15 फरवरी 1885 मं महात्मा जोतिराव फुले के सुरु करे गे एक ठन स्कूल मं पढ़ेइय्या एक झिन दलित नोनी मुक्ता साल्वे ह ‘'मांग-महारांच्य दुक्खविषयी’ (मांग अऊ महार मन के दुख के बारे मं’) नांव ले एक ठन आगि जइसने लेख लिखे रहिस. ये ह एक ठन मराठी पत्रिका ज्ञानोदय मं छपे रहिस. वो ह ये लेख मं धरम के रखवार मन ला चुनौती दीस: “वो धरम ला, जिहां सिरिफ एके मनखे ला खास हक हासिल हवय, अऊ बाकि बांचे हवंय, वो ह धरती ले नंदा जाय अऊ अइसने (भेदभाव वाले) धरम के अभिमान हमर दिमाग मं कभू न आवय.”
मुक्ता साल्वे सिरिफ 15 बछर के रहिन जब वो ह अपन ‘मांग’ (बिचार) ला लोगन मन के आगू रखे रहिन. ओकर बिचार हमन ला बताथे के कइसने बाम्हन शासक मन अऊ जम्मो समाज ह दलित मन के ऊपर अतियाचार करिन. ओकरे जइसने कडुबाई खरात ह आलंदी मं धरम के नेता मन ला चुनौती दीस अऊ वो मन ला आध्यात्मिकता अऊ धरम ऊपर होय चर्चा मं हरा दीस. कडुबाई आम लोगन मन के जिनगी के दुख अऊ ओकर लड़ई ला लेके गाथें. ओकर गीत गहिर ले अध्यात्म ला बताथे. ओकर गीत मनखे मनखे एक समान ला फोर के बताथे अऊ बाबासाहेब अम्बेडकर के आभार जताथे.
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काखेत पोरगं हातात झाडनं डोईवर शेणाची पाटी
कपडा न लत्ता, आरे, खरकटं भत्ता
फजिती होती माय मोठी
माया भीमानं, भीमानं माय सोन्यानं भरली ओटी
मुडक्या झोपडीले होती माय मुडकी ताटी
फाटक्या लुगड्याले होत्या माय सतरा गाठी
पोरगं झालं सायब अन सुना झाल्या सायबीनी
सांगतात ज्ञानाच्या गोष्टी
सांगू सांगू मी केले, केले माय भलते कष्ट
नव्हतं मिळत वं खरकटं आणि उष्टं
असाच घास दिला भीमानं
झकास वाटी ताटी होता
तवा सारंग चा मुळीच पत्ता नव्हता
पूर्वीच्या काळात असंच होतं
बात मायी नाय वं खोटी
माया भीमानं, मया बापानं,
माया भीमानं माय, सोन्यानं भरली ओटी
एक हाथ मं लइका, दूसर हाथ मं बुहारी,
मोर मुड़ी ऊपर गोबर के झौन्हा
जुन्ना-चिरहा हमर ओढ़ावा
कमई मं मिलय बांचे निवाला,
मोर बेस्वास करव, जिनगी के रहिस एक ठन बड़े अपमान
फेर मोर भीम, हव, मोर भीम, वो ह मोर जिनगी ला अंजोर ले भर दीस
मोर टूटे कुरिया के एक ठन फेरका टूटे रहिस
फटे लुगरा मं अनगिनत गाँठ परे रहिन
अब मोर लइका अफसर हवय, अऊ बहुरिया मन घलो
वो मन मोला ग्यान के बात बताथें
मंय कतको दिक्कत ले जूझेंव अऊ भारी मिहनत करेंव
कभू खाय मं बांचे रोटी, जूठन मं कौंरा तक ले नई
फेर भीम ह आके हमन ला खाय ला दीस
एक ठन सुग्घर थारी अऊ कटोरी मं
कवि सारंग वो बखत नई रहिस
हमन तऊन दिन मं अईसने रहत रहेन
मंय लबारी नई मारत हवंव, मोर मयारू
मोर भीम, मोर ददा, वो ह मोर जिनगी ला अंजोर ले भर दीस
हमन डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर ला आभार जताय सेती हजारों गीत लिखे अऊ गाये हवन. फेर कुछेक हमर दिल मं बसगे हवय अऊ अतक जियादा पसंद करे गे हवय के हरेक के मन मं सुरता हवय. कडुबाई खरात के ये गीत ह वो मुकाम हासिल कर ले हवय. ये ह लोगन मन मं भारी पसंद करे जाथे, वो मन के घर मं अऊ मन मं रच बस गे हवय –अऊ ये ह अम्बेडकर ऊपर सबले जियादा घर-घर के नामी गीत मं एक ठन आय.
