वह विराट कोहली का भक्त था, और वह बाबर आज़म को पसंद करती थी. विराट के शतक बनाने पर वह उसे छेड़ता था, और जब बाबर आज़म ने बेहतरीन पारी खेली हो, तो वह उसे चिढ़ाती थी. क्रिकेट को लेकर होने वाला हंसी-मज़ाक़ आएशा और नुरुल हसन की प्रेम की भाषा थी, और इस हद तक परवान चढ़ती थी कि उनके आसपास के लोग ये जानकर अक्सर हैरान होते थे कि उन दोनों की 'अरेंज मैरिज [घरवालों द्वारा तय शादी]' हुई है.
जून 2023 में जब क्रिकेट विश्व कप का टेबल (समयसारिणी) आया, तो आएशा की आंखें चमक उठीं. भारत बनाम पाकिस्तान मुक़ाबला 14 अक्टूबर को गुजरात के अहमदाबाद में होना था. पश्चिम महाराष्ट्र में अपने माता-पिता के गांव राजाचे कुर्ले में आएशा (30) याद करती हैं, "मैंने नुरुल से कहा था कि हमें यह मैच स्टेडियम में देखना चाहिए. भारत और पाकिस्तान कम ही आमने-सामने होते हैं. यह एक असाधारण मौक़ा था, हम दोनों के पसंदीदा खिलाड़ियों को साथ खेलते देखने का."
बतौर सिविल इंजीनियर काम करने वाले नुरुल (30) ने कुछ फ़ोन कॉल किए और दो टिकटों का इंतज़ाम करने में कामयाब हुए, जो दोनों के लिए बहुत ख़ुशी की बात थी. आएशा तब तक अपनी गर्भावस्था के छठवें महीने में थीं, इसलिए उन्होंने सावधानीपूर्वक सतारा ज़िले के अपने गांव पुसेसावली से 750 किलोमीटर की यात्रा की योजना बनाई. ट्रेन की टिकटें बुक हो गईं और रहने की व्यवस्था कर ली गई. आख़िरकार वह दिन भी आ गया, लेकिन वह दोनों वहां नहीं पहुंच सके.
चौदह अक्टूबर, 2023 को जब सूरज आसमान में चढ़ा, तब नुरुल को गुज़रे एक महीना हो चुका था और आएशा की ज़िंदगी पूरी तरह बिखर गई थी.
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महाराष्ट्र के सतारा शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित गांव पुसेसावली में, 18 अगस्त, 2023 को एक स्क्रीनशॉट वायरल हुआ. गांव के 25 वर्षीय मुस्लिम लड़के आदिल बागवान को इंस्टाग्राम पर एक कमेंट में हिंदू देवताओं को गाली देते देखा गया था. आदिल का आज भी यही कहना है कि स्क्रीनशॉट फ़र्ज़ी था और फ़ोटोशॉप किया गया था, और यहां तक कि उसके इंस्टाग्राम पर दोस्तों ने भी असली कमेंट को नहीं देखा था.
हालांकि, क़ानून और व्यवस्था में कोई गड़बड़ी न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए पुसेसावली में मुस्लिम समुदाय के वरिष्ठ सदस्य उसे पुलिस के पास ले गए, और उनसे स्क्रीनशॉट की जांच करने को कहा. पुसेसावली गांव में एक गैराज चलाने वाले सिराज बागवान (47) ने बताया, "हमने यह भी कहा कि अगर आदिल दोषी पाया जाता है, तो उसे सज़ा मिलनी चाहिए और हम इसकी निंदा करेंगे. पुलिस ने आदिल का फ़ोन ज़ब्त कर लिया और उसके ख़िलाफ़ दो धर्मों के बीच वैमनस्य फैलाने के आरोप में शिकायत दर्ज की."
इसके बावजूद, सतारा में कट्टर हिंदू समूहों के सदस्यों ने अगले दिन पुसेसावली में एक रैली निकाली, जिसमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा का आह्वान किया गया. उन्होंने क़ानून-व्यवस्था अपने हाथ में लेने की भी धमकी दी.
सिराज और मुस्लिम समुदाय के अन्य वरिष्ठ सदस्य, जिन्होंने तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन से स्क्रीनशॉट की निष्पक्ष जांच के लिए कहा था, उन्होंने पुसेसावली में अन्य मुस्लिम निवासियों की सुरक्षा के लिए भी गुहार लगाई, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं था. सिराज याद करते हैं, "हमने पुलिस को बताया कि दंगे होने की आशंका है. हमने सुरक्षात्मक उपायों के लिए हाथ जोड़े."
