“केकरो से ई सभ गीत पढ़वा दीं, हम फेरु से रउआ खातिर एकरा सुर में बांधम आउर गा देहम,” दादू साल्वे हमनी से कहलें.
सत्तर के उमिर, बूढ़ हो रहल देह बाकिर अबहियो आंबेडकरवादी आंदोलन के एगो समर्पित सिपाही. दादू आजो आपन बुलंद आवाज आउर हारमोनियम से निकल रहल धुन के हथियार बनाके गैरबराबरी के मिटावे, समाज के बदले बदे आर-पार के लड़ाई लड़े खातिर तइयार बाड़ें.
अहमदनगर के एगो कमरा वाला घर में, आंबेडकर के जिनगी भर देहल गइल सुरीला सलामी आज हमनी सामने उजागर होत रहे. उनकर गुरु दिग्गज भीम शाहिर वामनदादा कर्डक के फ्रेम लागल फोटो दीवार पर बनल एगो अलमारी में सजावल रहे. एह में ऊ हरमेसा के तरह आपन वफादार साथी: हारमोनियम, तबला आउर ढोलकी संगे देखाई देत बाड़ें.
दादू अब तनी सरिया के बइठ गइल बाड़ें. अब ऊ छह दशक से भी जादे बखत तक भीम गीत गावे के आपन यात्रा के बारे में बतियावे लगलें.
साल्वे के जनम 9 अगस्त, 1952 में अहमदाबाद के नालेगांव (जे गौतमनगर के नाम से भी पहचानल जाला) में भइल रहे. पिता नाना यादव साल्वे भारतीय सेना के सेवा कइलें, माई तुलसीबाई घर संभारे के साथ-साथ घर चलावे खातिर मजूरी भी करत रहस.
अंग्रेजन के सेना में नौकरी करे वाला उनकर बाबूजी, दलित लोग के समझे-बूझे के तरीका में बदलाव लावे खातिर बड़ भूमिका निभइलें. एगो स्थिर नौकरी, भरपेट खाना के गारंटी आउर निश्चित पगार चलते ऊ आपन औपचारिक पढ़ाई पूरा कर पइलन. इहे पढ़ाई आगू चलके उनकरा खातिर दुनिया के खिड़की खोललक. एकरा से उनकर सोचे के तरीका बदल गइल. अब ऊ शोषण के खिलाफ लड़े बदे नया विचार से लैस रहस.
दादू के बाबूजी भारतीय सेना से अवकाश मुक्त भइलें, त भारतीय डाक सेवा विभाग में पोस्टमैन के काम करे लगलें. ऊ आंबेडकरवादी आंदोलन में बहुते बढ़-चढ़ के हिस्सा लेवत रहलें. ओह घरिया ई आंदोलन उफान पर रहे. बाबूजी के एह आंदोलन में हिस्सा लेवे चलते दादू के बहुते कुछ नजदीक से देखे समझे के मौका मिलल. ऊ एह आंदोलन के उद्देश्य से जुड़ गइलें.
माई-बाबूजी के अलावे, दादू पर उनकर दादा के भी बहुते असर पड़ल. दादा, यादव साल्वे के कडूबाबा नाम से भी जानल जाला.
दादू साल्वे हमनी के एगो बूढ़ आदमी के दिलचस्प कहानी सुनवलें जिनकर खूब लमहर दाढ़ी रहे. एक दिन उनकरा से शोध करे वाला एगो मेहरारू पूछली, “रउआ एतना लमहर दाढ़ी काहे रखले बानी?” ऊ 80 बरिस के बूढ़ रोए लगलें. बाद में उनकरा चुप करावल गइल, त ऊ आपन कहानी सुनवलें.
”बाबा साहेब आंबेडकर अहमदनगर आइल रहस. हम उनकरा से गांव आवे के विनती कइनी. हरेगांव में भारी संख्या में लोग उनकरा आवे के बाट जोहे लागल.” बाकिर बाबा साहेब के समय के भारी कमी रहे. एहि से बाबा साहेब ऊ बूढ़ आदमी से अगिला बेर उनकर गांव आवे के वादा कइलें. ऊ आदमी कसम खा लेलें कि जबले बाबा गांव ना अइहें, ऊ आपन दाढ़ी ना कटइहें.
