शास्ती भुनिया ने पिछले साल स्कूल जाना छोड़ दिया था. इसके बाद, वह सुंदरबन क्षेत्र में स्थित अपने गांव सीतारामपुर से लगभग 2,000 किलोमीटर दूर बेंगलुरु जाने के लिए ट्रेन में सवार हो गईं. वह कहती है, “हम बेहद ग़रीब हैं. मैं स्कूल में मिड-डे मील नहीं खा सकती थी.” शास्ती 16 साल की है और कक्षा 9 में पढ़ती थीं. गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल और पूरे भारत में, सरकारी स्कूलों में केवल कक्षा 8 तक छात्रों को मिड-डे मील दिया जाता है.

शास्ती इस साल मार्च में दक्षिण 24 परगना ज़िले के काकद्वीप ब्लॉक में स्थित अपने गांव लौट आईं. बेंगलुरु में लॉकडाउन शुरू होने के बाद घरेलू कामगार की उनकी नौकरी छिन गई थी. इसके साथ उनकी 7,000 रुपए की कमाई भी बंद हो गई, जिनमें से कुछ पैसे वह हर महीने घर भेजती थीं.

शास्ती के पिता, 44 वर्षीय धनंजय भुनिया, सीतारामपुर के तट से दूर नयाचार द्वीप पर मछली पकड़ने का काम करते हैं - जैसा कि यहां के गांवों के बहुत से लोग करते हैं. वह नंगे हाथों और कभी-कभी छोटे जालों से मछलियां और केकड़े पकड़ते हैं, उन्हें आस-पास के बाज़ारों में बेचते हैं और हर 10-15 दिनों में घर लौटते हैं.

वहां मिट्टी और फूस की बनी झोपड़ी में धनंजय की मां महारानी, उनकी बेटियां - 21 साल की जंजलि, 18 साल की शास्ती - और 14 साल का बेटा सुब्रत रहते हैं. सुब्रत के जन्म के कुछ महीने बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया था. धनंजय कहते हैं, “हमें इस द्वीप पर पहले जितनी मछलियां और केकड़े नहीं मिलते हैं, [साल दर साल] हमारी कमाई बहुत ज़्यादा घट गई है.” वह अभी हर महीने 2,000 से 3,000 रुपए कमा पाते हैं. उनके मुताबिक़, “हमें गुज़ारा करने के लिए मछलियां और केकड़े पकड़ने पड़ते हैं. उन्हें स्कूल भेजकर हमें क्या मिल जाएगा?”

इसलिए, जिस तरह शास्ती ने स्कूल जाना छोड़ा है, वैसे ही सुंदरबन की कक्षाओं से दूसरे छात्र भी बड़ी तेज़ी से ग़ायब हो रहे हैं. मिट्टी में बढ़ते खारेपन ने खेती को मुश्किल बना दिया है. चौड़ी होती नदियों और बार-बार आते चक्रवात, उनके घरों को उजाड़ते रहते हैं. नतीजतन, इस क्षेत्र के गांवों के बहुत से लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में पलायन करते हैं. यहां तक कि बच्चे - जो अक्सर अपने घर की पहली पीढ़ी के होते हैं, जो स्कूल जा पाए - 13 या 14 साल की उम्र में रोज़गार के लिए पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं. वे दोबारा कक्षा में वापस नहीं लौट पाते.

Janjali (left) and Shasti Bhuniya. Shasti dropped out of school and went to Bengaluru for a job as a domestic worker; when she returned during the lockdown, her father got her married to Tapas Naiya (right)
PHOTO • Sovan Daniary
Janjali (left) and Shasti Bhuniya. Shasti dropped out of school and went to Bengaluru for a job as a domestic worker; when she returned during the lockdown, her father got her married to Tapas Naiya (right)
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जंजलि (बाएं) और शास्ती भुनिया. शास्ती ने स्कूल छोड़ा और बतौर घरेलू कामगार काम करने के लिए बेंगलुरु चली गईं; लॉकडाउन के दौरान जब वह लौटीं, तो उनके पिता ने तापस नैया (दाएं) से उनकी शादी कर दी

दक्षिण 24 परगना ज़िले में सरकारी सहायता से चलने वाले 3,584 प्राथमिक विद्यालयों में 7,68,758 छात्र, और 803 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 4,32,268 छात्र पढ़ते हैं. जिन स्कूलों को ज़्यादातर बच्चे छोड़ देते हैं उनमें शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों की भारी कमी है, कक्षाएं टूटी-फूटी हालत में हैं - इसके कारण भी बच्चे दोबारा उन स्कूलों में नहीं लौटते हैं.