हालांकि, सिराज के अनुसार, औंध पुलिस स्टेशन (जिसके अंतर्गत पुसेसावली आता है) के सहायक पुलिस निरीक्षक गंगाप्रसाद केंद्रे ने उनका मज़ाक़ उड़ाया. "उन्होंने हमसे पूछा कि हम पैगंबर मोहम्मद का अनुसरण क्यों करते हैं, जबकि वह एक साधारण व्यक्ति थे. मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि वर्दी पहना हुआ एक आदमी ऐसा कुछ कहेगा."
अगले दो हफ़्तों तक, दो कट्टर दक्षिणपंथी समूह - हिंदू एकता और शिवप्रतिष्ठान हिंदुस्तान - के सदस्य पुसेसावली में किसी भी मुस्लिम को रोक लेते और उन्हें 'जय श्री राम' का नारा लगाने के लिए मजबूर करते और उनके घरों को जलाने की धमकी देते. गांव ख़तरे में था और ग्रामीणों के अंदर बेचैनी साफ़ दिख रही थी.
इसके बाद, 8 सितंबर को इसी तरह के दो और स्क्रीनशॉट, 23 साल के मुज़म्मिल बागवान और 23 साल के ही अल्तमश बागवान के नाम से वायरल हुए. दोनों पुसेसावली के रहने वाले थे और आदिल की तरह ही एक इंस्टाग्राम पोस्ट पर हिंदू देवताओं को गाली देते नज़र आए थे. आदिल की तरह ही दोनों युवकों का कहना है कि स्क्रीनशॉट फ़र्ज़ी थे, और फ़ोटोशॉप किए गए थे. यह पोस्ट मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदुओं के ख़िलाफ़ अपशब्दों का एक कोलाज था.
आरोप है कि कट्टर हिंदू समूहों ने यह पोस्ट बनाई थी.
तबसे पांच महीने से अधिक समय बीत चुका है और पुलिस अभी भी उन तीन स्क्रीनशॉट की प्रामाणिकता की जांच कर रही है.
लेकिन जो नुक़सान होना था वह हो चुका है - गांव, जो पहले से ही सांप्रदायिक तनाव के कगार पर था, हिंसा की भेंट चढ़ गया. पुसेसावली में 9 सितंबर को स्थानीय मुसलमानों द्वारा सुरक्षात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करने का प्रयास काम नहीं आया.
दस सितंबर को सूर्यास्त के बाद सौ से अधिक कट्टर दक्षिणपंथी हिंदुओं की भीड़ ने गांव में घुसकर मुसलमानों की दुकानों, उनकी गाड़ियों और घरों में आग लगाई और तोड़फोड़ की. मुस्लिम समुदाय के सदस्यों के अनुमान के अनुसार, 29 परिवारों को निशाना बनाया गया और उन्हें कुल 30 लाख रुपए का नुक़सान हुआ. कुछ ही मिनटों में जीवन भर की बचत, मलबे में तब्दील हो गई.
अशफ़ाक़ बागवान (43), जो पुसेसावली में एक ई-सेवा केंद्र (सामान्य वादी की सभी अदालत संबंधी ज़रूरतों के लिए बनाया गया केंद्र) चलाते हैं, अपना फ़ोन निकालते हैं और इस रिपोर्टर को फ़र्श पर बैठे एक कमज़ोर, बूढ़े व्यक्ति की तस्वीर दिखाते हैं, जिनका सिर ख़ून से लथपथ था. वह याद करते हैं, "जब उन्होंने मेरी खिड़की पर पथराव किया, तो शीशा टूट गया और मेरे पिता के सिर पर लगा. यह एक दु: स्वप्न जैसा था. घाव इतना गहरा था कि हम घर पर इलाज नहीं कर सकते थे.'
लेकिन अशफ़ाक़ उन्मादी भीड़ के चलते बाहर नहीं निकल सके. अगर अशफ़ाक़ ऐसा करते, तो उनके साथ वही होता जो युवा पति और क्रिकेट प्रेमी नुरुल हसन के साथ हुआ.