बहुते बरिस ले ऊ इंतजार में रहलें. एह बीच दाढ़ी बढ़त गइल. आखिर में 1956 में बाबा साहेब गुजर गइलें. “हमार दाढ़ी बढ़त गइल. अब त ई हमरा मरले पर कटी,” ऊ बूढ़ आदमी कहलें. ऊ शोध करे वाला मेहरारू, जानल मानल विदुषी एलीनॉर जेलियट रहस. आउर ऊ बूढ़ आदमी आउर कोई ना, दादू साल्वे के दादा रहलें. आंबेडकरवादी आंदोलन के नामी विद्वान आउर एगो कडूबाबा.
*****
दादू बस पांच दिन के रहलें, जब उनकर आंख के रोशनी चल गइल. जनम भइला के कुछे दिन बाद केहू उनकरा आंख में दवाई के कुछ बूंद डाल देलक. एकरा से ऊ हरमेसा खातिर दुनिया देखे से वंचित हो गइलें. बहुते तरह के इलाज करवावल गइल, बाकिर सभ बेकार. उनकर दुनिया घर में सीमित हो गइल. अइसन हालत में स्कूल जाके पढ़े के त कवनो सवाले ना उठत रहे.
ऊ आपन पड़ोस में एकतारी भजन गावे वासा टोली में शामिल हो गइलन. चमड़ा, धातु आउर लकड़ी से बजे वाला वाद्य यंत्र, दिमडी बजावे लगलें.
“हमरा इयाद बा केहू आइल आउर बतइलक कि बाबा साहेब के देहांत हो गइल. हमरा ना पता रहे ऊ के रहस. बाकिर जब लोग के उनकरा खातिर रोअत आउर छटपटात देखनी त बूझा गइल, मरे वाला कवनो महान आदमी रहे.”
बाबा साहेब दीक्षित, अहमदनगर में दत्ता गायन मंदिर नाम से एगो संगीत विद्यालय चलावत रहस. दादू के संगीत सीखे के बहुत मन रहे, बाकिर एकरा खातिर फीस देवे में असमर्थ रहस. ओह घरिया रिपब्लिकन पार्टी के विधायक आर.डी. पवार उनकरा खातिर दूत बनके अइलें. ऊ आर्थिक मदद करे के पेशकश कइलें. एकरा बाद दादू के नाम लिखावल जा सकल. पवार उऩकरा खातिर एगो नया हारमोनियम भी खरीद देहलें. एकरा बाद दादू 1971 में भइल संगीत विशारद के परीक्षा देलन आउर पास कर गइलन.
एकरा बाद ऊ ओह घरिया के नामी कव्वाल महमूद कव्वाल निजामी से जुड़ गइले. दादू उनकर कार्यक्रम में जाके गावे लगलें. दादू खातिर आमदनी के इहे एगो जरिया रहे. बाद में ऊ संगमनेर के कॉमरेड दत्ता देशमुख के सुरु कइल मंडली- कला पथक में आ गइलें. ऊ एगो दोसर कॉमरेड भास्कर जाधव के निर्देशन में तइयार भइल नाटक, ‘वासुदेवचा दौरा’ खातिर लिखल गइल गीत के सुर-संगीत में बंधलें.
दादू केशव सुखा अहेर के भी शौक से सुनत रहस. सुखा अहेर एगो नामी लोककवि रहस. अहेर, नासिक में कालाराम मंदिर में प्रवेश पर रोक के खिलाफ आंदोलन करे वाला छात्र के समूह में शामिल रहस. ऊ आपन गीत के जरिए अंबेडर आंदोलन के भी सहयोग कइलन. जब अहेर, भीमराव कर्डक के ‘जलसा' सुने के मिलल, त एकरा से प्रेरित होके ऊ कइएक गीत लिखलें.
