मानसून की पहली बारिश सानिया मुल्लानी को हमेशा उनके जन्मदिन से जुड़ी एक भविष्यवाणी की याद दिलाती है.

उनका जन्म 2005 में आई विनाशकारी बाढ़ के एक हफ़्ते बाद जुलाई महीने में हुआ था. इस बाढ़ में 1,000 से अधिक लोगों की जान चली गई थी और क़रीब दो करोड़ लोग प्रभावित हुए थे. ऐसा कहा जाता है कि लोगों ने तब सानिया के माता-पिता से कहा था, “इसका जन्म बाढ़ के बीच हुआ है; वह अपने जीवन का अधिकांश समय बाढ़ में बिताएगी.”

साल 2022 के जुलाई महीने के पहले हफ़्ते में हुई भारी बारिश ने 17 वर्षीय सानिया को उस घटना की फिर से याद दिला दी. महाराष्ट्र के कोल्हापुर ज़िले की हातकणंगले तालुक़ा में स्थित भेंडवड़े गांव की यह निवासी कहती है, "जब भी मैं सुनती हूं कि पाणी वाढ़त चाले [जल स्तर बढ़ रहा है], तो मुझे डर लगता है कि कहीं फिर से बाढ़ न आ जाए." गांव और इसके 4,686 निवासियों ने साल 2019 के बाद से दो बार विनाशकारी बाढ़ का सामना किया है.

सानिया याद करते हुए बताती हैं, "अगस्त 2019 की बाढ़ के दौरान, सिर्फ़ 24 घंटों के भीतर हमारे घर में सात फीट तक पानी भर गया था." जैसे ही पानी उनके घर में घुसने लगा था, मुल्लानी परिवार ने अपना घर छोड़ दिया था; लेकिन इस घटना से सानिया को गहरा आघात पहुंचा था.

जुलाई 2021 में उनके गांव में फिर से बाढ़ आई. और, परिवार को तीन सप्ताह के लिए गांव के बाहर बाढ़ राहत शिविर में रहना पड़ा. वह अपने घर तभी वापस आ पाए, जब गांव के ज़िम्मेदार लोगों ने वहां रहने की स्थितियों को सुरक्षित घोषित किया.

साल 2019 की बाढ़ के बाद से ताइक्वांडो चैंपियन सानिया के ब्लैक बेल्ट हासिल करने की ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) को धक्का सा लगा है. वह पिछले तीन वर्षों से थकान, बेचैनी, चिड़चिड़ेपन और अत्यधिक घबराहट से जूझ रही हैं. उनका कहना है, "मैं अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान नहीं दे पा रही हूं. मेरी ट्रेनिंग अब बारिश पर निर्भर रहती है."

Saniya Mullani (centre), 17, prepares for a Taekwondo training session in Kolhapur’s Bhendavade village
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The floods of 2019 and 2021, which devastated her village and her home, have left her deeply traumatised and unable to focus on her training
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बाएं: सत्रह वर्षीय सानिया मुल्लानी (बीच में) कोल्हापुर के भेंडवड़े गांव में ताइक्वांडो ट्रेनिंग सत्र की तैयारी कर रही हैं. दाएं: साल 2019 और 2021 की बाढ़, जिसने उनके गांव और उनके घर को तबाह कर दिया था, ने उन्हें गहरा आघात पहुंचाया है और वह अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान नहीं दे पा रही हैं

Young sportswomen from agrarian families are grappling with mental health issues linked to the various impacts of the climate crisis on their lives, including increased financial distress caused by crop loss, mounting debts, and lack of nutrition, among others
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कृषि परिवारों से ताल्लुक़ रखने वालीं युवा खिलाड़ी अपने जीवन पर पड़ने वाले जलवायु संकट के विभिन्न प्रभावों के चलते मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही हैं. इन समस्याओं में फ़सल के नुक़सान के कारण पैदा हुआ आर्थिक संकट, लगातार बढ़ता क़र्ज़, और पोषण की कमी शामिल है

जब स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लक्षण दिखने शुरू हुए, तो उन्हें लगा कि वह समय के साथ ठीक हो जाएंगी. जब ऐसा नहीं हुआ, तो उन्होंने एक निजी डॉक्टर से संपर्क किया. अगस्त 2019 से, वह कम से कम 20 बार डॉक्टर के पास जा चुकी हैं, लेकिन चक्कर आने, थकान होने, शरीर में दर्द, बार-बार बुख़ार आने, ध्यान केंद्रित न कर पाने और लगातार "चिंता तथा तनाव" की स्थिति में कोई कमी नहीं आई है.

