अशोक तांगड़े एक दोपहर अपने फ़ोन पर कुछ देख रहे थे कि तभी एक व्हाट्सऐप संदेश मिला. यह शादी का डिजिटल कार्ड था, जिसमें युवा दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को अजीब ढंग से निहार रहे थे. कार्ड में शादी का समय, तारीख़ और स्थान भी दर्ज था.
मगर तांगड़े को भेजा गया यह कार्ड विवाह समारोह का निमंत्रण-पत्र नहीं था.
उस कार्ड को तांगड़े के एक मुख़बिर ने पश्चिमी भारत में अपने ज़िले से भेजा था. शादी के कार्ड के साथ उन्होंने दुल्हन का जन्म प्रमाणपत्र भी भेजा था. वह 17 साल की थी, यानी क़ानून की नज़र में नाबालिग़.
कार्ड पढ़ते ही 58 साल के तांगड़े को लगा कि शादी तो बस घंटे भर में होने वाली थी. उन्होंने तुरंत अपने सहकर्मी और दोस्त तत्वशील कांबले को फ़ोन किया और दोनों तुरंत कार से रवाना हो गए.
जून 2023 की इस घटना को याद करते हुए तांगड़े बताते हैं, ''बीड शहर में जहां हम रहते हैं, वहां से यह जगह क़रीब आधे घंटे की दूरी पर थी. रास्ते में हमने ये तस्वीरें स्थानीय पुलिस स्टेशन और ग्राम सेवक को व्हाट्सऐप कर दीं, ताकि समय बर्बाद न हो.''
तांगड़े और कांबले बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं, जो महाराष्ट्र के बीड ज़िले में ऐसे मामलों को उजागर करते रहते हैं.
उनके काम में उनकी मदद करने वाले लोगों की एक लंबी-चौड़ी फ़ौज है. इनमें हैं दुल्हन से प्रेम करने वाले गांव के लड़के से लेकर स्कूल शिक्षक या कोई सामाजिक कार्यकर्ता; यानी कोई भी व्यक्ति जो समझता है कि बाल विवाह एक अपराध है उनको सूचना दे सकता है. और इन वर्षों के दौरान दोनों ने ज़िले भर में 2,000 से अधिक सूचनादाताओं का एक नेटवर्क खड़ा कर लिया है, जो उन्हें बाल विवाह पर नज़र रखने में मदद करते हैं.
वह मुस्कराते हुए बताते हैं, “लोग हम तक पहुंचने लगे और इस तरह हमने पिछले एक दशक में अपने मुख़बिर तैयार किए. हमारे फ़ोन पर नियमित रूप से शादी के कार्ड आते रहते हैं, लेकिन उनमें से कोई भी निमंत्रण-पत्र नहीं होता.''
कांबले का कहना है कि व्हाट्सऐप के ज़रिए सूचना देने वाला व्यक्ति आसानी से दस्तावेज़ की तस्वीर खींचकर भेज सकता है. अगर दस्तावेज़ हाथ में नहीं है, तो वे आयु-प्रमाण मांगने के लिए लड़की के स्कूल से संपर्क करते हैं. वह कहते हैं, "इस तरह मुख़बिर गुमनाम बने रहते हैं. व्हाट्सऐप से पहले मुख़बिरों को ख़ुद जाकर सबूत इकट्ठे करने पड़ते थे, जो जोखिम भरा काम होता था. अगर गांव के किसी व्यक्ति को मुख़बिर बता दिया जाए, तो लोग उसका जीवन नरक बना सकते हैं."
कांबले (42) कहते हैं कि व्हाट्सऐप ने उन्हें जल्दी सबूत इकट्ठा करने और निर्णायक मौक़े पर लोगों को जुटाने की सुविधा देकर उनके उद्देश्य में काफ़ी मदद की है.
इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ़ इंडिया ( आईएएमएआई ) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 75.9 करोड़ सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 39.9 करोड़ ग्रामीण भारत के हैं, जिनमें से अधिकांश व्हाट्सऐप इस्तेमाल करते हैं.
