरा मन के कपड़ा पहिरे सकत रहिन. सुमित बताथे, “बड़े होय के बाद मंय उहिच पहिरे जेन ह मोला भाये. अपन छाती के आपरेसन के पहिली घलो, मंय मरद लोगन के जिनगी गुजारत रहंय.” फेर येकर बाद घलो समस्या खतम नइ होय रहिस.

13 बछर के उमर मं सुमित के भारी साध अपन देह मुताबिक टूरा के रूप मं होय लगिस. वो ह कहिथे, “मोर दुबर-पातर काया मं छाती भरे नइ रहिस. जेकर ले अपन आप मं गिन होवय.” ये सब के बीच मं सुमित ला अइसने कऊनो  जानकरी नइ रहिस जेन ह ओकर डिस्फोरिया (कऊनो मनखे के ओकर जैविक लिंग अऊ लिंग चिन्हारी मं मेल नई होय सेती होय बैचेनी) ला समझा सकय.

फेर एक झिन संगवारी ओकर बर सुग्घर खबर लेके आइस.

वो बखत सुमित अपन परिवार के संग भाड़ा के खोली मं रहत रहिस अऊ ओकर मकान मालिक के बेटी ह सहेली बन गीस. ओकर करा इंटरनेट के सुविधा रहिस, अऊ वो ह वोला छाती ले आपरेसन के बारे मं जानकारी दे मं मदद करिस जेन ला वोह चाहत रहिस. धीरे धीरे, सुमित ला स्कूल मं दीगर ट्रांस टूरा मन के मंडली मिल गे, जेन मन डिस्फोरिया के कतको जिनिस ला मसूस करे रहिन. अस्पताल जाय के साहस करे के पहिली ये किसोर उमर लइका ह कुछेक साल ऑनलाइन अऊ संगवारी मन ले जानकारी जुटाय मं खपा दिस.

ये साल 2014 रहिस, जब 18 बछर के सुमित ह अपन घर के तीर मं नोनी मन के स्कूल ले 12 वीं क्लास पास करिस. ओकर ददा काम मं गे रहिस, ओकर दाई घर मं नइ रहिस. वोला पूछेइय्या-टोकेइय्या धन मदद करेइय्या कऊनो नइ रहिस. वो ह अकेल्लाच रोहतक जिला अस्पताल चले गे अऊ भारी झझकत अपन छाती के आपरेसन के बारे मं पूछताछ करिस.

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ट्रांस मरद मन सेती येकर उपाय बनेच कम हवय. ओकर मामला मं जीएएस ला स्त्री रोग विशेषज्ञ, मूत्र रोग विशेषज्ञ अऊ एक पुनर्निर्माण करेइय्या प्लास्टिक सर्जन समेत ये काम मं भारी माहिर लोगन मन के जरूरत होथे

वोला जऊन जुवाब मिलिस, ओकर ले कतको जानकारी आगू मं आइस.

वोला बताय गीस के वो ह जरे रोगी के रूप मं छाती के आपरेसन करवाय सकत हे. सड़क धन कउनो दीगर अलहन मं जरे लोगन मन के इलाज सरकारी अस्पताल मन मं बर्न विभाग मं करे जाथे. फेर सुमित ला सफ्फा-सफ्फा कागजात मं झूठ कहे अऊ जरे रोगी के रूप मं इलाज सेती पंजीयन कराय ला कहे गे रहिस. फेर वो आपरेसन के कऊनो जिकर नइ करे गे रहिस जेन ला असल मं वो ह चाहत रहिस. वोला ये घलो बताय गे रहिस के वोला पइसा देय ला नइ परय. फेर कऊनो नियम कानून सरकारी अस्पताल मन मं छाती बनवाय के आपरेसन धन जरे के आपरेसन मं अइसने कोनो छूट के प्रावधान नइ ये.

सुमित के आस रहिस के ओकर साध जल्दी पूरा हो जाही, फेर इही आस मं डेढ़ बछर बीत गे. ओकर मन असांत होगे रहिस जेन ह एक किसम ले ओकर एक ठन बड़े दाम चुकाय ला परिस.