बाद में, अहेर अपना के पूरा तरीके से ‘जलसा’ के समर्पित कर देले रहस. ऊ आपन गीत के माध्यम से दलित के जागरूक करे के अभियान में लग गइलें.
साल 1952 में, आंबेडकर मुंबई से आम चुनाव लड़लें. ऊ अनुसूचित जाति महासंघ के उम्मीदवार रहलें. अहेर ‘नवभारत जलसा मंडल’ के सुरुआत कइलन, जलसा खातिर गीत रचलन आउर बाबा साहेब खातिर चुनाव अभियान चलइलन. दादू एह मंडल ओरी से आयोजित सभे कार्यक्रम के सुनलें.
आजादी जब मिलल, ओकरे आस-पास, अहमदनगर वामपंथी आंदोलन के गढ़ रहे. दादू साल्वे बतावत बाड़ें, “केतना नेता लोग हमरा घरे आवत रहे. बाबूजी ओह लोग संगे काम करत रहस. ओह बखत दादासाहेब रुपावते, आर.डी.पवार जइसन नेता लोग आंबेडकरवादी आंदोलन में बहुते सक्रिय रहे. ऊ अहमदनगर में भइल आंदोलन के अगुआई कइले रहस.”
दादू जनसभा में भी भाग लेवत रहस. ऊ बीसी कांबले आ दादासाहेब रुपावते के भाषण सुने जात रहस. बाद में ई दुनो दिग्गज में मनमुटाव भ गइल. नतीजा ई भइल कि आंबेडकरवादी आंदोलन दू गुट में बंट गइल. ई एगो महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना रहे. एकरा से प्रेरित होके बहुते गीत सभ लिखल गइल. दादू बतावत बाड़ें, “दुनो गुट के कलगी-तुरा (अइसन गाना जहंवा एगो समूह सवाल करी, चाहे बयान दीही, दोसर समूह ओकर जवाब दीही, चाहे बयान के विरोध करी) में महारत हासिल रहे.”
लालजीच्या घरात घुसली!!
ई बुढ़िया अब सठिया गइल बिया
आउर लालजी के घर में घुस गइल बिया!
इहंवा कहे के मतलब दादासाहेब के सोचे-समझे के शक्ति चल गइल आउर कम्युनिस्टन में शामिल हो गइल बाड़ें
हमला के जवाब दादासाहेब के गुट एह तरह से देत बा:
तू पण असली कसली?
पिवळी टिकली लावून बसली!
तनी आपन हाल देख, बेवकूफ मेहरारू!
आउर आपन माथा पर लगावल पियर टिकुली त देख!
दादू एकर मतलब बतावत बाड़ें. “बी.सी. काम्बले पार्टी के झंडा पर नीला अशोक चक्र के जगह पर पियर रंग के पूर्णिमा के चांद बना देले रहस. ई कटाक्ष इहे फैसला के बारे में रहे.”
दादासाहेब रूपावते, बी.सी. काम्बले के गुट ओरी रहस. बाद में ऊ कांग्रेस पार्टी में चल गइलें. गीत के जरिए उनकर एह कदम के भी निंदा कइल गइल.
अशी होती एक नार गुलजार
अहमदनगर गाव तिचे मशहूर
टोप्या बदलण्याचा छंद तिला फार
काय वर्तमान घडलं म्होरं S....S....S
ध्यान देऊन ऐका सारं
केतना सुंदर, जवान मेहरारू
मशहूर नगर-अहमद से आइल बाड़ी
ओकरा शौक बा ठौर बदले के
जाने के चाहत बानी, आगे का भइल?
आपन कान दीहीं, सभ जान जाएम…
दादू कहलें, “हम अंबेडकरवादी आंदोलन के एह कलमा-तुरा के सुनके बड़ भइल बानी.”
*****
साल 1970 में दादू साल्वे के जिनगी बदल गइल. उनकर भेंट वामनदादा कर्डक से भइल. वामनदादा ओह घरिया आंबेडकर के सामाजिक, सांस्कृतिक आउर राजनीतिक आंदोलन के महाराष्ट्र के भीतर दूर-दूर तक ले जाए के काम करत रहस. आपन आखिरी सांस तक ऊ एह खातिर अभियान चलावत रहलें.