कांबले के अनुसार, "चुनौती होती है ज़रूरी क़ानूनी मदद और पुलिस तंत्र के साथ समय पर पहुंचना. साथ ही यह पक्का करना होता है कि हमारे आने की बात किसी को पता न चले. व्हाट्सऐप से पहले यह एक बहुत बड़ी चुनौती हुआ करती थी."
तांगड़े कहते हैं कि विवाहस्थल पर मुख़बिरों के साथ बातचीत अक्सर मज़ेदार होती है. वह बताते हैं, “हम उन्हें सामान्य व्यवहार करने के लिए कहते हैं और हमें न पहचानने को कहते हैं. मगर हर कोई इसमें अच्छा नहीं होता. कभी-कभी हमें सबके सामने सूचना देने वाले के साथ बदतमीज़ी का नाटक करना पड़ता है, ताकि बाल विवाह रुकने के बाद किसी को उन पर शक न हो.”
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 ( एनएफ़एचएस-5 ) की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 20-24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाओं ने कहा है कि 18 साल का होने से पहले ही उनकी शादी हो गई थी, जो देश में शादी की क़ानूनी उम्र है. क़रीब 30 लाख की आबादी वाले बीड ज़िले में यह संख्या राष्ट्रीय औसत से क़रीब दोगुनी है, यानी 43.7 प्रतिशत. कम उम्र में शादी सार्वजनिक स्वास्थ्य की बड़ी समस्या को बढ़ाती है. कम उम्र में गर्भधारण होने के चलते मां की मृत्यु दर और कुपोषण की आशंका बढ़ जाती है.
बीड में कम उम्र में विवाह का राज्य के चीनी उद्योग से गहरा संबंध है. यह ज़िला महाराष्ट्र में गन्ना काटने वालों का केंद्र है. ये लोग चीनी कारखानों के लिए गन्ना काटने के लिए हर साल सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करके राज्य के पश्चिमी इलाक़े में जाते हैं. बहुत से मज़दूर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के हैं, जो भारत में हाशिए पर गुज़र-बसर कर रहे हैं.
बढ़ती उत्पादन लागत, फ़सल की गिरती क़ीमतों और जलवायु परिवर्तन के कारण, इस ज़िले के किसान और मज़दूर कमाई के लिए सिर्फ़ खेती पर भरोसा नहीं कर सकते. छह महीने के लिए वे प्रवास करते हैं और इस हाड़तोड़ मेहनत से उन्हें क़रीब 25,000-30,000 रुपए की कमाई हो जाती है (पढ़ें: गन्ने के खेतों का सफ़र ).
मज़दूरों को काम पर रखने वाले ठेकेदार विवाहित जोड़ों को काम पर रखना पसंद करते हैं, क्योंकि दो लोगों को मिलकर काम करना पड़ता है, एक गन्ना काटने के लिए और दूसरा बंडल बनाने और उन्हें ट्रैक्टर पर लोड करने के लिए. जोड़े को इकाई के रूप में माना जाता है, जिससे उन्हें भुगतान करना आसान होता है और इससे वो गैर-रिश्तेदार मज़दूरों के बीच विवाद से बच जाते हैं.
तांगड़े बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत गैरक़ानूनी प्रथा का जिक्र करते हुए कहते हैं, “जीवन संघर्ष के चलते अधिकांश [गन्ना काटने वाले] परिवार इसके लिए [बाल विवाह] मजबूर होते हैं. यह समझना आसान नहीं है. दूल्हे के परिवार के लिए इससे कमाई का एक अतिरिक्त स्रोत खुल जाता है. दुल्हन के परिवार के लिए खिलाने को एक पेट कम हो जाता है.”
मगर इसका मतलब यह है कि तांगड़े और कांबले जैसे कार्यकर्ता व्यस्त रहते हैं.