“डाक्टर लोगन मन हमन ला संदेहां के नजर ले देखेंव. वो मन मोला भरमायेंव. कहेंव के तोला अइसने आपरेसन कराय के काय जरूरत? तंय अइसनेच कोनो माइलोगन के संग रहे सकथस. उहाँ के छै सात डाक्टर मन अइसने सवाल करत रहेंव.” सवाल मन ला सुरता करत सुमित कहिथे.

“मोला सुरता हवय के मंय दू तीन बेर 500-700 सवाल वाले फार्म भरे रहेंव. ये सवाल रोगी के सेहत अऊ परिवार के जम्मो जानकारी, दिमागी हालत अऊ नसा-पानी, गर होवय, त ओकर ले जुरे रहिस. फेर किसोर उमर के सुमित के मामला मं वो लोगन मन टालमटोल करत रहेंव.” सुमित के मुताबिक, “वो मन ला ये समझ मं नइ आइस के मंय अपन देह ले खुस नइ यों, येकरे बर आपरेसन कराय ला चाहत हवं.”

सहानुभूति के कमी के संगे संग, भारत मं ट्रांस समाज ह जब जीएएस सर्जरी कराय बर आथें, त वो लोगन मन बर जरूरी माहिर डाक्टर मन के कमी के सामना करे ला परथे. ये कमी पहिली घलो रहिस अऊ अभू घलो बने हवय.

फेर मरद ले माईलोगन के जीएएस मं अक्सर दू ठन माई आपरेसन (छाती अऊ जननांग) होथे. माइलोगन ले मरद सेती सात ठन माई आपरेसन के जटिल कड़ी सामिल होथे. ये मन मं पहिली, देह के ऊपर धन टॉप सर्जरी मं छाती ला फिर ले बनाय धन निकारे सामिल हवय.

“जब मंय [साल 2012 के बखत] पढ़त रहेंव, मेडिकल पढ़ई मं अइसने इलाज के नांव तक नइ रहिस. हमर प्लास्टिक पाठ्यक्रम मं लिंग बनाय के काम रहिस, फेर ये ह कऊनो अलहन सेती रहिस. अब चीज मन बदल गे हवंय,” नई दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल मं प्लास्टिक सर्जरी विभाग के उपाध्यक्ष डॉ. भीम सिंह नंदा सुरता करत कहिथे.

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साल 2019 मं ट्रांसजेंडर परसन एक्ट मं किन्नर लोगन मन के जरूरत मुताबिक पाठ्यक्रम अऊ रिसर्च के समीक्षा करे गीस. फेर करीबन पांच बछर बाद, एसआरएस ला भारत के ट्रांसजेंडर समाज सेती सुभीता अऊ कम खरचा वाले बनाय सेती सरकार ह बड़े पैमाना मं कऊनो कोसिस नइ करे हवय

साल 2019 मं ट्रांसजेंडर परसन एक्ट मं किन्नर लोगन मन के जरूरत मुताबिक पाठ्यक्रम अऊ रिसर्च के समीक्षा करे गीस. फेर करीबन पांच बछर बाद, एसआरएस ला भारत के ट्रांसजेंडर समाज सेती सुभीता अऊ कम खरचा वाले बनाय सेती सरकार ह बड़े पैमाना मं कऊनो कोसिस नइ करे हवय. सरकारी अस्पताल मं एसआरएस सुविधा त कोसों दूरिहा हवय.

ट्रांस मरद मन बर येकर इलाज खास करके सीमित हवय. ये मामला मं जीएएस ला रोग विशेषज्ञ, मूत्र रोग विशेषज्ञ अऊ पुनर्निर्माण प्लास्टिक सर्जन समेत भारी माहिर डाक्टर मन के जरूरत परथे. तेलंगाना हिजड़ा इंटरसेक्स ट्रांसजेंडर समिति के ट्रांस मरद अऊ कार्यकर्ता कार्तिक बिट्टू कोंडैया कहिथें, “ये क्षेत्र मं प्रसिच्छ्न अऊ माहिर हुनर वाले बनेच कम डाक्टर हवंय, अऊ सरकारी अस्पताल मन मं त अऊ घलो कम हवंय.”