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उस शाम जब नुरुल काम से घर लौटे, तो पुसेसावली जलना शुरू नहीं हुआ था. उस दिन पहले से तैयार भीड़ से अनजान, नुरुल ने तरोताज़ा होकर शाम की नमाज़ अदा करने के लिए गांव की मस्जिद जाने का फ़ैसला किया. आएशा याद करती हैं, "मैंने कहा कि घर पर ही नमाज़ पढ़ लीजिए, क्योंकि मेहमान आने वाले हैं. लेकिन उन्होंने कहा कि वह जल्दी आ जाएंगे और चले गए."
एक घंटे बाद नुरुल ने मस्जिद से आएशा को फ़ोन किया और कहा कि वह किसी भी क़ीमत पर घर से बाहर न निकले. आएशा नुरुल के लिए डरी हुई थीं, लेकिन उन्होंने राहत की सांस ली, जब उन्हें पता चला कि वह मस्जिद के अंदर हैं. वह स्वीकारती हैं, "मुझे नहीं लगा था कि भीड़ नमाज़ अदा करने वाली जगह पर हमला करेगी. मुझे नहीं लगा था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी. मैंने सोचा था कि वह मस्जिद में सुरक्षित रहेंगे."
वह ग़लत थीं.
मुसलमानों के स्वामित्व वाली संपत्तियों में तोड़फोड़ और आग लगाने के बाद, भीड़ ने मस्जिद पर धावा बोल दिया, जिसे अंदर से बंद कर दिया गया था. कुछ ने बाहर खड़े वाहनों में आग लगा दी, जबकि बाक़ियों ने अंदर घुसने की कोशिश की. मस्जिद के दरवाज़े पर हर धक्के के साथ कुंडी ढीली हो जाती थी. आख़िरकार, कुंडी ने जवाब दे दिया और दरवाज़े खुल गए.
लाठी, ईंटों और फ़र्श की टाइलों से उन्मादी भीड़ ने उन मुसलमानों पर बेरहमी से हमला किया जो कुछ ही समय पहले शांतिपूर्वक शाम की नमाज़ अदा कर रहे थे. उनमें से एक ने एक टाइल उठाई और नुरुल के सिर पर तोड़ दी, जिसके बाद उन्हें पीट-पीटकर मार डाला गया. हमले में 11 और लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. आएशा कहती हैं, ''जब तक मैंने उनका मृत शरीर नहीं देखा, मुझे यक़ीन नहीं हुआ.''
दुखी पत्नी आगे कहती हैं, मैं नुरुल की हत्या के आरोपी लोगों को जानती हूं. वे उन्हें भाई कहते थे. मुझे हैरानी है कि उन्हें पीट-पीटकर मार डालते समय उन्हें यह बात याद कैसे नहीं आई.''
पुसेसावली में मुसलमानों ने कई दिनों तक पुलिस से इस तरह के हमले के ख़िलाफ़ सुरक्षात्मक कार्रवाई की गुहार लगाई थी. वे बहुत पहले से आशंकित थे कि ऐसा कुछ हो सकता है. इलाक़े में शायद सतारा पुलिस ही अकेली थी जिसे इसका अंदाज़ा नहीं था.
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मस्जिद पर भयानक हमला पांच महीने पहले हुआ था, लेकिन पुसेसावली अब भी एक बंटा हुआ घर बना हुआ है: हिंदुओं और मुसलमानों ने न केवल मिलना-जुलना बंद कर दिया है और अब एक-दूसरे को संदेह की नज़र से देखते हैं. जो लोग कभी एक-दूसरे के घरों में साथ बैठकर खाना खाते थे, अब सिर्फ़ रुखाई भरे लेन-देन में शामिल हैं. पुसेसावली के तीन मुस्लिम लड़के, जिन पर हिंदू देवताओं के ख़िलाफ़ अपमानजनक कमेंट करने का आरोप था, उन्होंने अपनी जान के डर से गांव छोड़ दिया है; वे अब रिश्तेदारों या दोस्तों के साथ रहते हैं.
मुज़म्मिल बागवान (23) ने इस शर्त पर इस रिपोर्टर से बात की कि उनके ठिकाने का ख़ुलासा नहीं किया जाएगा. वह कहते हैं, "भारत में, आप दोषी साबित होने तक निर्दोष होते हैं न. लेकिन अगर आप मुसलमान हैं, तो निर्दोष साबित होने तक आप दोषी ही माने जाते हैं."
मुज़म्मिल 10 सितंबर की रात को एक पारिवारिक समारोह में भाग लेने के बाद पुसेसावली वापस जा रहे थे. जब वह गांव से लगभग 30 किलोमीटर दूर कुछ खाने के लिए रुके, तो खाना आने का इंतज़ार करते समय उन्होंने अपने फ़ोन पर व्हाट्सऐप खोला और पता चला कि उनके कुछ हिंदू मित्रों ने अपना स्टेटस अपडेट किया है.