बीड ज़िले में तांगड़े किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत गठित एक स्वायत्त संस्था बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की पांच सदस्यीय टीम के प्रमुख हैं. उनके साथी और ज़िले में सीडब्ल्यूसी के पूर्व सदस्य रहे कांबले फ़िलहाल बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन से जुड़े हैं. तांगड़े कहते हैं, “पिछले पांच साल में हममें से किसी एक के पास प्रशासनिक अधिकार रहे हैं और दूसरा इंसान ज़मीन पर काम करता रहा है. हमने मिलकर मज़बूत टीम बनाई है.”
*****
पूजा, बीड में अपने चाचा संजय और चाची राजश्री के साथ रहती हैं, जो पिछले 15 साल से गन्ना काटने के लिए हर साल पलायन करते हैं. जून 2023 में तांगड़े और कांबले उनकी अवैध शादी रुकवाने गए थे.
जब दोनों कार्यकर्ता विवाह मंडप में पहुंचे, तो ग्राम सेवक और पुलिस पहले से वहां मौजूद थे और अफरातफरी मची हुई थी. पहले तो उत्सव का उत्साह चिंता और भ्रम में बदला, और फिर लगा जैसे किसी अंतिम संस्कार का माहौल हो. शादी के पीछे मौजूद लोगों को लग गया था कि उनके ख़िलाफ़ पुलिस केस दर्ज होगा. कांबले कहते हैं, "सैकड़ों मेहमान हॉल से बाहर जा रहे थे. दूल्हा-दुल्हन के परिवार पुलिस के पैरों पर गिर गए और माफ़ी मांगने लगे."
शादी का आयोजन करने वाले 35 साल के संजय को अहसास हो गया था कि उनसे ग़लती हो गई है. वह कहते हैं, “मैं एक ग़रीब गन्ना मज़दूर हूं. मैं कुछ और नहीं सोच पाया.''
जब पूजा और उनकी बड़ी बहन ऊर्जा काफ़ी छोटी ही थीं, तभी उनके पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और उनकी मां ने बाद में दूसरी शादी कर ली थी. नए परिवार ने उन लड़कियों को नहीं स्वीकारा, जिन्हें संजय और राजश्री ने पाला था.
प्राथमिक विद्यालय की पढ़ाई के बाद संजय ने अपनी भतीजियों का दाख़िला बीड से क़रीब 250 किलोमीटर दूर पुणे शहर के एक आवासीय स्कूल में करा दिया.
जब ऊर्जा पढ़ाई करके निकल गई, तो स्कूल के बच्चों ने पूजा का मज़ाक़ उड़ाना शुरू कर दिया. वह कहती हैं, ''वे 'गंवारों की तरह’ के लिए मेरा मज़ाक़ उड़ाते थे. जब मेरी बहन वहां थी, तो वह मुझे बचाती थी. उसके जाने के बाद मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पाई और भागकर घर आ गई."
तांगड़े कहते हैं, 'ज़्यादातर [गन्ना काटने वाले] परिवार हताशा के कारण यह [बाल विवाह] करने के लिए मजबूर हैं. इसे समझना आसान नहीं होता...यह आय का एक अतिरिक्त स्रोत खोलता है. 'दुल्हन के परिवार के लिए खिलाने को एक पेट कम हो जाता है'
इसके बाद, नवंबर 2022 में संजय और राजश्री छह महीने के गन्ना काटने के काम के लिए पूजा को क़रीब 500 किलोमीटर दूर अपने साथ पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा ज़िले ले गए. दोनों उसे वहां अकेला छोड़ने को लेकर सहज नहीं थे. हालांकि, उनके मुताबिक़ साइट पर रहने की स्थितियां दयनीय होती हैं.
संजय कहते हैं, ''हम घास से बनी अस्थायी झोपड़ियों में रहते हैं. कोई शौचालय नहीं होता. हमें खेतों में शौच करने जाना पड़ता है. हम दिन में 18 घंटे तक गन्ना काटकर खुले आसमान के नीचे खाना बनाते हैं. इतने साल में हम इसके आदी हो गए हैं, लेकिन पूजा के लिए यह मुश्किल था.''