ट्रांस लोगन (किन्नर) मन बर दिमागी रोग के सरकारी इलाजं के हालत घलो ओतकेच खराब हवय. रोज के समस्या ले जूझे के संग, कऊनो घलो लिंग-पुष्टि आपरेसन के पहिली कानूनी सलाह के जरूरत होथे. ट्रांस लोगन मन ला जेंडर आइडेंटिटी डिसॉर्डर (लिंग पहिचान मं खराबी) के प्रमाणपत्र अऊ मनोवैज्ञानिक धन मनोचिकित्सक मन के जाँच रिपोर्ट के जरूरत परथे जेन ह येकर सबूत आय के वो ह ये इलाज के हकदार हवय. ये मापदंड मं बताय सहमति, पुष्टिकृत लिंग के रूप मं रहे के बखत, लिंग डिस्फोरिया के स्तर, उमर के जरूरत अऊ सोचे समझे के गारंटी के रूप मं जम्मो दिमागी सेहत के जाँच सामिल हवय. ये काम ह  मनोवैज्ञानिक धन मनोचिकित्सक के संग हफ्ता मं एक बेर ले लेके अधिक ले अधीन चार बेर तक ले चल सकथे.

साल 2014 मं सुप्रीम कोर्ट के फइसला के 10 बछर बाद, समाज ह ये बात मं एकराय हवय के सब्बो के, सहानुभूतिपूर्ण मानसिक स्वास्थ्य सेवा, चाहे रोज रोज के तालमेल बिठाये धन लिंग परिवर्तन के काम ला सुरु करे महत्तम आय, फेर ये ह एक ठन सपना बने हवय.

“जिला अस्पताल मं टॉप सर्जरी सेती मोर काउंसलिंग करीबन दू बछर तक ले चलिस.” सुमित कहिथे. आखिर मं साल 2016 मं कहूँ घलो जाय बंद करे देवंय.” एक सीमा के बाद मइनखे हधर जाथे.”

ये सब्बो ले हलाकान होय ले ओकर लिंग के पुष्टि के चाह ह बदले लगिस. फेर सुमित ह येला लेके जियादा ले जियादा जानकारी जुटाय मं लग गीस के वोला कइसने गम होईस, काय ये ह समान्य रहिस, एसआरएस मं काय रहिस अऊ भारत मं वो ह कहाँ येकर लाभ लेगे सकथे.

ये सब्बो  ला लुका के करत रहिस, काबर के वो अभू घलो अपन परिवार के संग रहत रहिस. वो ह मेंहदी लगाय अऊ दरजी के बूता सुरु कर दिस अऊ टॉप सर्जरी कराय के मन बनाके अपन आमदनी के कुछेक हिस्सा बचाय ला सुरु कर दिस.

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तीन जगा काम करे के बाद घलो सुमित ला गुजरा करे मुस्किल हो जाथे. वोल सरलग काम बूता नइ मिलय अऊ ओकर ऊपर 90,000 के करजा हवय जेन ला चुकता करे ला परही

साल 2022, सुमित ह एक घाओ अऊ कोसिस करिस, अपन ट्रांस मरद संगवारी संग रोहतक ले हरियाणा के हिसार जिला तक 33 कोस दुरिहा गीस. जिहां वो हा एक झिन निजी मनोवैज्ञानिक ले मिलिस, वो ह दू सत्र मं ओकर काउंसलिंग करिस अऊ 2,300 रूपिया फ़ीस लिस. वो ह बताइस के वो ह अवेइय्या दू हफ्ता के भीतरी टॉप सर्जरी के काबिल हवय.

वोला चार दिन तक ले हिसार के एक ठन निजी अस्पताल मं भर्ती कराय गे रहिस, जिहां आपरेसन समेत रहे के खरचा एक लाख रूपिया रहिस. सुमित कहिथे, “डाक्टर अऊ दीगर करमचारी मन मयारू रहिन. सरकारी अस्पताल मं मोला जेन अनुभव होय ओकर ले ये ह बिल्कुले अलग रहिस.”

फेर ये अनुभव थोकन बखत के रहिस.