ये गाना के अतका हिट होय के कतको कारन हवय. भाव खातिर सटीक सही भाखा, साफ अवाज, बेमिसाल धुन अऊ बाजा, अऊ कडुबाई खरात के खास भारी अवाज. एक झिन आम मइनखे ह, कलर्स चैनल मं जलसा महाराष्ट्रचा जइससे टीवी शो अऊ ज़ी टीवी मं खास करके आइस. फेर हमन ओकर अंधियार ले चलत इहाँ तक के मुकाम हासिल करे के बारे मं बनेच कमती जानथन, जेकर बर वोला जूझे ला परिस. कडुबाई के जिनगी अइसने कतको अनुभव ले भरे हवय जइसने के ओकर नांव ले पता चलथे. (कडू, जेकर मराठी मं येकर मतलब करू होथे, मराठवाड़ा मं नोनी मन के रखे जवेइय्या पंसदीदा नांव आय, जऊन ला ‘नजर’ परे ले बचेइय्या माने जाथे.)
कडुबाई के ददा तुकाराम कांबले...
बालपन ले गरीबी झेलत, कडुबाई के सिरिफ 16 बछर के उमर मं बिहाव के कुछेक बछर भीतरी ओकर घरवाला ह हार्ट अटेक ले गुजर गे. जिनगी अऊ ओकर मन के तीन लइका (दू झिन बाबू अऊ एक झिन नोनी) के जिम्मेवारी ओकर ऊपर आ परिस. वो ह अपन ददा के एकतारा संग घर घर जावत रहिस, पारंपरिक भजन-कीर्तन (भक्ति गीत) गावत रहिस. वैदिक काल मं, गार्गी अऊ मैत्रेयी, विदुषी (ग्यानी माइलोगन) मन धरम के द्वारपाल मन के संग शास्त्रार्थ करे रहिन. अइसनेच, आलंदी मंदिर के अंगना मं कडुबाई ह एक बेर साधु-संत मन के संग बहस करे रहिस. वो ह कतको बछर कतको किसिम के भक्ति गीत गावत बिता दीस, फेर मुस्किल ले दू जून के खाय ला जुटाय सकय. येकरे सेती वो ह जालना जिला (महाराष्ट्र) मं अपन गांव ला छोड़े अऊ औरंगाबाद मं बसे के फइसला करिस.
फेर वो ह औरंगाबाद मं रहतीस कहाँ? वो ह औरंगाबाद-बीड बाईपास रोड के तीर नजूल जमीन (सरकारी जमीन) मं एक ठन नान कन कुरिया बना लीस अऊ उहाँ पानी धन बिजली जइसने बिन सुविधा के रहे ला लगिस. वो आज घलो उहिंचे रहिथें. सुरु मं कुछु बखत सेती मीरा उमाप ह कडुबाई ला अपन मंडली मं शामिल कर लीस. फेर मिले वो पइसा ले तीन लइका के पालन-पोसन सेती नई पुरत रहिस. कडुबाई कहिथे, बरसात के सीजन रहिस अऊ करीबन हफ्ता भर ले सुरुज देंवता दरसन नई देय रहिस. मंय कऊनो बूता करे घर ले बहिर घलो नई जाय सकत रहेंव. तीनों लइका भूख ले कलपत रहंय. मंय घर-घर जाके भजन गायेंव. एक झिन मईलोगन ह कहिस, 'डॉ. अंबेडकर ऊपर गीत गा'. मंय एक ठन गीत गायेंव अऊ वोला अपन भूखाय लइका मन के बारे मं बतायेंव. वो अपन रंधनीखोली मं गीस अऊ अपन घर के सेती बिसोय समान मोला दे दीस, जऊन ह मोर सेती महिना भर बर भरपूर रहिस. वो ह मोर लइका मन के भूख ला समझिस.