सतारा से लौटकर संजय ने अपने रिश्तेदारों की मदद से पूजा के लिए रिश्ता ढूंढा और नाबालिग़ होने के बावजूद उसकी शादी करने का फ़ैसला ले लिया. दंपति के पास घर पर रहने और आसपास काम ढूंढने का विकल्प नहीं था.
संजय कहते हैं, ''खेती के लिए मौसम का कोई पता नहीं. अपनी दो एकड़ ज़मीन पर अब हम केवल अपने खाने लायक फ़सलें ही उगा पाते हैं. मैंने वही किया, जो मुझे लगा कि उसके लिए सबसे अच्छा होगा. अगली बार प्रवास पर हम उसे साथ नहीं ले जा सकते थे और सुरक्षा के डर से हम उसे पीछे नहीं छोड़ सकते थे.''
*****
अशोक तांगड़े को क़रीब 15 साल पहले पहली बार बीड में गन्ना काटने वाले परिवारों के बीच बाल विवाह की बात पता चली थी, जब वह अपनी पत्नी और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मनीषा टोकले के साथ ज़िले भर में यात्रा कर रहे थे, जिनका काम गन्ना काटने वाली महिला मज़दूरों पर केंद्रित है.
वह बताते हैं, “जब मैं मनीषा के साथ उनमें से कुछ से मिला, तो मुझे लगा कि उन सभी की शादी किशोरावस्था में या उससे पहले ही हो चुकी थी. तभी मैंने सोचा कि हमें इस पर ख़ासतौर पर काम करना पड़ेगा."
उन्होंने कांबले से संपर्क, जो बीड में विकास क्षेत्र में काम करते थे और दोनों ने मिलकर काम करने का फ़ैसला किया.
क़रीब 10-12 साल पहले जब पहली बार उन्होंने बाल विवाह रुकवाया, तो बीड में यह एक अनसुनी बात थी.
तांगड़े कहते हैं, ''लोग ताज्जुब में थे और उन्होंने हमारी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. इसमें शामिल वयस्कों को यक़ीन नहीं था कि ऐसा कुछ हो सकता है. बाल विवाह को पूर्ण सामाजिक वैधता मिली हुई थी. कभी-कभी ठेकेदार ख़ुद विवाह समारोह के लिए पैसा देते थे और दूल्हा-दुल्हन को गन्ना कटवाने ले जाते थे.”
फिर दोनों ने लोगों का नेटवर्क बनाने के लिए बसों और दोपहिया वाहनों पर बीड के गांवों में घूमना शुरू किया, जो आख़िरकार उनके मुख़बिर बन गए. कांबले के मुताबिक़ स्थानीय समाचार पत्रों ने जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ ज़िले में उन्हें लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
पिछले 10 साल में उन्होंने ज़िले में साढ़े चार हज़ार से अधिक बाल विवाहों का पर्दाफ़ाश किया है. शादी रुकवाने के बाद उसमें शामिल वयस्कों के ख़िलाफ़ बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत पुलिस केस दर्ज किया जाता है. अगर विवाह हो चुका होता है, तो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम ( POCSO ) के तहत पुरुषों पर मामला बनाया जाता है, और सीडब्ल्यूसी कम उम्र की लड़की को संरक्षण में ले लेती है.
तांगड़े कहते हैं, ''हम लड़की और माता-पिता की काउंसलिंग करते हैं और उन्हें बाल विवाह के क़ानूनी परिणामों के बारे में बताते हैं. फिर सीडब्ल्यूसी हर महीने परिवार से संपर्क करती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जाए कि लड़की की दोबारा शादी न हो. इसमें शामिल अधिकांश माता-पिता गन्ना काटने वाले मज़दूर हैं.”