माधवराव गायकवाड़, 75 बरिस, वामनदादा कर्डक के बारे में जानकारी जुटावे के काम करेलें. उहे दादू साल्वे के वामनदादा से मिलवावे ले गइल रहलें. माधवराव आउर उनकर घरवाली, सुमित्रा, 61 बरिस, दुनो प्राणी मिलके वामनदादा के लिखल 5000 से जादे गीत जुटइले बा.
माधवराव के कहनाम बा, “ऊ नागपुर में 1970 में आइल रहस. आंबेडकर के काम आउर संदेश के आगू बढ़ावे खातिर एगो ‘गायन’ पार्टी बनावे के बहुते उत्सुक रहस. दादू साल्वे आंबेडकर के गीत गावत रहस, बाकिर उनकरा लगे जादे असरदार गीत सभ ना रहे. एहि से, हम वामनदादा लगे गइनी आउर उनकरा के बतइनी, ‘हमनी के राउर गीत चाहीं’.”
वामनदादा जवाब देहलें कि ऊ आपन गीत सभ कबो एक जगह ना रखस, “हम लिखिला, गाइला, आउर ओकरा उहंई छोड़ दिहिला.”
माधवराव इयाद करत बाड़ें, “उनकर गीत के अइसन अनमोल खजाना एह तरह से व्यर्थ जात देख हमनी निरास हो गइनी. वामनदादा अबेडकरवादी आंदोलन में आपन सर्वस्व लुटा देहले रहस.”
उनकर काम के बचावे, संभारे खातिर, माधवराव कमर कस लेहलें. ऊ दादू साल्वे के वामनदादा के सभे प्रोग्राम में ले जाए लगलें: “दादू वामनदादा संगे हारमोनियम पर संगत करस आउर ऊ जे गीत गावस, हम ओकरा लिख लीहीं. ई सभ लाइव चलत रहे.”
ऊ अइसन 5,000 से जादे गीत सहेज के छापलन. एकरा बादो, अइसन आउर 3,000 गीत बा, जे उजाला के मुंह नइखे देखले. ऊ बतावत बाड़ें, “आर्थिक लाचारी चलते हम सभे गीत ना छाप पइनी. बाकिर एतना जरूर कहेम, अंबेडकरवादी आंदोलन के विचार, जरूरी जानकारी के हम खाली दादू के कारण बचा पइनी. ऊ ना रहतें, त हम ई सभ ना कर पइतीं.”
दादू साल्वे वामनदादा के काम से एतना प्रभावित भइलन कि ऊ एगो नया ग्रुप ‘कला पथक’ सुरु करे के फइसला लेहलें. एह खातिर ऊ शंकर तबाजी गायकवाड़, संजय नाथ जाधव, रघु गंगाराम साल्वे, आउर मिलिंद शिंदे जइसन रतन के एक मंच पर लेके अइलें. एह समूह के नाम भीम संदेश ज्ञान पार्टी, मतलब आंबेडकर के विचार फइलावे वाला एगो संगीत समूह, रखल गइल.
ऊ लोग एगो अभियान खातिर गावत रहे. एहि से ओह लोग के गीत-संगीत में आडंबर, चाहे केहू के प्रति दुर्भावना ना रहे.