जब मुज़म्मिल ने अपडेट देखने के लिए क्लिक किया; तो वह स्तब्ध रह गए और उन्हें लगा उन्हें उल्टी आ जाएगी. इन सभी ने स्क्रीनशॉट अपलोड किया था, जिसमें मुज़म्मिल की निंदा की गई थी और उनकी कथित अपमानजनक टिप्पणी नज़र आ रही थी. वह पूछते हैं, "मैं ऐसा कुछ पोस्ट करके परेशानी क्यों मोल लूंगा?" यह एक फ़ोटोशॉप की गई फ़र्ज़ी तस्वीर है जिसका मक़सद केवल हिंसा भड़काना है."
मुज़म्मिल ने तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क किया और अपना फ़ोन सरेंडर कर दिया. उन्होंने आगे कहा, ''मैंने उनसे इसकी पूरी तरह जांच करने का अनुरोध किया."
पुलिस टिप्पणियों की सत्यता के बारे में कुछ तय नहीं कर पाई है, क्योंकि वे इंस्टाग्राम की मालिकाना कंपनी मेटा से जवाब आने का इंतज़ार कर रहे हैं. सतारा पुलिस के अनुसार, आवश्यक विवरण कंपनी को भेज दिया गया है, जिसे अपने सर्वर पर देखना होगा और जवाब देना होगा.
डिजिटल एम्पावरमेंट फ़ाउंडेशन के संस्थापक ओसामा मंज़र कहते हैं, "यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मेटा ने प्रतिक्रिया देने में इतना समय लिया. यह उनकी प्राथमिकता नहीं है, और पुलिस भी इसे हल करने के लिए उत्सुक नहीं है. यह प्रक्रिया ही सज़ा बन जाती है.”
मुज़म्मिल का कहना है कि जब तक वह निर्दोष साबित नहीं हो जाते, गांव नहीं लौटेंगे. वह वर्तमान में पश्चिमी महाराष्ट्र में 2,500 रुपए महीने के किराए वाले एक अपार्टमेंट में रह रहे हैं. वह हर 15 दिन में एक बार अपने माता-पिता से मिलते हैं, लेकिन बातचीत बहुत कम होती है. मुज़म्मिल कहते हैं, ''जब भी हम मिलते हैं, मेरे माता-पिता रोने लगते हैं. मुझे उनके लिए बहादुर बनना पड़ता है."
मुज़म्मिल ने एक किराने की दुकान पर नौकरी कर ली है, जहां उन्हें 8,000 रुपए की तनख़्वाह मिलती है, जिससे वह किराया और बाक़ी ख़र्चे निकाल पाते हैं. हालांकि, पुसेसावली में वह ख़ुद का आईसक्रीम पार्लर चलाते थे, जो अच्छे से चल रहा था. मुज़म्मिल कहते हैं, "वह किराए की दुकान थी. मालिक हिंदू था. जब यह घटना हुई, उन्होंने मुझे बाहर निकाल दिया और कहा कि दुकान सिर्फ़ तभी वापस मिलेगी, जब यह साबित हो जाएगा कि मैं निर्दोष हूं. अब मेरे माता-पिता अपने गुज़ारे के लिए सब्ज़ी बेच रहे हैं. लेकिन गांव के हिंदू उनसे ख़रीदारी करने से इंकार कर देते हैं."
यहां तक कि छोटे बच्चे भी ध्रुवीकरण से अछूते नहीं रहे हैं.
एक शाम अशफ़ाक़ का 9 साल का बेटा उज़ैर स्कूल से बहुत उदास होकर लौटा, क्योंकि बाक़ी बच्चे उसके साथ नहीं खेलते. अशफ़ाक़ कहते हैं, "उसकी कक्षा में हिंदू बच्चों ने उसे साथ रखने से इंकार कर दिया, क्योंकि वह 'लांड्या' है, जोकि मुस्लिम लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जाने वाला अपमानजनक शब्द है, जो खतने को संदर्भित करता है. मैं बच्चों को दोष नहीं दूंगा. वे वही दुहराते हैं जो वे अपने घर में सुनते हैं. यह सब बहुत अफ़सोसजनक है, क्योंकि हमारे गांव का माहौल कभी ऐसा नहीं था."