रोहतक जइसने नानकन शहर मं, एलजीबीटीक्यूआईए+ समाज के दीगर लोगन मन जइसने टॉप सर्जरी के बात जियादा बखत छुपे नइ सकिस. आखिर वो ह अबके आगू मं आगे. ओकर परिवार ये बात ला सहे नइ सकिस. सर्जरी होय के कुछेक दिन बीते जब वो ह लहुंट के सुमित ह रोहतक आइस त देखथे के ओकर जम्मो समान बहिर फेंकाय हवय. “घर के लोगन मन मोला निकार दीन .बिन कऊनो किसिम के मदद के मोला छोड़ दीन. मोर हालत के वो मन ला कऊनो चिंता नइ रहिस.” वइसे सुमित टॉप सर्जरी के बाद घलो, कानूनी रूप मं अभू घलो नोनी रहिस. संपत्ति ऊपर दावा करे के संदेहा करे लगिन. “कुछेक लोगन मन मोला समझाइन के मोला काम करे ला चाही अऊ मरद के जिम्मेवारी ला उठाय ला चाही.”

जीएएस के बाद, मरीज मन ला कुछेक महिना सुस्ताय के सलाह देय जाथे, कउनो दिक्कत होय के हलत मं अस्पताल तीर मं रहे के  सलाह देय जाथे. येकर ले ट्रांस मइनखे, खास करके कम आमदनी अऊ कोनहा मं परे लोगन मन के ऊपर खरचा अऊ दूसर कतको किसिम के भार बढ़ जाथे. सुमित के हिसार आय-जाय मं 700 रूपिया अऊ तीन घंटा लगथे. वो ह इहाँ कम से कम दस बेर आय जाय रहिस.

टॉप सर्जरी के बाद, मरीज ला अपन छाती के चरों डहर कसके बंधाय कपड़ा जेन ला बाइंडर घलो कहे जाथे, बांधे ला परथे. डॉ. भीम सिंह नंदा बताथें, “भारत के गरम आबोहवा मं येला देखत (अधिकतर) रोगी मन जेकर करा पास एसी नइ हवय, जड़कल्ला मं सर्जरी कराय ला पसंद करथें.” वो ह कहिथें पछिना ले आपरेसन के टांका के तीर मं घाव होय के अंदेसा बढ़ जाथे.

सुमित के आपरेसन होइस अऊ वोला उत्तर भारत के भारी घाम के बखत मं वोला बहिर निकार देय गीस. [येकर बाद के हफ्ता] दरद भरे रहिस, जइसने कोनो मोर हड्डी मन ला खरोंच दे होय. बाइंडर सेती हिले-डुले मुस्किल हो गे रहिस. वो ह सुरता करत कहिथे. मंय अपन ट्रांस पहिचान ला छिपाय बगैर एक ठन जगा मं भाड़ा मं रहे ला चाहत रहेंव फेर छै झिन मकान मालिक मन मोला खोली नइ दीन. सुमित कहिथे, “अपन सर्जरी करवाय के बाद मंय महिना भर घलो सुस्ताय नइ सकेंव.” अपन टॉप सर्जरी के नौ दिन बाद अऊ घर मं चार दिन बाद जब ओकर दाई ददा वोला अपन घर ले बहिर निकार दीन, त सुमित ह दू खोली के घर मं अकेल्ला रहे लगिस, बिना लुकाय के वो ह कऊन आय.

आज, सुमित रोहतक मेंहदी लागथे, दर्जी के काम करथे, चाय के दुकान मं काम करथे अऊ रोहतक मं गिग- मजूर आय. वो ह मुस्किल ले महिना मं 5-7,000 रूपिया कमा लेथे, जेकर बड़े हिस्सा भाड़ा, रासन पानी, बिजली बिल अऊ करजा चुकता करे मं चले जाथे. सुमित ह छाती के आपरेसन सेती एक लाख रूपिया भरे रहिस. येकर 30 हजार रूपिया वो ह साल 2016 ले 2022 तक मं बचे रहिस बाकी 70,000 रूपिया वो ह महाजन मन ले पांच फीसदी बियाज मं अऊ कुछु संगवारी मन ले उधार लेगे रहिस.

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डेरी: सुमित ह अपन टॉप सर्जरी सेती पइसा जुटाय बर मेंहदी लगाय अऊ दर्जी के काम करिस. जउनि: सुमित घर मं मेंहदी डिजाइन के अभियास करत हवय

जनवरी 2024 मं सुमित के मुड़ मं 90,000 रूपिया करजा के बोझा रहिस. बियाज भरे मं 4,000 रूपिया महिना मं चले जावय. मोला समझ मं नइ आवत हवय के मंय अपन कमई के थोकन रकम मं गुजारा अऊ करजा ला कइसने चुकता करहूँ. मोला सरलग काम बूता घलो नइ मिलय, सुमित हिसाब लगव्त कहिथे. ओकर दस बछर के लंबा जिनगी मं आय बदलाव ह वोला हलकान कर दे हवय अऊ वोला रतिहा मं नींद नइ परय. अब त हमर दम घुटे लगत हवय. घर मं अकेल्ला रहे सेती बेचैनी होथे, डर लागथे, मन घबराथे. पहिली अइसने नइ होवत रहिस.”