*****
जून 2023 के पहले हफ़्ते में तांगड़े को बीड के एक दूरदराज़ के पहाड़ी गांव में बाल विवाह होने की सूचना मिली, जो उनके घर से दो घंटे दूर है. वह कहते हैं, ''मैंने उस तालुका में अपने संपर्क को दस्तावेज़ भेजे, क्योंकि मैं समय पर नहीं पहुंच पाता. उसने वही किया जो करना ज़रूरी था. मेरे लोग अब यह प्रक्रिया जान गए हैं.”
जब अधिकारी मौक़े पर गए और शादी का भंडाफोड़ किया, तो उन्हें पता चला कि यह लड़की की तीसरी शादी थी. पिछली दोनों शादियां कोविड-19 के दो साल के भीतर हुई थीं. वह लड़की लक्ष्मी सिर्फ़ 17 साल की थी.
मार्च 2020 में कोविड-19 का प्रकोप तांगड़े और कांबले की सालों की कड़ी मेहनत के लिए बड़ा झटका था. सरकार द्वारा लागू लॉकडाउन के कारण स्कूल-कॉलेज लंबे समय के लिए बंद हो गए थे, जिससे बच्चे घर पर ही रहे. मार्च 2021 में जारी यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट में कहा गया कि स्कूल बंद होने, बढ़ती गरीबी, माता-पिता की मौत और कोविड-19 के कारण पैदा होने वाले अन्य कारकों ने "लाखों लड़कियों के लिए पहले से ही कठिन स्थिति को और भी बदतर बना दिया है."
तांगड़े ने इसे अपने ज़िले बीड में क़रीब से अनुभव किया, जहां कम उम्र की लड़कियों की बड़े पैमाने पर शादी की गई (पढ़ें: बीड: बाल विवाह के अंधकार में डूब रहा बच्चियों का भविष्य )।
साल 2021 में महाराष्ट्र में लॉकडाउन के दूसरे दौर के दौरान लक्ष्मी की मां विजयमाला ने बीड ज़िले में अपनी बेटी के लिए एक दूल्हा ढूंढा. तब लक्ष्मी 15 साल की थी.
विजयमाला (30) कहती हैं, ''मेरा पति शराबी है. उन छह महीनों को छोड़कर, जब हम गन्ना काटने के लिए बाहर जाते हैं, वह ज़्यादा काम नहीं करता. वह शराब पीकर घर आता है और मेरे साथ मारपीट करता है. जब मेरी बेटी उसे रोकने की कोशिश करती है, तो वह उसे भी पीटता है. मैं बस यही चाहती थी कि वह उससे दूर रहे.''
मगर लक्ष्मी के ससुराल वाले भी अत्याचारी निकले. शादी के एक महीने बाद उसने अपने पति और उसके परिवार से बचने के लिए आत्महत्या करने की कोशिश की और ख़ुद पर पेट्रोल छिड़क लिया. इसके बाद ससुराल वाले उसे वापस उसके मायके छोड़ गए और फिर कभी नहीं आए.
क़रीब छह महीने बाद नवंबर में विजयमाला और उनके पति 33 वर्षीय पुरुषोत्तम को गन्ना काटने के लिए पश्चिमी महाराष्ट्र जाना पड़ा. वे लक्ष्मी को साथ ले गए, ताकि वह उनकी मदद कर सके. लक्ष्मी को कार्यस्थल के बुरे हालात का पता था. मगर आगे जो होने वाला था उससे निपटने के लिए वह तैयार नहीं थी.
गन्ने के खेतों में पुरुषोत्तम की मुलाक़ात शादी करने के इच्छुक एक व्यक्ति से हुई. उसने उसे अपनी बेटी के बारे में बताया और वह आदमी मान गया. वह 45 साल का था. उसने लक्ष्मी और विजयमाला की इच्छा के विरुद्ध उसकी शादी ऐसे व्यक्ति से कर दी जो उससे लगभग तीन गुना बड़ा था.
विजयमाला कहती हैं, ''मैंने उनसे ऐसा न करने की मिन्नतें कीं. पर उन्होंने पूरी तरह से मेरी अनदेखी कर दी. मुझे चुप रहने को कहा गया और मैं अपनी बेटी की मदद नहीं कर पाई. उसके बाद मैंने उनसे कभी बात नहीं की.”