“अंबेडकर के गीत ह ओकर पेट ला अन्न दीस. मोर जिनगी बदल गे. मंय भजन कीर्तन छोड़ देंय अऊ डॉ. अम्बेडकर के बताय रद्दा मं चले ला लगेंव. मंय तऊन रद्दा ला धर लेवंय, 2016 मं मंय हिंदू धरम अऊ अपन मतंग जात ला छोड़ देंय. मंय बुद्ध के धम्म (बौद्ध धर्म) ला अपना लेंय !"
कडुबाई ह अपन घरवाला अऊ ददा ला घलो गँवा दीस. फेर अपन जम्मो लड़ई बखत, ओकर करा हमेशा एकतारी अऊ ओकर सुरीला आवाज रहिस. अपन ददा अऊ घरवाला के गुजरे के बाद वो ह अपन आप ला टूटे ले बंचा लीस.
अपन जिनगी के लड़ई मं कडुबाई के संग दू जिनिस रहिस: एकतारी अऊ ओकर अवाज. वो ह बाबासाहेब के मया, करुणा, प्रेरणा अऊ ताकत के सहारा ले दुनिया ले जूझिस.
घर-घर जाके गाना गाय अऊ भीख मांगे ह, आज महाराष्ट्र मं सेलिब्रिटी बने तक के ओकर रद्दा देखे जाने के लइक हवय. एकतारी ह 30 ले जियादा बछर ले ओकर संगवारी आय.
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एकतारी के सबले पहिली जिकर ला अजन्ता गुफा मन के (महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला मं) 17 नंबर गुफा मं देखे जा सकथे. गुफा के दीवार मन मं बाजा के चित्र बने हवय. महाराष्ट्र मं, हरेक जात-बिरादरी के पसंद के बाजा आय. ये बाजा ला देंवता-धामी, पूजा-पाठ अऊ सांस्कृतिक कार्यक्रम मं बजाय जाथे. हल्गी मन मंग बजाथें, डक्कलवार मन किंगरी; धनगर मन गाजी ढोल; देवी यल्लामा के भगत मन चौंदक; गोसावी मन दावरू; अऊ म्हार समाज के मन ढोलकी अऊ तुणतुणे बजाथें.
मुंबई विश्वविद्यालय मं इतिहास के प्रोफेसर डॉ. नारायण भोसले कहिथें के गोसावी समाज दावरू बाजा बजाय के परंपरा सेती दावरू-गोस्वामी के नांव ले जाने जाथे. माता सेवा के भजन गवेइय्या भाट समाज आंय. वो मन तुणतुणे अऊ संबल बजाथें.
एकतारी अऊ तुणतुणे दिखे मं एके जइसने हवंय. फेर ओकर अवाज, ओकर बजाय के तरीका अऊ हरेक बाजा ला बनाय के तरीका अलग-अलग होथे. एकतारी के संग भजन गाय के महार अऊ मांग परंपरा ऊंच जात मं नई दिखय धन ये ह दुब्भर आय. ये बाजा मन ये समाज मन के सांस्कृतिक जिनगी के अभिन्न अंग आंय. ये ला समाजिक अऊ धार्मिक आयोजन बखत अऊ रोज के जिनगी के कतको मऊका मं बजाय जाथे.