वह बताती हैं कि "अब डॉक्टर के पास जाने का विचार भी किसी बुरे सपने की तरह लगता है. किसी निजी डॉक्टर को एक बार दिखाने की फ़ीस कम से कम 100 रुपए होती है; और इसके अलावा दवा, जांच और आगे के परामर्श के लिए क्लीनिक के चक्कर लगाने पर अतिरिक्त ख़र्च उठाना पड़ता है. "अगर ड्रिप (पानी या ग्लूकोज) चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है, तो इसके लिए प्रत्येक बोतल पर 500 रुपए अलग से ख़र्च करने होते हैं."

जब डॉक्टर के पास जाने से कोई मदद नहीं मिली, तो उनकी एक दोस्त ने उन्हें सलाह दी: "गप्प ट्रेनिंग करायचा [अपनी ट्रेनिंग ख़ामोशी के साथ करती रहो]." लेकिन इससे भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ. उनकी हताशा और बढ़ गई, जब अपने बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर उन्होंने डॉक्टर से बात की, और उसने बस इतना कहा कि "चिंता मत पालो." इस डॉक्टरी सलाह को मानना सानिया के लिए काफ़ी मुश्किल था, क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि आगे बरसात का मौसम किस तरह का होगा और इससे उनका परिवार कितना प्रभावित होगा.

साल 2019 और 2021 में आई बाढ़ के दौरान, सानिया के पिता जावेद को 1,00,000 किलो से अधिक गन्ने का नुक़सान हुआ. जावेद एक एकड़ ज़मीन पर खेती करते हैं. वर्ष 2022 में भी हुई भारी बारिश और वारना नदी में आए उफ़ान के कारण, उनकी अधिकांश फ़सल बर्बाद हो गई.

जावेद बताते हैं, “साल 2019 की बाढ़ के बाद से, इस बात की कोई गारंटी नहीं रह गई है कि आप जो बोएंगे उसका फल आपको मिलेगा ही. यहां के हर किसान को कम से कम दो बार बुआई करनी पड़ती है.” इससे उत्पादन की लागत लगभग दोगुनी हो जाती है, लेकिन उपज कभी-कभी बिल्कुल भी हासिल नहीं होती; जिसकी वजह से खेती का पेशा अस्थिरता से गुज़र रहा है.

The floods of 2019 destroyed sugarcane fields (left) and harvested tomatoes (right) in Khochi, a village adjacent to Bhendavade in Kolhapur district
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The floods of 2019 destroyed sugarcane fields (left) and harvested tomatoes (right) in Khochi, a village adjacent to Bhendavade in Kolhapur district
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साल 2019 की बाढ़ ने कोल्हापुर ज़िले के भेंडवड़े से सटे गांव खोची में गन्ने के खेतों (बाएं) और उपजे टमाटरों (दाएं) को नष्ट कर दिया था

इसके बाद, निजी साहूकारों से अत्यधिक ब्याज दरों पर क़र्ज़ लेना मजबूरी बन जाती है, और इससे लोगों का तनाव बढ़ता ही है. सानिया बताती हैं, "जैसे-जैसे मासिक क़िस्त जमा करने की तारीख़ नज़दीक आती है, आप देखेंगे कि बहुत से लोग तनाव के कारण अस्पतालों के चक्कर काटते हैं."

बढ़ते क़र्ज़ तथा फिर से बाढ़ आने की आशंका के चलते सानिया लगातार चिंताओं से घिरी रहती हैं.

कोल्हापुर स्थित क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट (नैदानिक ​​​​मनोवैज्ञानिक) शाल्मली रणमाले काकड़े कहती हैं कि “आमतौर पर, किसी प्राकृतिक आपदा से गुज़रने के बाद, लोग अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वांछित प्रयास नहीं कर पाते हैं. ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि वे अब यह करना नहीं चाहते हैं; वे कर नहीं पाते हैं. इस वजह से लोगों के भीतर असहायता, निराशा, और तमाम दुखद भावनाएं घर कर लेती हैं, और उनकी मनोदशा बिगड़ने लगती है और उनके तनाव का कारण बन जाती है."