एक महीने बाद लक्ष्मी इस दूसरी अपमानजनक शादी से बचकर घर लौट आई. वह कहती हैं, ''कहानी फिर से वही थी. वह नौकरानी चाहता था, पत्नी नहीं."
इसके बाद लक्ष्मी एक साल से अधिक समय तक अपने माता-पिता के साथ रही. विजयमाला जब अपने छोटे से खेत में काम करती थीं, तो वह घर संभालती थी. इस खेत में परिवार ख़ुद के खाने के लिए बाजरा उगाता है. विजयमाला कहती हैं, ''मैं अतिरिक्त कमाई के लिए दूसरे लोगों के खेतों में मज़दूरी करती हूं.'' उनकी मासिक आय क़रीब 2,500 रुपए है. वह आगे कहती हैं, “मेरी ग़रीबी ही मेरा दुर्भाग्य है. मुझे इन्हीं हालात में गुज़ारा करना होगा.''
मई 2023 में परिवार का एक सदस्य शादी का प्रस्ताव लेकर विजयमाला के पास आया. वह कहती हैं, ''लड़का अच्छे परिवार से था. आर्थिक रूप से वे हमसे कहीं बेहतर थे. मैंने सोचा कि यह उसके लिए अच्छा होगा. मैं एक अनपढ़ महिला हूं. मैंने अपनी ओर से अच्छा ही सोचा था.'' यही वह शादी थी जिसके बारे में तांगड़े और कांबले को सूचना मिली थी.
आज विजयमाला कहती हैं, ऐसा करना सही नहीं था.
वह कहती हैं, ''मेरे पिता शराबी थे और उन्होंने 12 साल की उम्र में मेरी शादी कर दी थी. तबसे मैं अपने पति के साथ गन्ना काटने के लिए बाहर जा रही हूं. जब मैं किशोर थी, तभी लक्ष्मी हो गई थी. बिना जाने मैंने वही किया जो मेरे पिता ने किया था. समस्या यह है कि मेरे पास यह बताने वाला कोई नहीं है कि क्या सही है या क्या ग़लत. मैं बिल्कुल अकेले ही सबकुछ करती हूं."
लक्ष्मी पिछले तीन साल से स्कूल से बाहर है और पढ़ाई करने की इच्छुक नहीं है. वह कहती है, ''मैंने हमेशा घर की देखभाल की है और घरेलू काम किए हैं. मुझे नहीं पता कि मैं स्कूल जा पाऊंगी या नहीं. मुझमें आत्मविश्वास नहीं है.”
*****
तांगड़े को संदेह है कि लक्ष्मी के 18 साल के होने के तुरंत बाद, उसकी मां उसकी दोबारा शादी कराने की कोशिश करेगी. मगर यह उतना आसान नहीं होगा.
तांगड़े कहते हैं, ''हमारे समाज के साथ समस्या यह है कि अगर किसी लड़की की दो शादियां नाकाम हो गईं और एक शादी नहीं हो पाई, तो लोग सोचते हैं कि उसके साथ ही कुछ गड़बड़ है. उन पुरुषों से कोई सवाल नहीं करता जिनसे उसकी शादी हुई थी. यही कारण है कि हम आज भी छवि की समस्या से जूझते रहते हैं. हमें ऐसे लोगों के रूप में देखा जाता है जो शादी में बाधा डालते हैं और लड़की की प्रतिष्ठा ख़राब करते हैं.
ठीक ऐसा ही संजय और राजश्री भी इन दोनों कार्यकर्ताओं के बारे में मानते हैं जिनकी भतीजी पूजा की शादी इन्होंने नहीं होने दी थी.
राजश्री (33) कहती हैं, ''उन्हें शादी होने देनी चाहिए थी. वह अच्छा परिवार था. वो उसकी देखभाल करते. उसके 18 साल का होने में अभी एक साल बाक़ी है और वे तब तक इंतज़ार करने को तैयार नहीं हैं. हमने शादी के लिए दो लाख उधार लिए थे. हमें तो नुक़सान उठाना पड़ेगा.”