सागर ब्लॉक में घोड़ामारा द्वीप के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक असोक बेडाकहते हैं, “2009 के बाद से [सुंदरबन क्षेत्र में] स्कूल छोड़ने की दर में तेज़ी से वृद्धि हुई है." यह द्वीप सबसे ज़्यादा बाढ़ और जलभराव की चपेट में रहता है. असोक उस वर्ष का ज़िक्र कर रहे हैं, जब इस क्षेत्र से आइला चक्रवात टकराया था, जिसने भारी तबाही मचाई थी और लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा था. तब से कई तूफानों और चक्रवातों ने ज़मीन और तालाबों में खारेपन को बढ़ाया है, जिससे यहां के परिवार स्कूल जाने वाले किशोरों को काम पर भेजने के लिए और भी ज़्यादा मजबूर हुए हैं.

गोसाबा ब्लॉक के अमतली गांव में अमृता नगर हाईस्कूल की एक शिक्षक अमियो मंडल कहती हैं, “यहां पर नदी हमारी ज़मीनें, घर और ठिकानों को छीन लेती है और तूफ़ान हमारे छात्रों को. हम [अध्यापक] असहाय महसूस करते हैं.”

ये खाली कक्षाएं, जो कुछ क़ानूनों और वैश्विक लक्ष्यों में अलग नज़र आती हैं, की ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही है. साल 2015 में, भारत ने साल 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों को अपनाया था; इनमें से चौथा लक्ष्य “सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना और आजीवन सीखने के अवसर प्रदान करना है.” देश के निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार क़ानून, 2009 के तहत 6 से 14 साल के सभी बच्चे आते हैं. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा, 2005 समावेशी कक्षाओं के महत्व पर ज़ोर देती है, ख़ास तौर पर ग़रीब वर्गों और शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे छात्रों के लिए. केंद्र और राज्य सरकारें भी बच्चों के स्कूलों को छोड़ने की दर घटाने के लिए कई तरह की छात्रवृत्तियां दे रही हैं और प्रोत्साहन योजनाएं चला रही हैं.

हालांकि, सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र के स्कूल फिर भी धीरे-धीरे अपने छात्रों को खोते जा रहे हैं. यहां एक शिक्षक के रूप में कक्षाओं से ग़ायब होते चेहरों की तलाश मुझे ऐसा महसूस कराती है जैसे मैं किसी धंसती हुई ज़मीन के बीच में खड़ा हूं.

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स्कूल छोड़ने वालों में मुस्तकीन जमादर भी शामिल हैं. उनके पिता कहते हैं, ‘मैंने अपने बेटे को कमाने और परिवार की मदद करने के लिए पूरी तरह से मछली पकड़ने के काम में लगा दिया है’

मेरे छात्र राबिन भुनिया ने इसी साल 20 मई को पाथरप्रतिमा ब्लॉक के अपने गांव बुडाबुडीर टाट से अम्फान चक्रवात के टकराने के कुछ दिन बाद मुझसे कहा था, “पढ़ाई करने से क्या होगा? मुझे भी अपने पिता की तरह नदी से मछलियों और केकड़ों को पकड़ना पड़ेगा.” राबिन (17 साल) ने मछली पकड़ने के काम में अपने पिता का हाथ बंटाने के लिए दो साल पहले स्कूल छोड़ दिया था. अम्फान चक्रवात ने उसके घर को बर्बाद कर डाला था और खारे पानी के थपेड़ों से उसका गांव जलमग्न हो गया था. सप्तमुखी के पानी की तरफ़ इशारा करते हुए उसने कहा था: “यह नदी हम सब को ख़ानाबदोश बना देगी.”