यूएन इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने पहली बार इस बात पर प्रकाश डाला है कि जलवायु परिवर्तन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है: "अध्ययन में शामिल सभी क्षेत्रों में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण चिंता और तनाव सहित मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. ख़ासकर बच्चों, किशोरों, बुज़ुर्गों और पहले से बीमार चल रहे लोग इससे अधिक प्रभावित हो रहे हैं."

*****

साल 2021 में आई बाढ़ के मलबे में ऐश्वर्या बिराजदार (18 साल) के सपने भी बह गए.

बाढ़ का पानी कम होने के बाद, भेंडवड़े की इस धावक और ताइक्वांडो चैंपियन ने अपने घर की सफ़ाई में 15 दिनों में 100 घंटे से अधिक समय बिताया. वह बताती हैं, "बदबू जाने का नाम नहीं ले रही है; दीवारों की हालत कुछ ऐसी थी कि मानो कभी भी गिर जाएंगी.”

सामान्य जीवन का अहसास लौटते-लौटते लगभग 45 दिन निकल गए. वह बताती हैं, "यदि आप एक दिन की ट्रेनिंग छोड़ देते हैं, तो आपको अजीब सा महसूस होने लगता है." क़रीब 45 दिन ट्रेनिंग न कर पाने के कारण उन्हें अब और ज़्यादा मेहनत करने की ज़रूरत थी. वह कहती हैं, "मेरी स्टैमिना (शक्ति) काफ़ी ज़्यादा घट गई है, क्योंकि आधा पेट खाकर हमें दोगुनी ट्रेनिंग करनी पड़ रही है. ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता है, और इस वजह से तनाव रहने लगा है.”

Sprinter and Taekwondo champion Aishwarya Birajdar (seated behind in the first photo) started experiencing heightened anxiety after the floods of 2021. She often skips her training sessions to help her family with chores on the farm and frequently makes do with one meal a day as the family struggles to make ends meet
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Sprinter and Taekwondo champion Aishwarya Birajdar (seated behind in the first photo) started experiencing heightened anxiety after the floods of 2021. She often skips her training sessions to help her family with chores on the farm and frequently makes do with one meal a day as the family struggles to make ends meet
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धावक और ताइक्वांडो चैंपियन ऐश्वर्या बिराजदार (पहली तस्वीर में पीछे बैठी हुई हैं) साल 2021 की बाढ़ के बाद से अत्यधिक तनाव में रहने लगी हैं. खेती में परिवार का हाथ बटाने की मजबूरी में उन्हें अक्सर अपनी ट्रेनिंग छोड़नी पड़ती है. उनके परिवार की गुज़र-बसर बहुत मुश्किल से हो पा रही हैं, इस वजह से वह अक्सर दिन में सिर्फ़ एक बार भोजन कर पाती हैं

बाढ़ का पानी कम होने के बाद, सानिया और ऐश्वर्या के माता-पिता को अगले तीन महीने तक कोई काम नहीं मिल पाया. इस दौरान, उनका गांव फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा था. जावेद, जो अपनी घटती कृषि आय की भरपाई के लिए राजमिस्त्री के रूप में भी काम करते हैं, उन्हें ज़्यादा काम ही नहीं मिल पाया; क्योंकि उस समय ज़्यादातर निर्माण कार्य बंद पड़ा था. दूसरी तरफ़, खेतों में बाढ़ का पानी जमा था, इसलिए ऐश्वर्या के माता-पिता, जो ज़मीन किराए पर लेकर खेती करते हैं और साथ में खेतिहर मज़दूर भी हैं, को इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा.

बकाया क़र्ज़ों और उन पर बढ़ते ब्याज को देखते हुए, इन परिवारों ने मजबूरन भोजन में कटौती जैसे उपाय शुरू किए. ऐसी स्थिति में, ऐश्वर्या और सानिया को चार महीने तक दिन में सिर्फ़ एक वक़्त का भोजन नसीब होता था - और कभी-कभी तो वह भी छोड़ना पड़ता था.

दोनों युवा खिलाड़ियों को तो याद भी नहीं कि उन्होंने अपने परिवार की मदद के लिए कितनी रातें खाली पेट गुज़ारी हैं. इन समस्याओं के कारण उनकी ट्रेनिंग और प्रदर्शन पर असर पड़ना स्वाभाविक था. सानिया कहती हैं, “मेरा शरीर अब ज़्यादा कठोर व्यायाम झेल नहीं पाता.”