एकतारी के बारे मं, नामी शाहीर संभाजी भगत कहिथें; येकर अवाज अऊ तान पीरा ले जुरे हवंय. ‘डिंग नाग, डिंग नाग के अवाज ...’ पीरा ला बताथे. सुर भैरवी ले हवय, जेन ह भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा के एक ठन राग आय, जेन ह पीरा के बखान करथे. जब तुमन एकतारी ला सुनथो त तुमन सब्बो भैरवी ला मसूस करथो. एकतारी के संग गाय जाय करीबन सब्बो भजन भैरवी मं रचे गे हवंय. ये ह भैरवी के संग शुरू अऊ खतम होथे.
हिंदू धरम मं दू ठन भक्ति परंपरा हवंय : सगुन (जिहां देंवता के एक ठन रूप हवय) अऊ निरगुन (जिहां देंवता के कऊनो रूप नई ये). देंवता के मूर्ति अऊ मन्दिर सगुन परंपरा के केंद्र मं हवंय. फेर निरगुन सेती मन्दिर धन मूर्ति सेती कऊनो जगा नई ये. येकर मनेइय्या भजन गाथें. वो मन बर, संगीत पूजा आय, अऊ वो मन येला लोगन मन तक ले लेके जाथें अऊ अपन देवी/ देंवता के पूजा करथें. बौद्ध धरम ला स्वीकार करे के पहिली, महाराष्ट्र मं महार लोगन मन कबीर अऊ धगोजी-मेघोजी ला मानत रहिन.
आकाश पांघरुनी
जग शांत झोपलेले
घेऊन एकतारी
गातो कबीर दोहे
अकास के तरी
दुनिया सोवत हवय
एकतारी के संग
कबीर अपन दोहा गावत हवंय
कबीर के सब्बो भजन एकतारी मं बजाय जाय लगीस. ओकर मिहनत अऊ जिनगी के अनुभव, दर्शन अऊ दुनिया ला देखे के नजरिया ये गीत मन मं देखे जा सकत हवय.
कबीर दलित अऊ कोनहा मं परे लोगन मन बर अध्यात्मिक अऊ संगीत ले भरे प्रेरना आंय. घूमंतु समाज मन के अऊ घूम घूम के गवेइय्या मन एकतारी हाथ मं लेके सरा देश मं ओकर संदेश ला बगरे हवंय. कबीर के विद्वान पुरुषोत्तम अग्रवाल कहिथें के कबीर के असर सिरिफ हिंदी भाखा वाले इलाका अऊ पंजाब तक ले नई रहिस. वो ह उड़िया अऊ तेलुगु भाखा के इलाका, गुजरात अऊ महाराष्ट्र मं घलो हबर गे रहिस.
1956 के पहिली, महार अऊ दीगर जात जेन मन ला महाराष्ट्र मं अऊ येकर सरहद के पार, आंध्र, कर्नाटक, गुजरात अऊ मध्य प्रदेश मं 'अछूत' माने जावत रहिस, सब्बो कबीर के मनेइय्या रहिन. वो मन कबीरहा रहिन. महाराष्ट्र के विद्वान संत तुकाराम ऊपर घलो कबीर के असर परे रहिस. अइसने माने जाथे के कबीर अऊ कबीरपंथी परंपरा के असर ह एकतारी ला ये समाज मन के तीर ला दीस.
दलित परिवार खास करके महार, ऐतिहासिक रूप से अछूत समाज, एकतारी के संग गाय के रिवाज के पालन करथे. ये बाजा आज घलो चलन मं हवय. परिवार के ककरो गुजर जाय के बाद वो मन एकतारी मं भजन गाथें. महार समाज ह कबीर के बताय रद्दा ला समझाय वाले भजन गाये रहिन. करनी के फल, बने करम के महत्ता अऊ एक दिन परान चले जाय के बात ह कबीर के नजरिया के अधार आय, जऊन ला वो ह अपन दोहा मन मं अऊ भजन के जरिया ले समझाइस. कडुबाई अइसने सैकड़ों गीत ला जानथे जेन ह कबीर, नाथ अऊ वारकरी संप्रदाय (भक्ति जुग के ) ले जुरे हवंय.
