“ओसोब भोट-टोट छारो, संध्या नामार आगे अनेक काज गो... (का भोट-फोट! अन्हार होखे के पहिले हजार काम पूरा करे के बा...) आई, जदि एकर महक बरदास्त कर सकीं, त इहंवा बइठीं,” मालती माल अपना लगे भूइंया ओरी देखावत कहली. ऊ हमरा मेहरारू लोग के आपन टोली में आवे के कहे लगली. ओह लोग के टोली गरमी आउर धूल से बेफिकिर पियाज के एगो बड़का ढेरी लगे बइठल काम कर रहल बा. हम कोई एक हफ्ता से एह गांव में मेहरारू लोग संगे घूम रहल बानी, समय बिता रहल बानी आउर ओह लोग से आवे वाला चुनाव के बारे में सवाल कर रहल बानी.
अप्रिल सुरु भइल बा. पस्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के एह हिस्सा में पारा रोज जेका 41 डिग्री पहुंचल गइल बा. सांझ के 5 बजे भी एह माल पहाड़िया झोपड़ी में प्रचंड गरमी पड़त बा. एह इलाका में आस-पास एगो पत्ता नइखे खरकत. कच्चा पियाज के झांस (तेज महक) हवा में फइलल बा.
मेहरारू लोग आपन झोंपड़ी से मुस्किल से 50 मीटर दूर एगो खुलल जगह पर लागल पियाज के ढेरी के चारों ओरी घेरा बना के बइठल बा. ऊ लोग हंसिया से प्याज के डंठल सभ छांटे में लागल बा. दुपहरिया के झोकरा (झुलसा) देवे वाला गरमी, कांच पियाज के झांस के बीच ओह लोग के चेहरा चमकत बा. जे धुन के मिहनत करेला, ओकरे चेहरा पर अइसे चमकेला.
“ई हमार देस (गांव) नइखे. पछिला सात-आठ बरिस से हमनी इहंवा आ रहल बानी,” साठ पार कर चुकल मालती कहे लगली. ऊ आउर टोली के दोसर मेहरारू लोग माल पहाड़िया आदिवासी समुदाय से बा. समुदाय आधिकारिक तौर पर राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचानल आउर सबले कमजोर आदिवासी समूह में से गिनल जाला.
“हमनी के गांव गोआस कालिकापुर में रोजगार के बहुते किल्लत बा,” ऊ कहली. मुर्शिदाबाद जिला के रानीनगर 1 ब्लॉक में गोआस से 30 से जादे परिवार आके अब इहंई रहत बा. ऊ लोग बिशुरपुकुर गांव के सीमा पर कुछ दिन खातिर बनावल झोपड़ी सभ के बस्ती में रहेला आउर गांव लगे पड़े वाला खेत में काम करेला.
हमरा पता चलल कि ऊ लोग भोट देवे खातिर आपन गांव जाए वाला बा. गांव में लोकसभा चुनाव 7 मई के हो गइल. गोआस कालिकापुर, बिशुरपुकुर गांव से कोई 60 किमी दूर बा.
रानीगंज 1 ब्लॉक से बेलडांगा 1 ब्लॉक में उनकर झोपड़ी तक, माल पहाड़िया लोग तालुका के भीतरी काम खोजे खातिर पलायन करके आवत रहेला. एकरा से एह जिला में प्रवासी मजूर लोग के अनिश्चितता से भरल जिनगी के बारे में पता चलेला.
माल पहाड़िया आदिवासी लोग के बस्ती पस्चिम बंगाल के कइएक जिला में छितराइल बा. अकेले मुर्शिदाबाद में ऊ लोग के आबादी 14,064 बा. “हमनी के समुदाय के मूल निवास राजमहल पहाड़ी लगे के इलाका सभ में बा. हमार लोग इहंवा से झारखंड (जहंवा राजमहल पर्वत शृंखला बा) आउर पस्चिम बंगाल के अलग-अलग इलाका में पलायन कर गइल,” रामजीवन अहारी कहले. ऊ झारखंड के दुमका से आवे वाला एगो विद्वान आउर समुदाय के कार्यकर्ता बाड़न.