जब सानिया और ऐश्वर्या को पहली बार तनाव महसूस हुआ, तो उन्होंने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया था - जब तक कि उन्हें इस बात का अहसास नहीं हो गया कि अन्य खिलाड़ी इस समस्या से कहीं ज़्यादा जूझ रही थीं; और तब तक इसका उन्हें अंदाज़ा तक नहीं था. ऐश्वर्या कहती हैं, "बाढ़ से प्रभावित हुईं हमारी सभी साथी खिलाड़ी समान लक्षणों के बारे में बात करती हैं." सानिया कहती हैं, "इससे मुझे इतना तनाव रहने लगा है कि ज़्यादातर समय मुझे महसूस होता है कि मैं डिप्रेशन (उदासियों से घिरी हुई) में हूं."

हातकणंगले के तालुक़ा स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रसाद दातार कहते हैं, "साल 2020 से हम देख रहे हैं कि पहली बारिश के बाद से, कभी-कभी जून के महीने में ही, लोग बाढ़ के डर के साए में जीने लगते हैं. चूंकि, बाढ़ का कोई समाधान नज़र नहीं आता, इसलिए उनका डर और बढ़ता जाता है. इस कारण उन्हें गंभीर बीमारियां हो जाती हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है."

डॉ प्रसाद, जिन्होंने एक दशक पहले से लेकर साल 2021 तक शिरोल तालुका के 54 गांवों की देखभाल की, ने बाढ़ के बाद इस इलाक़े में स्वास्थ्य संबंधी अभियानों का नेतृत्व किया. उनका कहना है, "कई मामलों में [बाढ़ के बाद] तनाव इतना बढ़ गया कि बहुत से लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या हो गई या वे मानसिक बीमारियों से पीड़ित हो गए."

Shirol was one of the worst affected talukas in Kolhapur during the floods of 2019 and 2021
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साल 2019 और 2021 में आई बाढ़ के दौरान शिरोल, कोल्हापुर की सबसे बुरी तरह प्रभावित तालुक़ाओं में से एक थी

Flood water in the village of Udgaon in Kolhapur’s Shirol taluka . Incessant and heavy rains mean that the fields remain submerged and inaccessible for several days, making it impossible to carry out any work
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कोल्हापुर की शिरोल तालुक़ा के उदगांव में बाढ़ का पानी. लगातार और भारी बारिश का मतलब है कि कई दिनों तक खेत जलमग्न और रास्ते दुर्गम रहते हैं, जिससे कोई भी काम करना तक़रीबन असंभव रहता है

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, साल 2015 से 2020 के बीच कोल्हापुर ज़िले में वयस्क महिलाओं (15-49 वर्ष) में उच्च रक्तचाप के मामलों में 72 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. कर्नाटक के कोडागु ज़िले में 2018 की बाढ़ से प्रभावित हुए 171 लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 66.7 प्रतिशत लोगों में अवसाद, सोमैटिक डिसऑर्डर (एक तरह का दैहिक विकार), मादक पदार्थों की लत, नींद न आने की समस्या और तनाव के लक्षण थे.

एक और अध्ययन में सामने आया कि तमिलनाडु के चेन्नई और कडलूर में दिसंबर 2015 में आई बाढ़ से प्रभावित 45.29 प्रतिशत लोग मनोरोग से ग्रस्त पाए गए थे; सर्वेक्षण में शामिल 223 में से 101 लोग अवसादग्रस्त पाए गए.

विशाल चव्हाण, जो भेंडवड़े में 30 ताइक्वांडो छात्रों को ट्रेनिंग देते हैं, ने भी युवा खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य पर इस तरह के प्रभावों की पुष्टि की है. "साल 2019 के बाद से, बहुत से छात्रों ने इन स्थितियों के चलते खेल छोड़ दिया है." उनसे ट्रेनिंग लेने वाली ऐश्वर्या भी एथलेटिक्स और मार्शल आर्ट के क्षेत्र में करियर बनाने की अपनी योजना पर पुनर्विचार कर रही हैं.

साल 2019 की बाढ़ से पहले, ऐश्वर्या ने चार एकड़ के खेत में गन्ने की खेती करने में अपने परिवार की मदद की थी. वह कहती हैं, "24 घंटे के भीतर बाढ़ का पानी गन्ने के खेत में घुस आया और फ़सल पूरी तरह से नष्ट हो गई."