ओकर घर के लोगन मन –जेन मन वोला बहिर निकारे के बछर भर बाद ओकर ले बात सुरु करिन – कभू कभू गर वो ह पइसा मांगथे त ओकर मदद करथें.

सुमित बर ट्रांस मरद होय कऊनो गरब के बात नो हे –भारत मं अधिकतर लोगन मन बर ये ह एक ठन विशेषाधिकार हवय. दलित लोगन मन के बातेच छोड़ देवव. समाज मं ये बात उजागर होय के डर लगे रहिथे के वो ह असल मरद नइ ये. बिन छाती के ओकर बर छोटे मोटे बूता करे आसान होथे, फेर दाढ़ी-मेछा धन भारी आवाज जइसने मरद के लच्छन नइ होय अक्सर वोला संदेहा के नजर मं ला देथे. एकर छोड़ ओकर जनम के नांव घलो कानूनन बदले नइ ये.

वो ह अब तक ले हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी सेती तियार नइ ये. वो ह येकर खराब असर ला लेके चिंता करत हवय. सुमित कहिथे, “फेर मंय, आर्थिक रूप ले थिर होय के बाद येला कराहूँ.”

वो ह बखत ला देख-देख के फइसला करत हवय.

अपन टॉप सर्जरी के छै महिना बाद, सुमित ह सामाजिक न्याय अऊ अधिकारिता मंत्रालय करा ट्रांस मइनखे के रूप मं पंजीयन कराइस, जेकर बाद वोला रास्ट्रीय स्तर मं मान्यता प्राप्त ट्रांसजेंडर प्रमाणपत्र अऊ पहिचान पत्र घलो बांटे गीस. अब वो ह एक ठन खास योजना आजीविका अऊ उद्यम बर सीमांत मइनखे के मदद ( स्माइल मतलब एसएमआईएलई) के लाभ लेय सकत हवय. ये योजना भारत के सबले महतम आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत ट्रांसजेंडर लोगन मन के लिंग पुष्टि ले जुरे सब्बो इलाज के सेवा देथे.

सुमित कहिथे, “मोला अब तक ले पता नइ रहिस के पूरा बदलाव सेती मोला अऊ कऊन सर्जरी के जरूरत हवय. मंय वोला धीरे-धीरे कराहूँ. मंय सब्बो कागजात मं अपन नांव घलो बदल दिहूँ. ये त एक ठन सुरुवात आय.”

ये कहिनी भारत मं यौन अऊ लैंगिक अतियाचार (एसजीबीवी) के मार झेले लोगन मन खातिर आगू अवेइय्या समाजिक , संस्थागत अऊ संरचनात्मक बाधा ऊपर केंद्रित राष्ट्रव्यापी रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के हिस्सा आय. ये प्रोजेक्ट ला डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स इंडिया के मदद मिले हवय.

सुरच्छा सेती कहिनी मं जम्मो लोगन अऊ परिवार के नांव बदल दे गे हवय.

अनुवाद: निर्मल कुमार साहू

Ekta Sonawane

একতা সোনাওয়ানে স্বাধীনভাবে কর্মরত সাংবাদিক। জাতি, শ্রেণি এবং লিঙ্গ মিলে পরিচিতির যে পরিসর, সেই বিষয়ে তিনি লেখালিখি করেন।

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২০১৫ সালের পারি ফেলো এবং আইসিএফজে নাইট ফেলো অনুভা ভোসলে একজন স্বতন্ত্র সাংবাদিক। তাঁর লেখা “মাদার, হোয়্যারস মাই কান্ট্রি?” বইটি একাধারে মণিপুরের সামাজিক অস্থিরতা তথা আর্মড ফোর্সেস স্পেশাল পাওয়ারস অ্যাক্ট এর প্রভাব বিষয়ক এক গুরুত্বপূর্ণ দলিল।

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