पस्चिम बंगाल से उलट, झारखंड में माल पहाड़िया लोग बिसेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के रूप में पंजीकृत बा. ऊ एकर पुष्टि करत कहलन, “अलग-अलग राज्य में एक्के समुदाय के स्थिति अतिसंवेदनशील समुदाय पर सरकार के अलग-अलग रुख बतावेला.”
आपन घर से दूर बस्ती में ऊ लोग काहे रहेला, एकरा बारे में मालती समझावत कहली, “इहंवा के लोग के आपन खेत में काम खातिर हमनी के जरूरत बा. बोवाई आ कटाई घरिया हमनी के 250 रुपइया के दिहाड़ी मिल जाला.” ऊ इहो बतइली कि कबो-कबो कवनो दिलदार किसान आपन नयका फसल के एगो छोट हिस्सा भी दे देवेला.
मुर्शिदाबाद में स्थानीय तौर पर खेत में काम करे वाला मजूर लोग के भारी किल्लत बा. असल में जिला के लोग बड़ तादाद में दिहाड़ी मजूरी खातिर बाहिर चल जाला. आदिवासी किसान लोग एह कमी के पूरा करेला. बेलडांगा 1 ब्लॉक के खेतिहर मजूर लोग एक दिन के 600 रुपइया मजूरी लेवेला. उहंई अलग-अलग तालुका से आवे वाला प्रवासी आदिवासी मजूर में से जादे करके मेहरारू लोग बा, आउर एकर अधिया मजूरी पर काम करेला.
“खेत से एक बेरा पियाज उखाड़ के गांवे लइला के बाद हमनी के काम आगू बढ़ेला,” अंजलि माल बतइली. पातर-दुबर आउर सिरिफ 19 बरिस के अंजलि पियाज काटे के मजूरी करेली.
ऊ लोग फाड़िया (बिचौलिया) के बेचे आउर राज्य भर में आउर एकरा बाहिर दूर-दराज के इलाका में भेजे खातिर पियाज के तइयार करत बा. “हमनी हंसिया से पियाज के डंठल काट दीहिला. एह में लागल माटी, फालतू छिलका आउर जड़ काटल-छांटल जाला. आखिर में पियाज के बोरी में कस देवल जाला.” 40 किलो प्याज के एगो बोरी तइयार करे खातिर 20 रुइपया मिलेला. “जेतना जादे काम, ओतना जादे पइसा. एहि से, हमनी हरदम काम करत रहिला. ई काम खेत के काम से अलग बा,” उहंवा त काम के घंटा तय रहेला.
चालीस पार कर चुकल साधन मंडल, सुरेस मंडल, धोनू मंडल आउर राखोहोरी बिस्वास लोग बिशुरपुकुर के अइसन किसान लोग बा, जे आदिवासी लोग के काम पर रखेला. ऊ लोग के कहनाम बा कि सालो भर “बीच-बीच में” खेत पर काम करे वाला मजूर के जरूरत पड़त रहेला. हां, फसल के मौसम में ई मांग चरम पर रहेला. किसान लोग बतइलक कि जादे करके माल पहाड़िया आउर संथाल आदिवासी मेहरारू लोग एह इलाका में गांवन में काम करे आवेली. आउर सभे के मानना बा, “ऊ लोग बिना हमनी खातिर खेती-किसानी संभव नइखे.”
ई काम सांचो में बहुते मिहनत आउर समय मांगेला. आपन दूनो हाथ से पियाज छांटे में लागल मालती कहली, “हमनी के दुपहरिया के खाना बनावे खातिर बहुते मुस्किल से समय मिलेला...” ऊ कहली, “बेलो होय जाए. कोनोमोते डूटो चाल फुटिये नी. खाबार-दाबारेर अनेक दाम गो... (खाना पकावे में बहुते देर हो जाला. हमनी कवनो तरह हाली-हाली में माड़-भात बना के खा लीहिला. खाए के सामान केतना महंगा हो गइल बा).” रोज के खेत के काम पूरा हो जाला, तब जाके मेहरारू लोग घर के झाड़ू-टटका, बरतन बासन में लागेला. फेरु नहाला आउर रात के खाए के तइयारी में लाग जाला.