उनके माता-पिता किराए पर ली हुई ज़मीन पर खेती करते हैं और उन्हें अपनी उपज का 75 प्रतिशत हिस्सा ज़मीन के मालिक को देना होता है. उनके 47 वर्षीय पिता रावसाहेब कहते हैं, “सरकार ने 2019 और 2021 की बाढ़ के बाद कोई मुआवजा नहीं दिया; अगर कोई मुआवजा मिला भी होता, तो वह ज़मीन के मालिक की जेब में जाता.”

अकेले 2019 की बाढ़ में उनका 240,000 किलो से अधिक गन्ना बर्बाद हो गया, जिसकी क़ीमत क़रीब 7.2 लाख रुपए थी. अब रावसाहेब और उनकी 40 वर्षीय पत्नी शारदा खेतिहर मज़दूरी करने को मजबूर हैं. अक्सर ऐश्वर्या भी कामकाज में उनका हाथ बटाती हैं, और दिन में दो बार घर के मवेशियों का दूध निकालती हैं. शारदा कहती हैं, ''बाढ़ के बाद कम से कम चार महीने तक कोई काम नहीं मिलता. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि खेत जल्दी नहीं सूखते, और मिट्टी को फिर से उर्वरता हासिल करने में समय लगता है."

Aishwarya, who has to help her tenant-farmer parents on the fields as they struggle to stay afloat, is now considering giving up her plan of pursuing a career in sports
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ऐश्वर्या, किराए की ज़मीन पर खेती करने वाले अपने माता-पिता का हाथ बटाने के लिए खेतों में काम करती हैं, ताकि परिवार की गुज़र-बसर में कुछ मदद हो सके. वह अब खेल की दुनिया में करियर बनाने की अपनी योजना को छोड़ने का विचार बना रही हैं

Along with training for Taekwondo and focussing on her academics, Aishwarya spends several hours in the fields to help her family
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With the floods destroying over 240,000 kilos of sugarcane worth Rs 7.2 lakhs in 2019 alone, Aishwarya's parents Sharada and Raosaheb are forced to double up as agricultural labourers
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बाएं: ताइक्वांडो की ट्रेनिंग और अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ, ऐश्वर्या अपने परिवार की मदद के लिए कई घंटे खेतों में काम करती हैं. दाएं: अकेले 2019 की बाढ़ में क़रीब 7.2 लाख रुपए की क़ीमत का 240,000 किलो से अधिक गन्ना बर्बाद हो जाने के कारण, ऐश्वर्या के माता-पिता रावसाहेब और शारदा खेतिहर मज़दूरी करने को मजबूर हैं

साल 2021 की बाढ़ के दौरान रावसाहेब को 600 किलो से ज़्यादा सोयाबीन का नुक़सान हो गया, जिसकी क़ीमत 42,000 रुपए थी. ऐसी तबाही को देखते हुए, ऐश्वर्या खेल की दुनिया में करियर बनाने को लेकर अब अनिश्चितता से घिर गई हैं. वह कहती हैं, "अब मैं पुलिस की भर्ती परीक्षा के लिए आवेदन करने पर विचार कर रही हूं. खेलकूद की दुनिया में करियर बनाने की उम्मीद पालना काफ़ी जोखिम भरा है; ख़ासकर जलवायु में हो रहे बदलावों को देखते हुए.”

वह आगे कहती हैं, "मेरी ट्रेनिंग सीधे खेती से जुड़ी हुई है." जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के कारण गहराते कृषि संकट, और उनके परिवार की आजीविका पर बढ़ते ख़तरे और गुज़र-बसर करने में आती मुश्किलों के चलते, खेल की दुनिया में करियर बनाने को लेकर ऐश्वर्या का संशय में होना काफ़ी स्वाभाविक है.