दादू हमनी खातिर ई गीत गइलें:
उभ्या विश्वास ह्या सांगू तुझा संदेश भिमराया
तुझ्या तत्वाकडे वळवू आता हा देश भिमराया || धृ ||
जळूनी विश्व उजळीले असा तू भक्त भूमीचा
आम्ही चढवीला आता तुझा गणवेश भिमराया || १ ||
मनुने माणसाला माणसाचा द्वेष शिकविला
तयाचा ना ठेवू आता लवलेश भिमराया || २ ||
दिला तू मंत्र बुद्धाचा पवित्र बंधुप्रेमाचा
आणू समता हरू दीनांचे क्लेश भिमराया || ३ ||
कुणी होऊ इथे बघती पुन्हा सुलतान ह्या भूचे
तयासी झुंजते राहू आणुनी त्वेष भिमराया || ४ ||
कुणाच्या रागलोभाची आम्हाला ना तमा काही
खऱ्यास्तव आज पत्करला तयांचा रोष भिमराया || ५ ||
करील उत्कर्ष सर्वांचा अशा ह्या लोकशाहीचा
सदा कोटी मुखांनी ह्या करू जयघोष भिमराया || ६ ||
कुणाच्या कच्छपी लागून तुझा वामन खुळा होता
तयाला दाखवित राहू तयाचे दोष भिमराया || ७ ||
आपन एह संदेशन के हमनी के दुनिया में फइलावे द, ओ भीमराया
ओह सभे के तोहर सिद्धांत में ढाले द, ओ भीमराया II 1 II
एह दुनिया के तू अपने जल के रोशन किल, ओ माटी के लाल
हमनी तोहरे के माने वाला बानी, तोहरे कपड़ा पहिनेवाला, ओ भीमराया II 2 II
मनु त हर दोसर मनुज से घृणा के पाठ रहस पढ़इले
कसम बा, हमनी ओह सोच के खत्म कर देहम, ओ भीमराया II 3 II
रउआ त हमनी के बुद्ध के भाईचारा सिखइले रह
हमनी समानता लाएम, गरीबन के दुख मिटाएम, ओ भीमराया II 4 II
कुछ लोग एह धरती के फेरु से गुलाम बनावे के चाहत बा
हमनी आपन पूरा जोर लगाके ओ सभे से लड़ जाएम, ओ भीमराया II 5 II
उनकर खुसी आउर गोस्सा के हमनी के रत्ती भर परवाह नइखे
आपन सच बतलावे खातिर हम उनकर गोस्सा पी जाएम, ओ भीमराया II 6 II
का वामन कर्डक बुड़बक रहस जे उनकर बात में उलझ गइलन?
हमनी उनकर हर चेहरा के आइना देखाएम, ओ भीमराया II 7 II
दादू के जवन मंच पर भी गीत गावे खातिर बोलावल जाए, ऊ वामनदादा के गीत गावस. उनकर मंडली ‘कला पथक’ के छठी, चाहे बूढ़ा या बेमार के मरला जइसन पारिवारिक मौका आउर अवसर पर आंबेडकरवादी गीत गावे खातिर बोलावे जाए लागल.
दादू जइसन लोग आंबेडकर आंदोलन के आगू बढ़ावे खातिर गावत रहे. गीत गावे वाला टोली कवनो तरह के पइसा के उम्मेद ना करत रहे. लोग खुस होके मुख्य कलाकार के प्यार आ सराहना के प्रतीक के रूप में एगो नारियल उपहरा में देत रहे. दोसर कलाकार सभ के चाय पेश कइल जात रहे. बस एतने. दादू कहलें, “हमरा गाना गावे आवत रहे. एह आंदोलन में हम एहि तरह से आपन योगदान देनी. हम वामनदादा के विरासत के बचावे आउर आगू बढ़ावे के कोशिश करत बानी.”
*****
वामनदादा महाराष्ट्र के केतना गायक लोग खातिर गुरु बाड़ें. बाकिर दादू के जिनगी में उनकर एगो अलग आउर खास स्थान बा. देख ना पावे के कारण, दादू उनकर गीत बचावे खातिर सुन सुन के इयाद कर लेत रहस. उनकरा अइसन 2,000 गीत कंठस्थ बा. ना खाली गीत, बाकिर गीत से जुड़ल बहुते छोट-बड़ बात, सभे कुछ इयाद बा. जइसे कि ई कब लिखल गइल, कवन चीज के बारे में बा, आउर एकर मूल धुनका रहे… दादू के सभे कुछ इयाद बा. ऊ वामनदादा के जाति प्रथा के विरोध करे वाला गीत के भी संगीतबद्ध कइलें. एह गीत सभ आज सगरे महाराष्ट्र में गावल जाएला.