कडुबाई कबीर के गीत गाथे
‘गगन
में आग लगी है भारी’ (अकास मं आगि लगे हवय भारी)’
अऊ तुकाराम के एक ठन अभंग:
करीन नामाचा या गजर
धन चोरला दिसत नाही
डोळे असून ही शोधत राही
हे विट्ठल,तोर नांव धन के
महिमा अपार
मंय जपहूँ तोर नांव बार बार !
येला देखे नई सकय कऊनो चोर
फेर आंखी मं दिखत रहिथे चहूं
ओर
फेर कडुबाई कतको लोगन मन के अइसने गीत ला गाय हवंय, फेर डॉ. अम्बेडकर के समाजिक नियाव आंदोलन के बढ़त असर सेती वो दीगर गीत गाये लगिन.
कबीर के भजन मन ला एकतारी के जरिया ले कतको जगा मं प्रस्तुत करेइय्या मध्यप्रदेश के एक झिन नामी गायक प्रह्लाद सिंह टिपनिया, बलाई जात समाज ले हवंय. समाज के हालत महाराष्ट्र मं महार जइसने हवय. बलाई मध्य प्रदेश के बुरहानपुर, मालवा अऊ खंडवा इलाका मं अऊ महाराष्ट्र सरहद मं बसे हवंय. जब डॉ. अम्बेडकर ह दलित मन के ऊपर होय जात पात के अतियाचार ला फोर के बताय रहिस, त वो ह बलाई समाज के उदाहरन दे रहिस. गर हमन गाँव के सरकारी रिकार्ड के जाँच करथन, त हमन ला मिलथे के करीबन सौ बछर पहिली महार मन ला गाँव के रखवारी करे, जमीन ला नापे मं मदद करे अऊ रिश्तेदार मन ला मरे-गुजरे के खबर देय सेती तैनात करे गे रहिस. ये ह समाज मं ओकर भूमका रहिस. मध्यप्रदेश मं, बलाई समाज ला एकेच काम सौंपे गे रहिस – गाँव के रखवारी (कोटवार) ला बलाई कहे जावत रहिस. अंगरेज राज मं ये जात के नांव महार रखे गे रहिस. ये ह काबर बदल गे ? खंडवा अऊ बुरहानपुर मं अंगरेज सरकार ह देखे रहिस के मध्य प्रदेश मं बलाई अऊ महाराष्ट्र मं महार एके जइसने रहिन- वो मन के जिनगी के तरीका, रिती-रिवाज, समाजिक चाल-चलन घलो एके जइसने रहिन. अऊ येकरे सेती महार जात ले जुरे लोगन मन ला मध्य प्रदेश मं बलाई घोषित करे गीस. 1942-43 मं वो मन के जात ला फिर ले कागज मं महार के रूप मं दरज करे गीस. ये आय बलई के कहिनी.
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प्रह्लाद सिंह टिपनिया अऊ शबनम विरमानी [ कबीर प्रोजेक्ट के] एकतारी के संग गाथें जव वो मन कबीर भजन गाथें.
भजन गवेइय्या अऊ घुमंतू कलाकार मन के संग एकतारी बाजा ला देश के कतको जगा मं देखे जाथे. करीबन 100-120 सेंटीमीटर लाम एकतारी के कतको नांव हवंय. कर्नाटक मं, येला एकनाद कहे जाथे, पंजाब मं तुम्बी; बंगाल मं बाऊल अऊ नागालैंड मं ताती. येला तेलंगाना अऊ आंध्र प्रदेश मं बुर्रा वीणा कहे जाथे. छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपन संगीत अऊ नाच मं एकतारी ला बजाथें.
एकतारी ह चेपटा, सुक्खा पोंडा तूमा ले बनाय जाथे. बजाय डहर आगू के भाग ह चमड़ा ले मढ़े जाथे. ये मं एक ठन पोंडा वेलू (एक किसम के बांस) ला डरे जाथे. तरी के हिस्सा तूमा ले बहिर निकरथे अऊ एक ठन डोरी ले बंधाय रथे. तार ला मंझा मं रखे जाथे अऊ वेलू के दूसर हिस्सा मं एक ठन खूंटी ले बांध दे जाथे. तार ला तर्जनी धन मध्यमा अंगुली ले बजाय जाथे.