“हमनी के दिनो भर कमजोरी बुझात रहेला,” ऊ कहली. हाले में भइल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) से एकर कारण पता चलेला. एह में बतावल गइल बा कि जिला के सभे मेहरारू आउर लरिकन सभ में खून के कमी बढ़ गइल बा. इहे ना, इहंवा के 5 बरिस से कम के 40 प्रतिशत बच्चा लोग के देह के पूरा बिकास ना हो पावे, ऊ लोग लंबाई में छोट रह जाला.
का ऊ लोग के इहंवा से रासन ना भेंटाए?
“ना, हमनी के रासन कार्ड त हमनी के गांव के बा. उहंवा हमनी के परिवार के लोग रासन उठावेला. जब घरे जाइला, त अपना संगे तनी-मनी अनाज ले आइला,” मालती समझइली. ऊ सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत मिले वाला रासन के जिकिर करत बाड़ी. ऊ इहो कहली, “कोसिस त इहे रहेला कि इहंवा कुछो कीने के ना पड़े. जेतना संभव होखे, ओतना बचा के हमनी पइसा घरे भेज दीहिला.”
मेहरारू लोग जान के अचरज में आ गइल कि वन नेशन वन राशन कार्ड (ओएनओआरसी) जइसन राष्ट्रव्यापी खाद्य सुरक्षा योजना वास्तव में ओह लोग जइसन आंतरिक प्रवासी लोग के फायदा पहुंचा सकेला. ऊ पूछेली, “आज ले केहू एकरा बारे में ना बतइलक. हमनी त लिख-लोढ़ा, पढ़-पत्थर (अनपढ़) बानी. हमनी के कइसे पता चली?”
अंजली बतइली, “हम कबो स्कूल के मुंह ना देखनी. माई, पांचे बरिस के रहीं, त मर गइली. बाप हमनी तीन ठो लइकी लोग के छोड़ के चल गइलन. पड़ोसी लोग पाल-पोस के बड़ा कइलक.” तीनों बहिन लोग बहुते छोट उमिर में खेत पर मजूरी करे लागल. ओह लोग के बालिग होखे के पहिलहीं बियाह हो गइल. उन्नीस बरिस के अंजलि के 3 बरिस के लइकी अंकिता बाड़ी. “कबो पढ़ ना पइनी. कइसहूं आपन नाम लिखे के सिखनी,” ऊ कहली. ऊ बतइली कि उनकर समुदाय के जादे करके किसोर उमिर के लरिकन लोग अब स्कूल ना जाए. उनका उमिर के बहुते बच्चा सभ अनपढ़ बा.
“हम आपन लरिकन सभ संगे ई नइखी होखे देवे के चाहत. अगिला बरिस हम आपन लइकी के स्कूल में नाम लिखावे के चाहत बानी. ना त ऊ कुछो ना सिख पाई.” उनकर बोली में चिंता साफ नजर आवत रहे.
कवन स्कूल? बिसुरपुकुर प्राथमिक विद्यालय?
“ना, हमनी के लरिका लोग इहंवा स्कूल ना जाए. छोटो बच्चा सभ खिचड़ी स्कूल (आंगनबाड़ी) ना जाला,” ऊ बतइली. शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के बावजूद एह समुदाय के साथ होखे वाला भेदभाव अंजलि के बोली में छलक आइल, “रउआ इहंवा जेतना लरिकन सभ लउकत बा, केहू स्कूल ना जाए. एह में कइएक जे कालिकापुर में बा, ऊ लोग जाला. बाकिर ऊ लोग हमनी के काम में मदद करे इहंवा आवेला, एह चलते ओह लोग के पढ़ाई भी बीच-बीच में छूट जाला.”
साल 2022 में भइल एगो अध्ययन में पावल गइल कि माल पहाड़िया आउर खास करके मेहरारू लोग के बीच पढ़ाई-लिखाई क्रम से 49.10 प्रतिशत आउर 36.50 प्रतिशत जइसन चिंताजनक स्तर पर बा. उहंई पस्चिम बंगाल में आदिवासी लोग के पूरा राज्य में साक्षरता दर मरद लोग खातिर 68.17 प्रतिशत आ मेहरारू लोग के बीच 47.71 प्रतिशत पावल गइल.