दादू के संगीत में महारत हासिल रहे. ऊ एक तरह से वामनदादा से एक कदम आगू रह- ऊ गीत के धुन, ताल आउर मीटर के तकनीकी रूप से जानकारी रखेलें. ऊ एकरा बारे में आपन गुरु से अक्सरहा विचार-विमर्श करस. दादू उनकर मौत के बाद बहुते गीत के धुन रचलें. उनकर बहुते पुरान धुन के नया तरीका से सजवलें.
हमनी के एह अंतर के देखावे लेल ऊ सबसे पहिले वामनदादा के मौलिक रचना गाके सुनइलें. फेरु तुरंत बाद आपन बनावल धुन सुनवलें.
भीमा तुझ्या मताचे जरी पाच लोक असते
तलवारीचे तयांच्या न्यारेच टोक असते
ओ भीम! रउआ संगे चाहे पांचे लोग राजी होखे
उनकर आग बाकी सबसे जादे मारक आउर खतरनाक होखी
वामनदादा उनकरा पर आंख मूंद के भरोसा करत रहस. दादू के गुरु खुद आपन मौत के बारे में एगो गीत लिखे के जिम्मेवारी उनकरा सौंपले रहस.
राहील विश्व सारे, जाईन मी उद्याला
निर्वाण गौतमाचे, पाहीन मी उद्याला
दुनिया इहंवे रही, बस हम चल जाएम
आउर गौतम के मुक्ति के गवाह बनम
दादू एकरा एगो मीठ धुन में ढाल के आपन जलसा में गइलन.
*****
संगीत दादू के जिनगी आउर राजनीति के अटूट हिस्सा बन गइल बा.
उनकर गायकी ओह दौर में लोग के सामने आइल, जब आंबेडकर से जुड़ल लोकगीत आउर गाना परवान पर रहे. भीमराव कर्डक, लोककवि अर्जुन भालेराव, बुलढ़ाणा के केदार ब्रदर्स, पुणे के राजानंद गडपायले, श्रवण यशवंते आउर वामनदादा करदक जइसन कलाकार लोग एह लोकप्रिय गीतन के उस्ताद रहे.
दादू एह में से बहुते गीत के आपन आवाज देहलन. आपन संगीत के खजाना संगे गांव-देहात में घूमलन. आंबेडकर के जाए के बाद जे पीढ़ी पैदा भइल, ऊ आंबेडकर के बारे में, उनकर जिनगी, उनकर काम, उनकर विचार सभ खाली इहे गीतन के माध्यम से जानलक. दादू आंबेडकरवादी आंदोलन के उनकरा बाद के अनेक पीढ़ी तक पहुंचावे आउर उनकर वैचारिक प्रतिबद्धता के निर्माण करे में महत्वपूर्ण भूमिका निभइलन.
केतना कवि लोग खेत में पसीना बहावे वाला किसान के संघर्ष आउर सम्मान के जिनगी खातिर लड़ रहल दलितन के संघर्ष के स्वर देलक. ऊ तथागत बुद्ध, कबीर, ज्योतिबा फुले के उपदेश आ सीख देवे आउर डॉ. आंबेडकर के जिनगी आउर व्यक्तित्व बतावे वाला गीत लिखलक. जे लोग पढ़-लिख ना सकत रहे, ऊ लोग खातिर ई गीत एगो सीख रहे. दादू साल्वे एह गीत सभ के जादे से जादे लोग तक पहुंचावे आउर ओह लोग के बीच लोकप्रिय करे खातिर आपन संगीत आउर हारमोनियम के सहारा लेलन. नतीजा ई भइल कि अब अइसन गीत लोग के अंतरात्मा के हिस्सा बन गइल बा.
एह गीत में छिपल संदेश आउर शाहिर जरिए उनकर दमदार पाठ से देस के कोना कोना में जाति विरोधी आंदोलन के जगावे आउर फैलावे में मदद मिलल. ई गीत आंबेडकरवादी आंदोलन के आत्मा बा. दादू समानता के एह लड़ाई में अपना के एगो छोट सिपाही मानेलन.