तांगड़े कहते हैं कि अगर संजय और राजश्री की जगह गांव का कोई प्रभावशाली परिवार होता, तो उन्हें दुश्मनी झेलनी पड़ती. वह कहते हैं, ''हमने अपना काम करने के दौरान कई दुश्मन बनाए हैं. जब भी हमें कोई सूचना मिलती है, तो हम इसमें शामिल परिवारों की पृष्ठभूमि की जांच करते हैं."
यदि यह स्थानीय राजनेताओं से संबंध रखने वाला परिवार होता है, तो दोनों पहले से ही प्रशासन को फ़ोन कर देते हैं और स्थानीय पुलिस स्टेशन से अतिरिक्त पुलिसकर्मी भी बुलवाते हैं.
कांबले कहते हैं, ''हम पर हमला किया गया है, अपमानित किया जा चुका है और धमकाया गया है. हर कोई अपनी ग़लती स्वीकार नहीं करता."
तांगड़े ने एक बार की घटना बताई कि दूल्हे की मां ने विरोध में अपना सिर दीवार पर दे मारा और उसके माथे से खून बहने लगा था. यह अधिकारियों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने का प्रयास था. तांगड़े हंसते हुए कहते हैं, "कुछ मेहमान चुपचाप खाना खाते रहे. उस परिवार को नियंत्रित करना बहुत कठिन रहा था. कभी-कभी बाल विवाह रुकवाने के लिए हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार होता है, तो आप कुछ नहीं कर सकते, पर ताज्जुब होता है कि क्या इस काम का कोई मतलब भी है.”
लेकिन कुछ ऐसे अनुभव भी हैं जो उनके इस काम को सार्थकता देते हैं.
साल 2020 की शुरुआत में तांगड़े और कांबले ने 17 साल की एक लड़की की शादी रुकवाई थी. उसने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा दी थी. गन्ना काटने वाले पिता ने ग़रीबी को देखते हुए फ़ैसला लिया था कि अब उसकी शादी का समय आ गया है. दोनों कार्यकर्ताओं को जब इस शादी का पता चला, तो उन्होंने इसे बीच में ही रुकवा दिया. यह उन कुछ शादियों में से एक थी जिन्हें वे कोविड-19 के प्रकोप के बाद रोकने में कामयाब रहे थे.
तांगड़े याद करते हैं, ''हमने उस प्रक्रिया का पालन किया जो हम आमतौर पर करते हैं. हमने एक पुलिस केस दर्ज कराया, काग़ज़ी कार्रवाई पूरी की और पिता को सलाह देने की कोशिश की. मगर लड़की की दोबारा शादी होने का ख़तरा हमेशा बना रहता है.”
मई 2023 में लड़की के पिता बीड में तांगड़े के दफ़्तर आए. कुछ देर तक तांगड़े उन्हें नहीं पहचान पाए. दोनों को मिले काफ़ी समय हो चुका था. पिता ने फिर अपना परिचय दिया और तांगड़े को बताया कि उन्होंने अपनी बेटी की शादी तय करने से पहले उसके स्नातक होने का इंतज़ार किया. उसके राज़ी होने के बाद ही लड़के को मंज़ूरी दी गई. उन्होंने तांगड़े को उनकी सेवा के लिए धन्यवाद दिया और एक उपहार भी दिया.
यह पहली बार था, जब तांगड़े को शादी का ऐसा कार्ड मिला था जिसमें उन्हें आमंत्रित किया गया था.
कहानी में बच्चों और उनके रिश्तेदारों के नाम सुरक्षा के लिहाज़ से बदल दिए गए हैं.
यह स्टोरी थॉमसन रॉयटर्स फ़ाउंडेशन की मदद से लिखी गई है. सामग्री की पूरी ज़िम्मेदारी लेखक और प्रकाशक की है.
अनुवाद: अजय शर्मा