हम देखनी कि पांच-छव बरिस के छोट-छोट लइकी लोग आपन माई आउर दादी के पियाज जुटावे आउर बांस के टोकरी में धरे में मदद करत रहे. दू ठो किसोर उमिर के लइका पियाज के टोकरी से उठा-उठा के पिलास्टिक के बड़ बोरा में भरत बा. उमिर, लिंग आउर ताकत के हिसाब से मिहनत बांटल देखाई पड़ल. अंजलि धीरे से कहली, “जातो हात, तोतो बोस्ता, तोतो टाका (जादे हाथ, जादे काम, त जादे पइसा).”
अंजलि पहिल बेर लोकसभा चुनाव खातिर वोट डाले वाला बाड़ी. “हम ग्राम पंचायत चुनाव में भोट डालले रहीं. बाकिर अब पहिल बेर अइसन बड़ चुनाव खातिर भोट करम!” ऊ हंसत कहली. “हम जाएम. एह बस्ती के सभे लोग भोट डाले आपन गांव जाई. ना त ऊ लोग हमनी के भुलाइए जाई.”
रउआ लोग आपन लरिकन सभ खातिर शिक्षा के मांग करम?
“केकरा से मांगीं?” अंजलित तनी देर खातिर ठिठकलीस फेरु अपने सवाल के जवाब देली. “हमनी के भोट इंहवा नइखे (बिसुरपुकुर में), त हमनी खातिर के सोची, आउर हमनी उहंवा (गोआस) पूरा साल ना रहीं. त उहंवा भी हमनी जादे कुछ ना मांग कर सकीं. आमार ना एखानेर, ना ओखानेर (हमनी त ना इहां के बानी, ना उहां के.)”
उनकर कहनाम बा कि चुनाव में कवनो उम्मीदवार से का उम्मीद करे के चाहीं, उनकरा जादे नइखे पता. “हम बस एतने चाहत बानी कि अंकिता जब पांच बरिस के हो जास, त उनकरा हम स्कूल में नाम लिखवा दीहीं आउर गांव में उनकरे संगे रहीं. हम इहंवा लउट के नइखी आवे के चाहत. बाकिर के जानत बा, का होई?” ऊ ठंडा सांस भरली.
“रोजी-रोटी के बिना जियल मुस्किल बा,” एगो दोसर अंजलिए जेतना 19 बरिस के माई, मधुमिता माल उनकर शंका दोहरावत कहली. “हमनी के बचवा लोग स्कूल ना गइल, त हमनिए जइसन रह जाई,” उनकर बोली में दरद रहे. कम उमिर के माई लोग आश्रम होस्टल , चाहे शिक्षाश्री जइसन राज्य के बिसेष योजना के बारे में नइखे पता. ऊ लोग एकलव्य मॉडल डे बोर्डिंग स्कूल (ईएमडीबीएस) जइसन स्कूल के बारे में भी अनजान बा जेकर उद्देश्य आदिवासी बच्चा लोग के बीच शिक्षा के बढ़ावा देवल बा.
इहंवा ले कि बहरामपुर, जेकरा भीतरी बिशुरपुकुर गांव आवेला, में 1999 के बाद सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी भी आदिवासी बच्चा लोग के पढ़ाई-लिखाई के मसला अंठियवले रहल. ई त अबकी के 2024 के घोषणापत्र में ऊ लोग गरीब, खास करके अनुसूचित जाति आउर अनुसूचित जनजाति के लोग खातिर हर ब्लॉक में आवासीय विद्यालय के बादा कइले बा. बाकिर मेहरारू लोग के ई सभ नइखे मालूम.
“जबले केहू बताई ना, कइसे जानम,” मधुमिता कहली.