दादू साल्वे आपन गीत के कबो पइसा कमावे के जरिया ना बनइलें. उनकरा खातिर गीत जिनगी के मकसद रहे. बाकिर ई अलग बात बा, आज 72 के उमिर में, उनकर जोश आउर खिंचाव पहिले जइसन नइखे रह गइल. साल 2005 में उनकर इकलौता लइका के एगो दुर्घटना में मौत हो गइल. एकरा बाद से आपन बहू आउर तीन गो पोता-पोती के देखभाल उहे करत रहलें. बाद में, जब बहू दोसर शादी के इच्छा जतइली, दादू खुसी खुसी उनकर इच्छा के सम्मान कइले. एकरा बाद ऊ आपन घरवाली देवबाई संगे दोसरा जगह एक कमरा के घर में आ गइलन. देवबाई 65 बरिस के बाड़ी. ऊ बेमार रहेली आउर बिस्तर पकड़ लेले बाड़ी. दुनो प्राणी लोग बहुत मामूली पेंशन पर गुजारा करेला. ई पेंशन राज्य सरकार के ओरी से लोक कलाकार के देवल जाला. एतना कठिनाई के बादो, आंबेडकरवादी आंदोलन आउर संगीत के प्रति उनकर समर्पण में कवनो कमी नइखे आइल.
दादू के आजकल के नया गीत-संगीत ना भावे. ऊ उदास आवाज में कहले, “आजकल के कलाकार लोग के गीत पर बाजार हावी बा. ऊ लोग के रुचि खाली आपन नाम, आउर दाम बनावे में बा. ई सभ देखला पर बहुते तकलीफ होखले.”
दादू साल्वे आंबेडकर आउर वामनदादा के शख्सियत आउर दर्शन के बारे में बात करत-करत उनकर गीत याद करे लागेलें. फेरु गीत के हारमोनियम पर गावत-गावत ओह में डूब जाएलें. उनकरा एह तरह से आपन गायकी में डूबल देखना, एह निराशा भरल दौर में उम्मीद से भर देवेला.
अइसे त, दादू आंबेडकर के विचार के एगो नया ऊंचाई आउर लोकप्रियता देले बाड़ें. एह में शाहिर के अमर बोल आउर उनकर धुन के खूब मदद मिलल. दादू के गीत आम जनता के चेतना के जगावे के काम करेला. बाद में एहि दलित शाहीर (गीत के प्रस्तुति) समाज के दोसर बुराई, अन्याय आउर भेदभाव के खिलाफ आवाज उठावे के काम कइलक. दादू के आवाज एह सभ के बीच हर जगह गूंजत बा.
बातचीत खत्म होखे के आवत रहे. दादू थाकल देखाई देत रहस. ऊ आपन बिछौना पर फेरु लद जात बाड़ें. हम जइसहीं कवनो नया गीत के बारे में पूछे लगनी, ऊ हरकत में आ गइलें, कहलें, “जदि कोई ई गीत सभ पढ़ दीहि, त हम एकर धुन तइयार कर लेहम आउर तोहरा खातिर गुनगुना देहम.”
आम्बेडकर आंदोलन के ई सिपाही आजो गैरबराबरी के खिलाफ लड़े आउर समाज में बदलाव लावे खातिर आपन आवाज आउर हारमोनियम संग हरमेसा तइयार बाड़ें.
प्रस्तुत स्टोरी मूल रूप से मराठी में लिखल गइल आउर मेधा काले एकर अंग्रेजी में अनुवाद कइली.
पारी के सहयोग से इंडियन फाउंडेशन फॉर आर्ट्स,आर्चीव एंड म्यूजियम प्रोग्राम चलावत बा. एह स्टोरी में शामिल कइल गइल वीडियो, एहि प्रोग्राम ओरी से लागू कइल गइल, इन्फ्लूएंशियल शाहीर्स, नैरेटिव्स फ्रॉम मराठवाडा नाम के प्रोजेक्ट के हिस्सा बा. नई दिल्ली स्थित गेटे संस्थान (मैक्स मूलर भवन) से भी एह प्रोजेक्ट के आंशिक रूप से मदद मिलल बा.
अनुवाद: स्वर्ण कांता