एकतारी बनाय के डिज़ाइन अऊ तरीका दीगर तार बाजा के बनिस्बत असान आय. तूमा, लकरी, बांस अऊ डोरी असानी ले मिल जाथे. तूमा ला सबले बढ़िया गूंजने वाला जंत्र माने जाथे. ये ह अफ्रीका के बाजा मन मं घलो बनेच बऊरे जाथे. एकतारी ह मूल स्वर देथे अऊ लय घलो. गवेइय्या ह अपन अवाज ला कम जादा कर सकथे अऊ गाय के अवाज ला तेज कर सकथे. ये ह प्राचीन, देशी बाजा आय. सुरु मं, तार घलो चमड़ा ले बनत रहिस, जऊन ह जानवर मन के चमड़ी के भीतरी परत ले बनाय जावत रहिस. कर्नाटक मं, यल्लमा के पूजा मं अभू घलो चमड़ा के तार वाला एकतारी बजाय जाथे. येला ‘झुंबरुक’ कहिथें. त हमन ये कहे सकथन के पहिली बखत सुर अऊ लय तब बनिस जब चमड़ा के डोरी ह चमड़ा के एक ठन चेपटा गोल तुमा ऊपर कसाय ला छेड़े गीस. अऊ उहाँ ये ह पहिला बाजा रहिस. खेती किसानी मं लोहा आय के बाद येकर ले बने तार ला बऊरे गीस. सरी दुनिया मं, कतको एक तार वाले बाजा के जनम होईस अऊ बजाय गे. गली-खोर के बजेइय्या अऊ घुमंतू लोगन मन के बनाय अऊ बजाय बाजा मन घलो वो मन के जिनगी गुजारे के तरीका ले लकठा ले जुरे रहिन.
अइसने माने जाथे के भारत मं भक्ति आन्दोलन के संत अऊ कवि मन एकतारी ला भारी बऊरत रहिन. फेर, एतिहासिक रूप ले, ये ह सो फीसदी सत नई ये. हमन देखठन के कबीर, मीराबाई अऊ कुछेक सूफी संत मन गावत बखत एकतारी बजावत रहिन, फेर महाराष्ट्र मं, नामदेव ले लेके तुकाराम तक कतको कवि-संत ताल (झांझ), चिपली (लकरी के फ्रेम मं लगे धातु के चकरी) अऊ मृदंग बजावत रहिन. कतको चित्र मन मं संत मन ला हाथ मं वीणा धरे दिखाय गे हवय.
मराठी विश्वकोष कहिथे: “वीणा भारतीय संगीत मं बजेइय्या प्राचीन बाजा आय. जऊन ला वैदिक मंत्र गायन बखत सुर धरे सेती बजाय जावत रहिस.” वइसे हमन येला नामदेव अऊ तुकाराम जइसने संत मन के चित्र मन मं देखथन, फेर तुकाराम के लिखे कऊनो अभंग मं हमन ला येकर जिकर नई मिलय. फेर हमन ला दीगर बाजा ताल, चिपली अऊ मृदंग के कतको जिकर मिलथे. हमन कहे सकथन के वीणा धरे तुकाराम के छवि संत के बाम्हनवाद के अगुवई आय.
लोगन मन के रोज के जिनगी के हिस्सा बने जम्मो पक्ष ला हमेशा बाम्हनवादी विचार ले हथिया ले गे हवय. बाम्हनवादी परंपरा मं देंवता मन के, सांस्कृतिक चलन के अऊ जनता के दीगर भावना के दावा करे गे हवय, जेकर ले ओकर मूल चेहरा अऊ चरित्र बदल गे हवय. जइसनेच अंगरेज मन जीत गीन अऊ भारत के भूंइय्या मं कब्जा कर लीन, पेशवा मन के खतम होय के बाद बाम्हनवादी बेवस्था ह अपन ताकत गँवा दीस. समाज मं हालत के तऊन नुकसान ला भरे सेती, बाम्हन मन सांस्कृतिक क्षेत्र मं अपन शासन जमाइन. अऊ, अइसने करत, कतको कला अऊ संगीत बाजा ला, जऊन ह मजूर लोगन मन ले जुरे रहिस, ला उभरत ये सांस्कृतिक शक्ति-केंद्र ह हथिया लीस.