हर तीसरे साल, पुसेसावली में परायण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जहां हिंदू 8 दिनों तक धर्मग्रंथों का पाठ और मंत्रोच्चार करते हैं. हाल में यह आयोजन 8 अगस्त को हुआ - गांव में हिंसा भड़कने से एक महीने पहले - जब स्थानीय मुसलमानों ने कार्यक्रम के पहले दिन के भोज का आयोजन किया था. क़रीब 1,200 हिंदुओं के लिए 150 लीटर शीर खुरमा (सेंवई से बनी मिठाई) तैयार की गई थी.
सिराज कहते हैं, "हमने उस भोज पर 80,000 रुपए ख़र्च किए. पूरे समुदाय ने इसमें हिस्सा लिया, क्योंकि यह हमारी तहज़ीब है. लेकिन अगर हमने उस पैसे का इस्तेमाल मस्जिद में लोहे का दरवाज़ा लगवाने में किया होता, तो हमारे बीच का एक इंसान आज ज़िंदा होता."
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मामले की जांच कर रहे पुलिस इंस्पेक्टर देवकर के अनुसार, 10 सितंबर को हुई हिंसा के लिए 63 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है और आरोप पत्र दायर किया गया है, क़रीब 34 फ़रार हैं और 59 को पहले ही ज़मानत मिल चुकी है.
वह कहते हैं,"इस मामले में राहुल कमद और नितिन वीर दो मुख्य आरोपी हैं. दोनों ‘हिंदू एकता’ के साथ काम करते हैं."
पश्चिमी महाराष्ट्र में सक्रिय धुर दक्षिणपंथी संगठन हिंदू एकता के शीर्ष नेता विक्रम पावसकर हैं, जो भाजपा के लिए महाराष्ट्र के प्रदेश उपाध्यक्ष का पद भी संभालते हैं. उनके सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ तस्वीरें हैं और उन्हें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस का क़रीबी बताया जाता है.
वरिष्ठ हिंदुत्व नेता विनायक पावसकर के बेटे विक्रम का नफ़रत भरे भाषण देने और सांप्रदायिक तनाव भड़काने का इतिहास रहा है. अप्रैल 2023 में, उन्होंने सतारा में एक "अवैध रूप से निर्मित मस्जिद" को ध्वस्त करने के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व किया.
जून 2023 में, इस्लामपुर में एक रैली में, पावसकर ने 'लव जिहाद' के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए "हिंदुओं को एकजुट होने" का आह्वान किया, जो हिंदू दक्षिणपंथियों का दिया एक अप्रमाणित षड्यंत्र सिद्धांत है. यह दावा करता है कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को बहकाते हैं, ताकि वे बाद में इस्लाम में परिवर्तित हो सकें, जो भारत में उनका जनसांख्यिकीय विकास और अंततः प्रभुत्व सुनिश्चित करेगा. पावसकर का कहना था, “हमारी बेटियों, हमारी बहनों का अपहरण किया जाता है और उन्हें ‘लव-जिहाद’ के लिए शिकार बनाया जाता है. जिहादी हिंदू धर्म में स्त्रियों और संपदाओं को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं. हम सभी को उन्हें बड़ा जवाब देना होगा.” उन्होंने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का आह्वान करते हुए मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का भी समर्थन किया.
हिंसा के एक चश्मदीद के मुताबिक़, हमले से कुछ दिन पहले पावसकर ने पुसेसावली में एक आरोपी के घर पर बैठक की थी. चश्मदीद ने पुलिस को बताया कि सौ से अधिक अज्ञात लोग गांव पर हमला करने वाली हिंदुत्ववादी भीड़ का हिस्सा थे. लेकिन उनमें से 27 लोग इसी गांव से थे और उनमें से कुछ पावसकर द्वारा आयोजित बैठक में मौजूद थे. जब भीड़ गांव की मस्जिद में घुसी, तो उनमें से एक ने कहा, “आज रात कोई लांड्या ज़िंदा नहीं बचना चाहिए. विक्रम पावसकर का हाथ हमारे सिर पर है. किसी को दया दिखाने की ज़रूरत नहीं है.”
हालांकि, पुलिस ने अब तक उन्हें गिरफ़्तार नहीं किया है. सतारा के पुलिस अधीक्षक समीर शेख़ ने इस स्टोरी को लेकर रिपोर्टर से बात करने से इंकार कर दिया. “आवश्यक विवरण सार्वजनिक तौर पर मौजूद हैं,” उन्होंने कहा, और जांच को लेकर या हिंसा में पावसकर की भूमिका के बारे में सवालों के जवाब देने से बचते रहे.