स्कूल छोड़ने वालों में 17 साल के मुस्तकीन जमादर भी शामिल है, जो शास्ती के ही गांव का रहने वाला है. दो साल पहले जब वह कक्षा 9 में था, तो उसने स्कूल जाना क्यों छोड़ दिया था, इस सवाल पर वह कहता है, “मुझे पढ़ाई करने में मज़ा नहीं आता.” उनके पिता इलियास कहते हैं, “पढ़ने से क्या मिलेगा? मैंने अपने बेटे को कमाने और परिवार की मदद करने के लिए पूरी तरह से मछली पकड़ने के काम में लगा दिया है. पढ़ने से कुछ नहीं मिलने वाला. इससे मुझे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ.” इलियास (49 वर्षीय) ने रोज़ी-रोटी की तलाश में कक्षा 6 के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, और बाद में राजमिस्त्री का काम करने के लिए केरल चले गए थे.

स्कूल छोड़ना लड़कियों को ख़ास तौर से प्रभावित करता है - उनमें से ज़्यादातर लड़कियां या तो घरों में रहती हैं या फिर उनकी शादी कर दी जाती है. काकदीप ब्लॉक के शिबकालीनगर गांव के आई. एम. हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक दिलीप बैरागी ने मुझे 2019 में बताया था, “जब मैंने राखी हाज़रा [कक्षा 7 की एक छात्रा] से पूछा था कि वह पिछले 16 दिनों से स्कूल क्यों नहीं आई, तो वह रोने लगी. उसने कहा कि जब उसके माता-पिता हुगली नदी में केकड़े पकड़ने जाते हैं, तब उसे अपने भाई  [जो कक्षा 3 में है] की देखभाल करनी पड़ती है.”

लॉकडाउन के कारण स्कूल छोड़ने के इस प्रकार के मामले बढ़ गए हैं. बुडाबुडीर टाट गांव के एक मछुआरे, अमल शीत ने अपनी 16 साल की बेटी कुमकुम, जो 9वीं कक्षा में थीं, को तब स्कूल छोड़ने के लिए कह दिया, जब परिवार ने अपना आर्थिक संकट दूर करने के लिए उसकी शादी तय दी थी. अमल कहते हैं, “नदी में अब पहले जितनी मछलियां नहीं मिलतीं.” वह अपने छह सदस्यीय परिवार में कमाने वाले अकेले व्यक्ति हैं. उनके मुताबिक़, “इसीलिए मैंने उसकी शादी लॉकडाउन के दौरान कर दी, जबकि वह अभी पढ़ ही रही थी.”

यूनिसेफ़ की 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की 22.30 करोड़ बालिका वधुओं (जिनकी शादी 18 साल से पहले हो जाती है) में से 2.2 करोड़ पश्चिम बंगाल में रहती हैं.

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कुमकुम (बाएं) बुडाबुडीर टाट में 9वीं कक्षा में पढ़ती है, जबकि सुजन शीत कक्षा 6 में है. उनके पिता कहते हैं, ‘नदी में अब पहले जितनी मछलियां नहीं मिलतीं. इसलिए लॉकडाउन के दौरान हमने उसकी [कुमकुम की] शादी कर दी’

पाथरप्रतिमा ब्लॉक के शिबनगर मोक्षदा सुंदरी विद्यामंदिर के प्रधानाध्यापक बिमान मैती कहते हैं, “बंगाल सरकार से [पढ़ाई जारी रखने के लिए] प्रोत्साहन मिलने के बावजूद सुंदरबन क्षेत्र में बड़ी संख्या में बाल विवाह होते हैं. ज़्यादातर माता-पिता और अभिभावक सोचते हैं कि लड़की को पढ़ाने से परिवार को कोई लाभ नहीं होता, और घर में खाने वाला एक व्यक्ति घटने से कुछ पैसे बच जाते हैं.”

मैती आगे कहते हैं, “कोविड-19 लॉकडाउन के कारण, स्कूल लंबे समय से बंद हैं और कुछ भी पढ़ाई नहीं हो रही है. छात्र शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं. इतने नुक़सान के बाद वे वापस नहीं लौटेंगे. वे ग़ायब हो जाएंगे, फिर कभी नहीं मिलेंगे.”