कोल्हापुर की आजरा तालुक़ा के पेठेवाड़ी गांव के स्पोर्ट्स कोच (खेल प्रशिक्षक) पांडुरंग टेरासे कहते हैं, “किसी भी [जलवायु] आपदा के दौरान, महिला एथलीट सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं. कई परिवार नहीं चाहते कि उनकी घर की बेटियां खेलें. और ऐसे में जब लड़कियां कुछ दिनों के लिए भी अपनी ट्रेनिंग बंद करती हैं, तो परिवार उनसे खेल छोड़ने और कमाने के लिए कहते हैं. इस वजह से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. "

यह पूछे जाने पर कि इन युवाओं की मदद के लिए क्या किया जा सकता है, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट काकडे कहते हैं, "पहला क़दम यह हो सकता है कि हम उन्हें सुनें और उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने दें, जोकि सिस्टमिक थेरेपी (प्रणालीगत उपचार) या ग्रीफ़ काउंसलिंग (सदमे या आघात के निवारण से संबंधित परामर्श) में हम करते हैं. जब लोगों को जटिलताओं से घिरी भावनाओं को साझा करने का मौक़ा मिलता है, तो वे राहत महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें प्राथमिक सहायता समूह का सहारा मिल जाता है, जो उनके इलाज में काफ़ी मददगार साबित होता है.” हालांकि, सच्चाई यह है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में संसाधनों की कमी, बुनियादी ढांचे के अभाव, और उपचार की लागत ज़्यादा होने के कारण करोड़ों भारतीयों को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधी सुविधाएं और देखरेख नहीं मिल पाती है.

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साल 2019 की बाढ़ के बाद, लंबी दूरी की धाविका सोनाली कांबले के सपनों पर भी विराम लग गया. उनके माता-पिता भूमिहीन खेतिहर मज़दूर हैं, और उन्हें पैसों की तंगी से जूझ रहे परिवार के गुज़ारे के लिए सोनाली की मदद की आवश्यकता पड़ गई.

उनके पिता राजेंद्र कहते हैं, ''हम तीनों के काम करने के बावजूद, हमारा गुज़ारा नहीं चल पा रहा है.” लगातार बारिश के कारण खेतों में पानी भर जाता है और लंबे समय तक खेत कृषि लायक नहीं रहता, जिससे कोई काम ही नहीं मिल पाता; और इसलिए, खेतिहर मज़दूरी करने वाले परिवारों की आय में भी तेज़ी से गिरावट आती है.

Athletes running 10 kilometres as part of their training in Maharashtra’s flood-affected Ghalwad village
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An athlete carrying a 200-kilo tyre for her workout
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बाएं: महाराष्ट्र के बाढ़ प्रभावित गांव घलवाड़ में अपनी ट्रेनिंग के दौरान, खिलाड़ी 10 किलोमीटर की दौड़ लगा रही हैं. दाएं: कसरत के लिए 200 किलो का टायर उठाए चल रही एक एथलीट

Athletes in Kolhapur's Ghalwad village working out to build their strength and endurance. Several ASHA workers in the region confirm that a growing number of young sportspersons are suffering from stress and anxiety related to frequent floods and heavy rains
PHOTO • Sanket Jain
Athletes in Kolhapur's Ghalwad village working out to build their strength and endurance. Several ASHA workers in the region confirm that a growing number of young sportspersons are suffering from stress and anxiety related to frequent floods and heavy rains
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कोल्हापुर के घलवाड़ गांव की एथलीट्स अपनी ताक़त और सहनशक्ति बढ़ाने वाले कसरत कर रही हैं. क्षेत्र में सक्रिय कई आशा कार्यकर्ता इस बात की पुष्टि करती हैं कि बाढ़ और भारी बारिश के चलते तनाव और अवसाद से पीड़ित युवा खिलाड़ियों की संख्या बढ़ रही है

शिरोल तालुक़ा के घलवाड़ गांव में, जहां कांबले परिवार रहता है, महिलाओं को सात घंटे के काम के 200 रुपए, जबकि पुरुषों को 250 रुपए मिलते हैं. सोनाली (21) कहती हैं, "इन पैसों से बहुत मुश्किल से परिवार का गुज़ारा हो पाता है; खेल से जुड़े उपकरण ख़रीद पाना और ट्रेनिंग के लिए भुगतान करना तो बहुत दूर की बात है."

साल 2021 की बाढ़ ने कांबले परिवार की मुश्किलों को और बढ़ा दिया, तथा सोनाली को गहरे मानसिक अवसाद में ढकेल दिया. सोनाली याद करती हुई बताती हैं, “साल 2021 में, केवल 24 घंटों के भीतर हमारा घर जलमग्न हो गया. हम किसी तरह उस साल बाढ़ के पानी से बच गए. लेकिन, अब जब भी मैं जलस्तर को बढ़ता हुआ देखती हूं, तो मेरे शरीर में इस डर से दर्द शुरू हो जाता है कि कहीं फिर से बाढ़ न आ जाए.”