मजूर लोगन मन ये कला अऊ बाजा ऊपर अपन स्वामित्व अऊ हक ले भरे काबू ला गंवा दीन, अऊ आखिर मं, जऊन लोगन मन वो ला बनाय रहिन, वो मन कला अऊ संगीत ले बेदखल हो गीन.
मृदंग, वारकरी परंपरा मं बऊरेइय्या हाथ ले बजाय ढोल चमड़ा ले मढ़े एक ठन द्रविड़ बाजा आय, अऊ दक्खन भारत मं अछूत मन येला बनाथें. दूसर डहर, वीणा ,भागवत परंपरा ले जुरे हवय, जऊन ला उत्तर भारत मं पालन करे जाथे. हो सकत हवय के ये मंडली मन वीणा ला वारकरी संप्रदाय ला बताइन. एकतारी,संबल, टिमकी, तुणतुणे अऊ किंगरी भारत के कोंटा मं परे अऊ दलित पीड़ित समाज मन के डहर ले बनाय गे बाजा आंय. फेर वीणा, संतूर अऊ सारंगी - शास्त्रीय संगीत मं बजाय बाजा –फारस मं जनम लीस अऊ सिल्क रुट के जरिया ले भारत आइस. सबले नामी वीणा कलाकार पाकिस्तान मं हवंय, अऊ भारतीय शास्त्रीय संगीत के परंपरा ऊहां सुरच्छित हाथ मं हवय. पाकिस्तान के क्वेटा मं कतको कलाकार हवंय जऊन मन वीणा अऊ संतूर जइसने बाजा बनाथें, जऊन ला खास करके बाम्हनवादी शास्त्रीय संगीत मं बजाय जाथे. भारत मं कानपूर, अजमेर अऊ मिराज मं मुसलमान कारीगर मन येला बनाथें.
हमर देश मं कोनहा मं परे अऊ दलित समाज मन मूल रूप ले चमड़ा के साज अऊ कतको तार वाले बाजा ला बनाइन. ये संगीत अऊ कला के बाम्हनवादी परंपरा के ओकर सांस्कृतिक रद्दा रहिस. सांस्कृतिक जीवन ऊपर शासन करे सेती बाम्हन मन शास्त्रीय संगीत अऊ नृत्य के सहारा लीन.
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एकतारी के संग कडुबाई के गीत सुग्घर लगथे. ये बाजा ह ओकर गाये मं सफई अऊ गहिर भाव ला आगू मं लाथे.
विलास घोगरे, प्रह्लाद शिंदे, विष्णु शिंदे अऊ कडुबाई खरात जइसने अम्बेडकरी शाहीर मन ह 'आवव, ये कहिनी ला सुनव’ ला अपन एकतारी मं अम्बेडकरी गीत गावत घर-घर जाके सड़क मं घूमे हवंय. सरी दुनिया मं घुमंतू लोगन मन के साज, एकतारी हमेशा सहारा रहे हवय.
जइसने एकतारी ह अछूत मन के संगीत दुनिया के अभिन्न हिस्सा रहे हवय, वइसने ये ह वो मन के अध्यात्मिक विकास के घलो महत्तम जरिया आय. जइसने-जइसने विज्ञान के विकास होईस अऊ नवा बाजा मन आइन, लोकपरंपरा अऊ बाजा मं ला बदल दे गीस – जइसने के एकतारी. कडुबाई अपन हाथ मं एकतारी धरे गवेइय्या आखिरी कलाकार हो सकथे. हालेच मं एकतारी ला छोड़ के अम्बेडकरी गवेइय्या मन मं बाम्हनवादी अऊ आधुनिक संगीत के चलन बढ़े हवय.