मध्य जून में जब शास्ती भुनिया बेंगलुरु से लौटीं, तो उनकी भी शादी कर दी गई. तापस नैया (21 वर्ष) भी शास्ती के ही स्कूल में पढ़ते थे और कक्षा 8 में स्कूल जाना छोड़ दिया था, जब वह 17 साल के थे. पढ़ाई में उनका मन नहीं लग रहा था और वह अपने परिवार की मदद करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने केरल में राजमिस्त्री का काम करना शुरू किया. लॉकडाउन के कारण वह मई में अपने गांव लौट आए. “वह अब सिबकालीनगर में चिकन की एक दुकान पर काम कर रहे हैं.”

उनकी बड़ी बहन जंजलि भुनिया (21 वर्ष), जो देख-सुन नहीं सकतीं, ने 18 वर्ष की आयु में पढ़ाई छोड़ दी थी, जब वह कक्षा 8 में थीं. एक साल बाद उनकी शादी उत्पल मंडल से कर दी गई, जो अब 27 साल के हैं. इन्होंने कुलपी ब्लॉक के अपने गांव नूतन त्यांग्राचार के स्कूल से पढ़ाई छोड़ दी थी, जब वह कक्षा 8 में थे. मंडल को बचपन में ही पोलियो हो गया था और तभी से उन्हें चलने-फिरने में समस्या होती है. वह कहते हैं, “मैं अपने हाथों और पैरों के बल पर स्कूल नहीं जा सकता था, और हमारे पास व्हीलचेयर के लिए पैसे नहीं थे. मैं पढ़ाई नहीं कर पाया, जबकि मैं पढ़ना चाहता था.”

शास्ती और जंजलि की परवरिश करने वाली उनकी 88 वर्षीय दादी महारानी कहती हैं, “मेरी दोनों पोतियां नहीं पढ़ सकीं.” अब, जबकि कोविड-19 लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं, वह कहती हैं, “मुझे नहीं पता कि मेरा पोता [सुब्रत] भी पढ़ पाएगा या नहीं.”

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स्वांतन पहार (14 वर्ष) काकद्वीप ब्लॉक के सीतारामपुर गांव के बाज़ारबेडिया ठाकुरचक शिक्षा सदन हाईस्कूल में कक्षा 8 में है. यूनिसेफ़ की 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की 22.3 करोड़ बालिका वधुओं ( जिनकी शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो गई) में से 2.2 करोड़ पश्चिम बंगाल में रहती हैं

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बापी मंडल (11 साल) नामखाना ब्लॉक के बलियारा किशोर हाईस्कूल में कक्षा 5 का छात्र है. विगत 20 मई को अम्फान चक्रवात आने के बाद से वह और उसका परिवार एक महीने से ज़्यादा समय तक राहत केंद्र में रहा, फिर मिट्टी, बांस के खंभे और तिरपाल के सहारे उन्होंने अपने घर को दोबारा खड़ा. तूफ़ान और चक्रवात की बढ़ती घटनाओं ने मिट्टी और तालाबों में खारेपन को बढ़ाया है, जिससे परिवार स्कूल जाने वाले किशोरों को काम पर भेजने के लिए और ज़्यादा मजबूर हो गए हैं

Sujata Jana, 9, is a Class 3 student (left) and Raju Maity, 8, is in Class 2 (right); both live in Buraburir Tat village, Patharpratima block. Their fathers are fishermen, but the catch is depleting over the years and education is taking a hit as older children drop out of school to seek work
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Sujata Jana, 9, is a Class 3 student (left) and Raju Maity, 8, is in Class 2 (right); both live in Buraburir Tat village, Patharpratima block. Their fathers are fishermen, but the catch is depleting over the years and education is taking a hit as older children drop out of school to seek work
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नौ साल की सुजाता जाना ( बाएं) कक्षा 3 की छात्रा है और 8 साल का राजू मैती ( दाएं) कक्षा 2 में है; दोनों पाथरप्रतिमा ब्लॉक के बुडाबुडीर टाट गांव में रहते हैं. उनके पिता मछुआरे हैं, लेकिन साल दर साल मछलियों का मिलना कम होता जा रहा है और काम की तलाश में बड़े बच्चों के स्कूल छोड़ने से शिक्षा का नुक़सान हो रहा है