सोनाली की मां शुभांगी बताती हैं कि जब साल 2022 के जुलाई महीने में भारी बारिश शुरू हो गई, तो गांववालों में इस बात का डर पैदा हो गया कि कृष्णा नदी में बाढ़ आ जाएगी. सोनाली ने अपने रोज़ाना के 150 मिनट के ट्रेनिंग सत्र में जाना छोड़ दिया और बाढ़ की तैयारी शुरू कर दी. उन्हें जल्द ही गंभीर तनाव महसूस होने लगा, और डॉक्टर के पास जाना पड़ा.

डॉ प्रसाद कहते हैं, ''जब पानी बढ़ना शुरू होता है, तो कई लोग इस दुविधा में फंस जाते हैं कि अपना घर छोड़कर जाएं या नहीं. आसन्न संकट की स्थिति को समझने और निर्णय लेने में अक्षमता के कारण उन्हें तनाव का सामना करना पड़ता है."

हालांकि, पानी का स्तर घटते ही सोनाली बेहतर महसूस करने लगती हैं. वह बताती हैं, "लगातार ट्रेनिंग न कर पाने का मतलब है कि मैं दूसरी खिलाड़ियों के साथ प्रतियोगिता नहीं कर सकती, जिससे मुझे तनाव होने लगता है."

कोल्हापुर के गांवों की कई मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) इस बात की पुष्टि करती हैं कि बाढ़ के कारण स्थानीय युवा एथलीटों में अवसाद उत्पन्न होने लगा है. घलवाड़ की एक आशा कार्यकर्ता कल्पना कमलाकर कहती हैं, "वे असहाय और निराश महसूस करती हैं, और बारिश के बदलते पैटर्न के साथ स्थिति और बदतर होती जा रही है."

With the financial losses caused by the floods and her farmer father finding it difficult to find work, Saniya (left) often has no choice but to skip a meal or starve altogether. This has affected her fitness and performance as her body can no longer handle rigorous workouts
PHOTO • Sanket Jain
With the financial losses caused by the floods and her farmer father finding it difficult to find work, Saniya (left) often has no choice but to skip a meal or starve altogether. This has affected her fitness and performance as her body can no longer handle rigorous workouts
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बाढ़ के कारण परिवार को हुए आर्थिक नुक़सान और किसान पिता को कोई काम न मिल पाने की वजह से, सानिया (बाएं) को अक्सर एक वक़्त का भोजन ही नसीब हो पाता है; और कई बार तो भूखा ही रहना पड़ता है. उनका शरीर कमज़ोर पड़ गया है और वह कठोर क़िस्म के व्यायाम नहीं कर पाती हैं, जिससे उनकी फिटनेस और प्रदर्शन पर असर पड़ा है

ऐश्वर्या, सानिया और सोनाली किसान परिवारों से ताल्लुक़ रखती हैं, जिनकी क़िस्मत या कह लें कि दुर्भाग्य बारिश के साथ गहरे जुड़ा हुआ है. इन परिवारों ने साल 2022 की गर्मियों में गन्ने की खेती की थी.

भारत के कई हिस्सों में इस साल मानसून में देरी देखी गई. ऐश्वर्या कहती हैं, “हमारी फ़सल मानसून में हुई देरी को झेल गई.” लेकिन, जुलाई में हुई अनियमित बारिश ने फ़सलों को पूरी तरह तबाह कर दिया, जिससे परिवार क़र्ज़ में डूब गए. [यह भी पढ़ें: जब भी बरसात आती है, तबाही साथ लाती है ]

साल 1953 से लेकर 2020 के बीच, बाढ़ ने 2,200 मिलियन भारतीयों को प्रभावित किया, जो यूएस (संयुक्त राज्य) की आबादी का लगभग 6.5 गुना है. इस दौरान 437,150 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ है. पिछले दो दशकों (2000-2019) में, भारत में हर साल औसतन 17 बार बाढ़ आई है, जिससे वह चीन के बाद दुनिया का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित देश बन गया.