“दीदी, हमनी लगे तरह-तरह के कार्ड बा- वोटर आई कार्ड, आधार कार्ड, जॉब कार्ड, स्वास्थ्य साथी इंश्योरेस कार्ड, राशन कार्ड,” 19 बरिस के सोनामोनी माल बतइली. एगो आउर कम उमिर के माई भी आपन दू ठो लरिकन के स्कूल में डाले खातिर बेचैन बाड़ी. “हम भोट देतीं. बाकिर अबकि हमार नाम भोटर लिस्ट में नइखे.”
“भोट दिये आबार की लाभ होबे? (भोट देहम, त का मिली?) हम त केतना साल से भोट देत आवत बानी,” 70 बरिस के साबित्री माल (नाम बदलल बा) मेहरारू लोग के बीच ठहाका मारत कहली.
“हमरा त खाली 1,000 रुपइया के वृद्धावस्था पेंसन मिलेला, आउर कुछुओ ना. हमनी के गांव में काम के बहुते मारा-मारी बा. बाकिर हमनी उहंई भोट डाल सकत बानी.” सत्तर बरिस के बूढ़ मेहरारू शिकायत करत कहली. “अबकी तीन बरिस हो गइल, ऊ लोग हमनी के गांव में “एकशौ दीनार काज” ना देलक.” उनकर मतलब मनरेगा योजना के तहत मिले वाला ‘100 दिन के काम’ से बा.
अंजलि प्रधानमंत्री आवास योजना के चरचा करत कहली, “सरकार हमर परिवार के मकान देलक. बाकिर हमनी उहंवा रह ना सकीं काहेकि उहंवा कामे नइखे. जदि हमनी के एकशौ दिनर काज (मनरेगा) मिलित, त इहंवा ना आवे के पड़ित.”
काम-काज के बहुते मारा-मारी होखे से भूमिहीन समुदाय के लोग बड़ पैमाना पर दूर-दराज पलायन खातिर मजबूर बा. साबित्री बतइली कि गोआस कालिकापुर के जादे करके नयका उमिर के लरिका लोग काम खोजे बेंगलुरु, चाहे केरल चल जाला. एगो निस्चित उमिर के बाद मरद लोग आपन गांव लगे काम कइल पसंद करेला. बाकिर मजबूरी बा कि उहंवा खेत में पर्याप्त काम नइखे. एहि से केतना लोग आपन ब्लॉक, रानीनगर 1 में ईंट-भट्ठा पर काम करके कमाई करेला.
“जे मेहरारू लोग ईंट-भट्ठा पर काम ना करे चाहे, ऊ आपन छोट लइका सभ संगे दोसर गांव चल जाली,” साबित्री कहली. “अब एह उमिर में हम भाटा (भट्ठा) पर काम ना कर सकीं. पेट भरे खातिर इहंवा आवे के सुरु कइनी. हमनी के डेरा में हमार जइसन बूढ़ लोग लगे भी कुछ बकरी सभ बा. हम सभ के चरावे ले जाइला,” ऊ कहली. उनकर टोली के कोई जब भी संभव होखेला, “गोआस जाके अनाज आवेला. हमनी गरीब बानी, हमनी कुछो कीन ना सकीं.”
पियाज के मौसम खतम भइला पर का होखेला? का ऊ लोग गोआस लउट जाला?
अंजलि कहली, “पियाज काटे, बोरा में बंद करे के बाद, तिल, जूट आउर तनी खोरार धान (बिना बरसात वाला मौसम) बोए के समय आवेला.” असल में साल के एह बखत से लेके बीच जून तक खेती के काम बढ़ जाला, “आदिवासी लोग जादे से जादे पइसा कमाए खातिर आपन लरिकन सभ के भी बस्ती ले के आवेला.”
नयका उमिर के खेतिहर मजूर समझावत कहलन, फसल चक्र के बीच खेत में काम कम हो जाला, कमाई कम हो जाला. बाकिर अलग-अलग काम ना मिले से पलायन करे वाला मजूर लोग के उलट, ऊ लोग उहंई रहेला, आपन गांव ना लउटे. “हम जोगारेर काज, ठीके काज (राजमिस्त्री के हेल्पर के रूप में काम, ठिकेदारी के काम), जे कुछ भी हम कर सकत बानी, करिला. हमनी ई सभ झोपड़ी बइनले बानी आउर इहंई रहिला. एक झोपड़ी खातिर हमनी के 250 रुपइया किराया लागेला.”