Sujata Jana, 9, is a Class 3 student (left) and Raju Maity, 8, is in Class 2 (right); both live in Buraburir Tat village, Patharpratima block. Their fathers are fishermen, but the catch is depleting over the years and education is taking a hit as older children drop out of school to seek work
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Sujata Jana, 9, is a Class 3 student (left) and Raju Maity, 8, is in Class 2 (right); both live in Buraburir Tat village, Patharpratima block. Their fathers are fishermen, but the catch is depleting over the years and education is taking a hit as older children drop out of school to seek work
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बाएं: पाथरप्रतिमा ब्लॉक के शिबनगर मोक्षदा सुंदरी विद्या मंदिर के छात्र अपने मिड- डे मील के साथ. दाएं: घोड़ामारा मिलन विद्यापीठ हाईस्कूल, घोड़ामारा द्वीप. पश्चिम बंगाल सहित पूरे भारत में सरकारी स्कूलों में छात्रों को केवल कक्षा 8 तक मिड- डे मील दिया जाता है; बहुत से बच्चे इसके बाद स्कूल जाना छोड़ देते हैं

Left: Debika Bera, a Class 7 schoolgirl, in what remains of her house in Patharpratima block’s Chhoto Banashyam Nagar village, which Cyclone Amphan swept away. The wrecked television set was her family’s only electronic device; she and her five-year-old sister Purobi have no means of 'e-learning' during the lockdown. Right: Suparna Hazra, 14, a Class 8 student in Amrita Nagar High School in Amtali village, Gosaba block and her brother Raju, a Class 3 student
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Left: Debika Bera, a Class 7 schoolgirl, in what remains of her house in Patharpratima block’s Chhoto Banashyam Nagar village, which Cyclone Amphan swept away. The wrecked television set was her family’s only electronic device; she and her five-year-old sister Purobi have no means of 'e-learning' during the lockdown. Right: Suparna Hazra, 14, a Class 8 student in Amrita Nagar High School in Amtali village, Gosaba block and her brother Raju, a Class 3 student
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बाएं: 7 वीं कक्षा की छात्रा देबिका बेडा, पाथरप्रतिमा ब्लॉक के गांव छोटो बनश्याम नगर में अंफान चक्रवात की तबाही के बाद टूट- फूटे घर में खड़ी हैं. कबाड़ बन चुका टेलीविजन सेट उसके घर का एकमात्र इलेक्ट्रॉनिक उपकरण था; लॉकडाउन के दौरान, उसके और उसकी पांच साल की बहन पुरोबी के पास ‘ ई- लर्निंग’ के लिए कोई साधन नहीं है. दाएं: 14 वर्षीय सुपर्णा हाज़रा, गोसाबा ब्लॉक के अमतली गांव में अमृता नगर हाईस्कूल में 8 वीं की छात्रा हैं और उनका भाई राजू कक्षा 3 में पढ़ता है

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बुडाबुडीर टाट जूनियर हाईस्कूल में कक्षा 8 का छात्र कृष्णेंदु बेडा, अंफान चक्रवात के बाद तबाह हुए अपने घर के सामने खड़ा है. उसने अपनी सारी किताबें, कलम- कॉपी और सामान खो दिया है. जब यह तस्वीर ली गई थी, तब वह पुआल और फूस की छत के साथ मिट्टी का घर बनाने में अपने पिता स्वपन बेडा की मदद कर रहा था. पढ़ाई पीछे छूट गई है

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रूमी मंडल (11 वर्ष), गोसाबा ब्लॉक के अमृता नगर हाईस्कूल में कक्षा 6 की छात्रा है. यह तस्वीर अंफान चक्रवात आने के तुरंत बाद ली गई थी, जब वह एनजीओ और अन्य संगठनों से राहत सामग्री लेने में अपनी मां की मदद कर रही थी. एक शिक्षक का कहना है, ‘ यहां नदी हमारी ज़मीन, घर और ठिकाना छीन लेती है, और तूफ़ान हमारे छात्रों को छीन रहा है’

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गोसाबा ब्लॉक की रेबती मंडल, अंफान चक्रवात आने के बाद अपने घर के सामने खड़ी हैं. अपना घर और सारा सामान खोने के बाद उनके बच्चों - प्रणय मंडल ( उम्र 16 साल, कक्षा 10) और पूजा मंडल ( उम्र 11 साल, कक्षा 6) - के लिए अपनी पढ़ाई को दोबारा शुरू कर पाना मुश्किल होगा