एक दशक से भी अधिक समय से, महाराष्ट्र के कई हिस्सों में वर्षा में तेज़ी से अनियमितता आई है; विशेष रूप से कोल्हापुर ज़िले में. इस साल अक्टूबर में ही राज्य के 22 ज़िलों का 7.5 लाख हेक्टेयर हिस्सा प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित रहा था. इस क्षेत्र में कृषि फ़सलें, फलों के बाग़, और सब्ज़ियों के खेत शामिल हैं. राज्य के कृषि विभाग के अनुसार, साल 2022 में महाराष्ट्र में 28 अक्टूबर तक 1,288 मिमी बारिश हुई - यानी औसत बारिश का 120.5 प्रतिशत. और इसमें से 1,068 मिमी बारिश जून से अक्टूबर के बीच हुई.

A villager watches rescue operations in Ghalwad village after the July 2021 floods
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जुलाई 2021 में आई बाढ़ के बाद घलवाड़ गांव में चल रहे बचाव अभियान को देखता एक ग्रामीण

पुणे के पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के जलवायु वैज्ञानिक और आईपीसीसी रिपोर्ट के योगदानकर्ता रॉक्सी कोल कहते हैं, "मानसून के दौरान, हम लंबे अंतराल वाले शुष्क मौसम के साथ छोटे अंतराल में अत्यधिक भारी बारिश होते हुए देख रहे हैं. इसलिए, जब बारिश होती है, तो थोड़े समय के भीतर ही बहुत सारी नमी छोड़ जाती है." उनके मुताबिक़, इस वजह से बार-बार बादल फटने और अचानक बाढ़ आने की समस्या उत्पन्न हो रही है. वह आगे बताते हैं, "चूंकि हम उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में हैं, इसलिए जलवायु परिवर्तन से जुड़ी इस तरह की घटनाएं और अधिक बढ़ती जाएंगी. हमें बेहद सावधान रहना होगा और जल्द ही इसका समाधान ढूंढने की दिशा में काम करना होगा, क्योंकि इसका सबसे पहले हम पर ही असर पड़ रहा है."

इसके अलावा, एक बड़ी समस्या की तरफ़ इशारा करना बेहद ज़रूरी है: हेल्थ केयर (स्वास्थ्य सेवा) से जुड़े ऐसे आंकड़ों की काफ़ी कमी है जो इस क्षेत्र में बढ़ती बीमारियों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ पाता हो. इस वजह से, जलवायु संकट से प्रभावित असंख्य लोगों को सार्वजनिक नीतियों के निर्माण के वक़्त नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जबकि ये नीतियां समाज के सबसे कमज़ोर तबके के लोगों को लाभ पहुंचाने के इरादे से बनाई जाती हैं.

सोनाली कहती हैं, "मेरा सपना है कि मैं एथलीट बनूं, लेकिन जब आप ग़रीब होते हैं, तो आपके पास सीमित विकल्प होते हैं, और ज़िंदगी आपको इनमें से किसी एक विकल्प को भी चुनने का मौक़ा नहीं देती." जैसे-जैसे दुनिया जलवायु संकट के दुष्चक्र में फंसती जा रही है, बारिश का पैटर्न बदलता रहेगा और सानिया, ऐश्वर्या व सोनाली के पास उपलब्ध विकल्प और सीमित होते जाएंगे.

सानिया कहती हैं, “मैं बाढ़ के दौरान पैदा हुई थी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपना पूरा जीवन बाढ़ के बीच ही गुज़ारना पड़ेगा.”

यह स्टोरी उस शृंखला की एक कड़ी है जिसे इंटरन्यूज के अर्थ जर्नलिज़्म नेटवर्क का सहयोग प्राप्त है. यह सहयोग इंडिपेंडेट जर्नलिज़्म ग्रांट के तौर पर रिपोर्टर को हासिल हुआ है.

अनुवाद: अमित कुमार झा

Sanket Jain

মহারাষ্ট্রের কোলাপুর নিবাসী সংকেত জৈন পেশায় সাংবাদিক; ২০১৯ সালে তিনি পারি ফেলোশিপ পান। ২০২২ সালে তিনি পারি’র সিনিয়র ফেলো নির্বাচিত হয়েছেন।

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Editor : Sangeeta Menon

মুম্বই-নিবাসী সংগীতা মেনন একজন লেখক, সম্পাদক ও জনসংযোগ বিষয়ে পরামর্শদাতা।

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Translator : Amit Kumar Jha

Amit Kumar Jha is a professional translator. He has done his graduation from Delhi University.

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