“इहंवा हमनी के हाल लेवे केहू ना आवे. ना कवनो नेता, ना कोई... रउआ अपने देखीं,” साबित्री कहली.
हम बस्ती ओरी जाए वाला पातर गली में निकल गइनी. चौदह बरिस के सोनाली हमरा रस्ता देखावत रहस. ऊ 20 लीटर के बालटी में पानी ढोके आपन झोपड़ी ले जात रहस. “हम तलाब पर नहाए गइल रहीं. उहंई से बालटी भर लइनी. हमनी के बस्ती में पानी ना आवे. तलाब सूख गइल बा. का कइल जाव?” जवन तलाब के ऊ बात करत बाड़ी, ऊ बस्ती से कोई 200 मीटर दूर पड़ेला. ई उहे जगह बा जहंवा बरसात में जूट के काटल फसल के सड़ावे- तना से रेसा अलग करे के काम कइल जाला. ई पानी आम आदमी खातिर बहुते गंदा आउर रोग फइलावे वाला बा.
झोपड़ी के भीतर गील कपड़ा बदले खातिर घुसत ऊ कहली, “ई हमनी के घर बा. हम इहंवा बाबा संगे रहिला.” हम बाहिरे इंतिजारी ताकत रहीं. बांस के टहनी आउर जूट के लकड़ी से घेर के बनावल कमरा. भूइंया माटी आउर गाय के गोबर से लीपल रहे. कहूं कवनो आड़ ना रहे. तिरपाल के चद्दर से ढंकल बांस आउर पुआल के छत बांस के खंभा सभ पर टिकावल रहे.
सोनाली आपन केस झाड़त तीन संकोच से पूछली, “रउआ भीतरी आएम का?” लकड़ी के बीच के फांक से जे ढल रहल दिन के अन्जोर आवत रहे, ओह में 10 x 10 फीट के झोपड़ी के भीतरी खाली हिस्सा देखाई पड़त रहे. ऊ कहली, “माई हमार भाई-बहिन संगे गोआस में रहेली.” उनकर माई रानी नगर I ब्लॉक के ईंट-भट्ठा पर काम करेली.
“घर बहुते इयाद आवेला. हमार मउसियो इहंवा आपन लइकी लोग संगे आइल बाड़ी. रात में हम उहे लोग लगे सुतिला,” सोनाली बतइली. खेत में काम करे खातिर उनकरा अठमा के बाद स्कूल छोड़े के पड़ल.
सोनाली तलाब पर फींचल कपड़ा सभ सूखावे खातिर बाहिर गइल, त हम झोपड़ी के निहारे लगनी. कोना में रखल एगो बेंच पर दू-चार ठो बरतन, आ आस-पास घूमत चूहा सभ से चाउर आउर दोसर खाए के समान बचावे खातिर रखल पिलास्टिक के ढक्कन वाला बालटी, पिलास्टिक के छोट-बड़ पानी रखे वाला डिब्बा आउर खाना पकावे खातिर भूइंया में बनावल माटी के चूल्हा. एतने भर ओह लोग के चौका रहे.
कुछ कपड़ा-लत्ता ऐने-ओने लटकावल रहे, एगो कोना में देवाल पर ऐनक आ ओकरा पर अटका के रखल कंघी, लपेटल पिलास्टिक के चटाई, एगो मच्छरदानी आउर पुरान कंबल. सभे सामान एह देवाल से दोसर देवाल ले तिरछा रखल बांस पर टांगल रहे. साफ रहे कि मिहनत के फल मीठ होखे वाला कहावत एह दुनिया में ना चले. इहंवा एके चीज अफरात में रहे, आउर उ रहे इहंवा से उहंवा ले, जगहे-जगहे लटकल, भूइंया पर फइलावल पियाज, आउर पियाज. बाप-बेटी के खून-पसीना के कमाई.