जनवरी 2024 के अंतिम सप्ताह में, बॉम्बे हाई कोर्ट ने पावसकर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करने के लिए सतारा पुलिस को फटकार भी लगाई.
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सतारा पुलिस की ढुलमुल रवैये को देखकर आएशा सोच में पड़ जाती हैं कि क्या उन्हें कभी न्याय मिलेगा, क्या नुरुल के हत्यारों को कभी सज़ा मिलेगी, और क्या हिंसा की योजना बनाने वाले साज़िशकर्ता को कभी पकड़ा जाएगा. स्वयं पेशे से वकील और पति को खोने का दुःख मानती पत्नी को शक है कि इस मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की कोशिश की जा रही है.
वह कहती हैं,"ज़्यादातर आरोपी पहली ही ज़मानत पर बाहर हैं और गांव में बेफ़िक्र होकर घूम रहे हैं. ऐसा लगता है कि हमारे साथ कोई क्रूर मज़ाक़ चल रहा है."
वह पुसेसावली में असुरक्षित महसूस करती हैं और अपने पति को और भी अधिक याद करती हैं, इसलिए उन्होंने राजाचे कुर्ले में अपने माता-पिता के साथ अधिक समय बिताने का फ़ैसला किया है. आएशा कहती हैं, ''यह सिर्फ़ चार किलोमीटर दूर है, इसलिए मैं दोनों गांवों के बीच आना-जाना कर सकती हूं. लेकिन अभी मेरी प्राथमिकता अपने जीवन को पटरी पर वापस लाना है."
उन्होंने अपनी वकालत फिर से शुरू करने पर विचार किया था, लेकिन फ़िलहाल ऐसा नहीं कर रही हैं, क्योंकि गांव में रहते हुए इस पेशे में कोई भविष्य नहीं है. आएशा कहती हैं, ''अगर मैं सतारा शहर या पुणे चली जाती, तो बात अलग होती, लेकिन मैं अपने माता-पिता से दूर नहीं रहना चाहती. उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं और मुझे उनका ख़याल रखने के लिए वहां रहना ज़रूरी है.''
आयशा की मां शमा (50) को हाई ब्लड शुगर है, और पिता हनीफ़ (70) को दिसंबर 2023 में दिल का दौरा पड़ा था, जो उनकी बेटी के हालात से पैदा हुए तनाव के कारण आया था. आएशा कहती हैं, ''मेरा कोई भाई-बहन नहीं है, लेकिन नुरुल ने बेटे की कमी पूरी कर दी थी, ऐसा वह अक्सर महसूस करते थे. जबसे उनकी मृत्यु हुई है, मेरे पिता पहले जैसे नहीं रहे.”
भले ही आएशा ने अपने माता-पिता के साथ रहने और उनकी देखभाल करने का विकल्प चुना है, लेकिन वह और भी बहुत कुछ करना चाहती हैं. कुछ ऐसा जो उनके जीवन को अर्थ और उद्देश्य देगा: वह अपने दिवंगत पति की इच्छाओं को पूरा करना चाहती हैं.
घटना से ठीक पांच महीने पहले, नुरुल और आएशा ने अपनी ख़ुद की कंस्ट्रक्शन कंपनी - अश्नूर प्राइवेट लिमिटेड बनाई थी. नुरुल को उसका काम देखना था, और आएशा क़ानूनी चीज़ों को संभालने वाली थीं.
अब जब वह इस दुनिया में नहीं हैं, वह इसे बंद नहीं करना चाहतीं. वह कहती हैं, ''मैं कंस्ट्रक्शन के बारे में ज़्यादा नहीं जानती, लेकिन मैं सीखूंगी और कंपनी को आगे ले जाऊंगी. मैं अभी आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही हूं, लेकिन मैं धन जुटाऊंगी और इसे सफल बनाउंगी.
दूसरी इच्छा थोड़ी कम जटिल है.
नुरुल अपने बच्चे को क्रिकेट सिखाना चाहते थे. किसी और खेल अकादमी से नहीं, बल्कि वहां से जहां विराट कोहली ने ट्रेनिंग ली थी. नुरुल के सपने को साकार करने के लिए आएशा उस रास्ते पर आगे बढ़ रही हैं. "मैं यह करके रहूंगी," वह दृढ़ता से कहती हैं.
अनुवाद: शोभा शमी