Left: Anjuman Bibi of Ghoramara island cradles her nine-month-old son Aynur Molla. Her elder son Mofizur Rahman dropped out of school in Class 8 to support the family. Right: Asmina Khatun, 18, has made it to Class 12 in Baliara village in Mousuni Island, Namkhana block. Her brother, 20-year-old Yesmin Shah, dropped out of school in Class 9 and migrated to Kerala to work as a mason
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Left: Anjuman Bibi of Ghoramara island cradles her nine-month-old son Aynur Molla. Her elder son Mofizur Rahman dropped out of school in Class 8 to support the family. Right: Asmina Khatun, 18, has made it to Class 12 in Baliara village in Mousuni Island, Namkhana block. Her brother, 20-year-old Yesmin Shah, dropped out of school in Class 9 and migrated to Kerala to work as a mason
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बाएं: घोड़ामारा द्वीप की अंजुमन बीबी अपने नौ महीने के बेटे अयनुर मुल्ला को पालने में झुला रही हैं. उनके बड़े बेटे मुफ़िज़ुर रहमान ने परिवार की मदद करने के लिए कक्षा 8 में स्कूल जाना छोड़ दिया था. दाएं: 18 वर्षीय असमीना खातून ने नामखाना ब्लॉक के मौसूनी द्वीप के बलियारा गांव में 12 वीं कक्षा तक पढ़ाई की. उनके भाई, 20 वर्षीय यास्मीन शाह ने कक्षा 9 में स्कूल जाना छोड़ दिया था और राजमिस्त्री का काम करने के लिए केरल चले गए थे

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शास्ती और जंजलि की 88 वर्षीय दादी महारानी कहती हैं, ‘ मेरी दोनों पोतियां पढ़ नहीं सकीं.” कोविड-19 लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने के बाद उनका कहना है, ‘ मुझे नहीं पता कि मेरा पोता [ सुब्रत] भी पढ़ पाएगा या नहीं’

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दक्षिण 24 परगना के पाथरप्रतिमा ब्लॉक में सिबनगर गांव की महिलाएं; इनमें से ज़्यादातर अपने पति के साथ मछलियां और केकड़े पकड़ने के घरेलू कामों में लगी हुई हैं. ऐसे परिवारों में, घर के लड़के राजमिस्त्री या निर्माण मज़दूर का काम करने केरल और तमिलनाडु चले गए हैं

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छात्र नयाचार द्वीप पर अपनी अस्थायी झोपड़ी की तरफ़ लौटते हुए, जहां उनके माता- पिता रोज़ी- रोटी के लिए मछलियां और केकड़े पकड़ते हैं

Left: Trying to make a living by catching fish in Bidya river in Amtali village. Right: Dhananjoy Bhuniya returning home to Sitarampur from Nayachar island
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Left: Trying to make a living by catching fish in Bidya river in Amtali village. Right: Dhananjoy Bhuniya returning home to Sitarampur from Nayachar island
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बाएं: अमतली गांव में बिद्या नदी में मछलियां पकड़कर जीवनयापन करने की कोशिश की जाती है. दाएं: धनंजय भुनिया नयाचार द्वीप से सीतारामपुर में स्थित अपने घर लौट रहे हैं

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लॉकडाउन शुरू होने से पहले, सीतारामपुर हाईस्कूल से घर लौटते छात्र. लॉकडाउन ने पहले से ही अनिश्चितओं से घिरी उनकी शिक्षा को और नुक़सान पहुंचाया है

सबसे ऊपर कवर फ़ोटो में: रॉबिन रॉय (14 साल) ने 2018 में स्कूल जाना छोड़ दिया था और कोलकाता के एक भोजनालय में वेटर का काम करने लगे. लॉकडाउन के कारण वह अपने गांव नूतन त्यांग्राचार लौट आए. उसकी बहन, 12 साल की प्रिया, कुलपी ब्लॉक के हरिनखोला ध्रुबा आदिस्वर हाईस्कूल में कक्षा 6 की छात्र है

अनुवादः ऋषि कुमार सिंह

Sovan Daniary

শোভন দানিয়ারি কলকাতা ভিত্তিক স্বতন্ত্র আলোকচিত্রী। সুন্দরবন অঞ্চলের জলবায়ুর বিবর্তনের ছবি তুলে ধরতে আগ্রহী তিনি।

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Translator : Rishi Kumar Singh