सोनाली भीतरी आवत कहली, “आईं रउआ के हम आपन शौचालय देखाईं.” हम उनका पाछू गइनी. बस्ती के एगो कोना में 32 फीट के पातर एगो जगह. अनाज रखे वाला बोरा सी के बनावल चद्दर से घेर के खुलल 4x4 फीट के शौचालय. ऊ कहली, “हमनी इहंई पेशाब करिले आउर शौच खातिर इहंवा से तनी दूर एगो खुलल जगह पर मैदान करे जाइले.” जइसही हम एक कदम आगू उठइनी, ऊ चेतइली, संभल के कहीं हमार गोड़ गंदा पर ना पड़ जाव.
बस्ती के साफ-सफाई के अइसन खराब हालत देख के हमरा मिशन निर्मल बांग्ला के रंगीन फोटो वाला संदेस सभ इयाद आवे लागल. ऊ संदेश हम एह माल पहाड़िया बस्ती आवे के रस्ता में देखले रहीं. पोस्टर पर राज्य सरकार के स्वच्छता परियोजना के विज्ञापन संगे-संगे, माड्डा के खुला में शौच मुक्त ग्राम पंचायत के दावा रहे.
शरम आउर संकोच हटावत सोनाली कहली, “महीना (माहवारी) घरिया हालत खस्ता रहेला. हमनी के अक्सरहा इंफेक्शन पकड़ लेवेला. पानी बिना कइसे काम चलाईं, बताईं? आउर तलाब के पानी एतना गंदा आउर कीच भरल रहेला.”
पिए के पानी कहंवा से आवेला?
“एगो पानी बेचे वाला (प्राइवेट) से कीन के लाइला. ऊ 20 लीटर के बोतल 10 रुपइया में देवेला. सांझ के आवेला आउर मेन रोड पर इंतिजारी करेला. उहंवा से हमनी के ओतना बड़ा आ भारी बोतल झोपड़ी ले ढ़ो के लावे के पड़ेला.”
“रउआ हमार सहेली से भेंट करम?” ऊ अचके उत्साह में आवत पूछली. “ई पायल बाड़ी. हमरा से बड़ बाड़ी, बाकिर हमनी दोस्त बानी.” सोनाली आपन नया-नया बियाह के आइल 18 बरिस के सखि से भेंट करइली. ऊ आपन झोपड़ी में भूइंया पर बइठ के रात के खाना बनावे के तइयारी में लागल रहस. पायल माल के घरवाला बेंगलुरु में निर्माण स्थल पर प्रवासी मजूर के रूप में काम करेलन.
पायल कहेली, “हम इहंवा आत-जात रहिला. हमार सास इहंई रहेली.” ऊ बतावे लगली, “गोआस में बहुते अकेला लागेला. एहि से हम इहंवा आके उनका संगे रहिला. हमार घरवाला के गइल बहुते समय हो गइल. पता ना ऊ कबले लउटिहन. सायद भोट डाले आवस.” सोनाली बतइली कि ऊ पेट से बाड़ी आउर पांच महीना हो चुकल बा. अइसन बतावत ऊ तनी लजा गइली.
इहंवा रउआ लोगनी के दवाई आउर जरूरी खोराक सभ मिलेला?
ऊ जवाब देली, “हां, आसा दीदी हमरा आयरन के गोली लाके देवेली. हमार सास हमरा (आईसीडीएस) केंद्र ले जाली. उहंवा हमरा कुछ दवाई सभ भी मिलल. हमार गोड़ अक्सरहा सूज जाला, आ बहुते दरद होखेला. इहंवा त हमरा लगे इलाज करवावे खातिर केहू नइखे. पियाज के काम एक बेरा खतम हो जाई, त हम गोआस लउट जाएम.”
कवनो इमरजेंसी में मेहरारू लोग के इहंवा से 3 किमी दूर बेलडांगा शहर जाए के पड़ेला. रोज के दवाई आउर जरूरी इलाज जइसन कवनो जरूरत पड़ला पर ऊ लोग मकरमपुर बजार जाएला. ई बजार बस्ती से कोई एक किमी दूर पड़ेला. पायल आ सोनाली दूनो लोग के परिवार लगे स्वास्थ्य साथी कार्ड बा. बाकिर ओह लोग के कहनाम बा, “इमरजेंसी में इहंवा इलाज करावे में बहुते दिक्कत आवेला.”
