स्वतःच्या हाताने कंपन्यांचं उखळ पांढरं करण्याची स्पर्धा लागली तर राफेल विमानांच्या कराराहूनही प्रचंड मोठा घोटाळा ठरणारी प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना पहिल्या क्रमांकावर येणार. २०१६ पासून आजतोवर केंद्र आणि राज्य सरकारांनी मिळून पीक विमा योजनांसाठी ६६,००० कोटी रुपयांची तरतूद केलेली आहे. गेल्या तीन वर्षांत शेतकऱ्यांवरचं अरिष्ट अधिकच गहिरं होत गेलं आहे आणि अनेक विभागांमध्ये पिकं हातची गेली आहेत. शेतकऱ्यांना जी भरपाई दिली गेली त्यात या विमा कंपन्यांनी स्वतःचा एक नवा पैसा दिलेला दिसत नाही (यात बहुतेक कंपन्या खाजगी असल्या तर जीवन बीमा निगम म्हणजेच एलआयसीसारख्या सार्वजनिक आस्थापनांचाही सहभाग आहे). दिलेली विम्याची रक्कम शेतकऱ्यांनीच भरलेल्या हप्त्यांमधून किंवा राज्य आणि केंद्राच्या पैशातून दिली गेली आहे. तीही प्रत्यक्षात गोळा झालेल्या हप्त्यांच्या तुलनेत अगदीच नगण्य आहे. उरलेला सगळा पैसा, जनतेचा पैसा विमा कंपन्यांच्या खिशात गेला आहे. शेतकऱ्याच्या विम्यावर पहिला ‘हक्कदार’ कोण? शेतकरी कधीच फेडू शकत नाहीत असं कर्ज देणाऱ्या बँका.
পি. সাইনাথ পিপলস আর্কাইভ অফ রুরাল ইন্ডিয়ার প্রতিষ্ঠাতা সম্পাদক। বিগত কয়েক দশক ধরে তিনি গ্রামীণ ভারতবর্ষের অবস্থা নিয়ে সাংবাদিকতা করেছেন। তাঁর লেখা বিখ্যাত দুটি বই ‘এভরিবডি লাভস্ আ গুড ড্রাউট’ এবং 'দ্য লাস্ট হিরোজ: ফুট সোলজার্স অফ ইন্ডিয়ান ফ্রিডম'।
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