हमनी के बतकही के बीच में बस्ती में लइका सभ लगे दउड़ लगावत रहे. कोई 3 बरिस के अंकिता आउर मिलनस आ 6 बरिस के देबराज हमनी के आपन खिलौना देखावत रहे. ई छोट लरिकन लोग के दिमाग के कमाल रहे, ऊ लोग अपना हाथे ‘जुगाड़ू खिलौना’ बना के खेलत रहे. “हमनी इहंवा टीवी त बा ना. कबो-कबो मोबाइल पर गेम खेल लीहिला. हमरा कार्टून देखे के ना मिले,” अर्जेंटीना के फुटबॉल टीम के बुल्लू आउर उज्जर रंग के टी-शर्ट पहिनले देबराज शिकायत कइलन.
बस्ती के सभे लरिकन कुपोषित रहे. पायल बतइली, “ऊ लोग हरमेसा बोखार आउर पेट के समस्या से परेशान रहेला.” सोनाली कहली, “इहंवा मच्छर भी एगो बड़ समस्या बा.” मधुमिता भी बीच में बतकही करे लागत बाड़ी, “एक बेरा मच्छरदानी के भीतरी घुस गइनी, त आसमानो गिर पड़ो, हम बाहिर नइखी निकल सकत.” अइसन कहत ऊ हंसे लगली.
हम फेरु से चुनाव के बारे में पूछे के कोसिस कइनी. मधुमिता खुल के बोले लगली, “हम भोट त देवे जरूर जाएम. बाकिर रउआ जानत बानी, हमनी से भेंट करे इहंवा केहू ना आवे. हमनी एह से जाएनी कि हमनी के बूढ़-पुरनिया लोग कहेला कि मतदान कइल जरूरी बा.” अबकी उनकर पहिल मतदान बा. पायल के नाम अबले वोटर लिस्ट में नइखे आइल, काहे कि ऊ अबही 18 बरिस के भइली ह. सोनाली के कहनाम बा, “चार बरिस बाद हमरो गिनती भोटर लिस्ट में होई. तब हमहूं आपन भोट डाले जाएम. बाकिर एह लोग जइसन हम एतना हड़बड़ा के बियाह ना करम.” आउर फेरु हंसी-ठिठोली सुरु हो गइल.
बस्ती से निकले लगनी, त ओह लोग के हंसी आउर लरिकन के खेलकूद के हो-हल्ला धीरे-धीरे धीमा पड़े लागल आउर पियाज काटे वाला मेहरारू लोग के ऊंच आवाज सुनाई देवे लागल. ओह लोग के दिन भर के काम पूरा हो गइल रहे.
हम पूछनी, “बस्ती में केहू राउर माल पहाड़िया बोली बोलेला?”
“हड़िया (भात के सड़ा के बनल देसी दारू) आउर तनी चखना ले आईं. हम रउआ पहाड़िया गा के सुनाएम,” भानु माल तनी चिढ़ावत कहली. फेरु 65 बरिस के बिधवा खेतिहर मजूर आपन बोली में कुछ लाइन गा के सुनइली. ऊ तनी दुलार जतावत कहली, “हमार बोली में गीत सुने के मन बा, त गोआस आईं.”
“रउआ पहाड़िया बोले आवेला?” हम अंजलि ओरी घूम गइनी. ऊ आपन भाषा के बारे में अइसन सवाल सुन के तनी अकचका गइली. “हमार बोली? ना, हमरा ना आवे, गोआस में त खाली बूढ़े लोग हमनी के बोली में बतियावेला. इहंवा त लोग हमनी पर हंसेला. अब त आपन बोली भुला गइनी. हम त खाली बांग्ला बोलिला.”
अंजलि बस्ती ओरी आवत मेहरारू लोग के बतकही में आपन बात जोड़त कहली, “गोआस हमनी के घर बा, हमनी के दुनिया बा. आउर इहंवा हमनी के काम मिलेला. आगे भात... भोट, भाषा सब तार पोरे (पहिले भात, फिर भोट, भाषा आउर दोसर बात)”
अनुवादक: स्वर्ण कांता