अम्बेडकर ऊपर नव गीत मन ला मराठी के लोकप्रिय धुन मं बनाय जावत हवय, जइसे ‘वात मांझी बघतोय रिक्शावाला ’ (‘रिक्सावाला मोला अगोरत हवय’). अइसने नई ये, के आधुनिक संगीत धन बाजा ला नई बऊरे चाही, फेर काय तोर अंदाज ह बाजा साज ले मेल खाथे? का येकर ले सही संदेस जावत हवय? का वो ह लोगन मन तक जावत हवय. काय जऊन ला गाये जावत हवय ओकर मतलब ला लोगन मन समझत हवंय? ये असल सवाल आय. समाज मं आधुनिक साजा-बाजा बनाय जाथे, अऊ ये ला हमर संगीत ला आगू बढ़ाय मं करे जाय ला चाही. फेर अंबेडकरी गीत मन ला फ़िल्मी धुन मं बनाय जावत हवय. वो ह भारी ऊंच, शोरगुल वाले अऊ कनफोड़ू होथें. वो ह गुरतुर नई रहे गे हवय. गीत मन मं अम्बेडकर के कऊनो गहिर दर्शन नई ये, येकर छोड़ पसंद करे अऊ पहिचाने जाय के बात घलो हवय. बिन समझ के बनाय अऊ दर्शन के समझ लोगन मन ला सिरिफ नचा देथे. वो ह लंबा बखत तक ले नई टिकय, लोगन मन के तीर नई पहुंचे सके अऊ लोगन मन के सुरता मं बन के नई रहय.
कडुबाई के अवाज मं हजारों बछर के गुलामी के खिलाफ अवाज आय. वो ह लोक गायिका आंय जऊन ह भारी गरीबी अऊ बिपत्ति ले बहिर निकरे हवंय. ओकर गीत हमन ला जात अऊ धरम, छुआछुत अऊ गुलामी के अतियाचार ला अऊ बेदर्दी के गम कराथे. अपन एकतारी मं, वो अपन परिवार अऊ समाज के धनी विरासत ला आगू बढ़ाथे. ओकर एकतारी गाना हमर दिल ला छू जाथे.
मह्या भिमाने माय सोन्याने भरली ओटी
किंवा
माझ्या भीमाच्या नावाचं
कुंकू लावील रमाने
अशी मधुर, मंजुळ वाणी
माझ्या रमाईची कहाणी
मोर भीम ह मोर जिनगी ला सोन ले
भर दीस
धन
मोर भीम के नांव मं
राम ह सिंदूर लगाइस
अतक गुरतुर अऊ सुरीला अवाज
ये मोर रमाई के कहिनी आय.
ये गीत के जरिया ले आम जनता अम्बेडकर के दर्शन ला असानी ले समझ सकथे. ये ह अम्बेडकर के आभार जताथे. जिनगी के रोज के जूझे अऊ तकलीफ, गहिर आध्यात्मिकता... जिनगी के भीतरी ले समझ ला घलो बताथे. कुछुच लोगन मन हवंय जेन मन अपन अवाज ले बेवस्था के खिलाफ लड़े हवंय. एक कोती वो मन समाजिक बेवस्था के विरोध करथें, त दूसर कोती ओकर अवाज अऊ बाजा ले हमर इतिहास के सुरता ला जिंयावत चलत रहिथें. कडुबाई वो मन ले एक आंय.
ये कहिनी मुंदल मं मराठी मं लिखे गे रहिस
ये मल्टीमीडिया कहिनी 'इंफ्लुएंशियल शाहिर, नैरेटिव्स फ्रॉम मराठवाड़ा' नांव के संग्रह के हिस्सा आय, जेन ह इंडिया फाउंडेशन फॉर द आर्ट्स डहर ले ओकर अभिलेखागार अऊ संग्रहालय कार्यक्रम के तहत पीपुल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया के सहयोग ले लागू परियोजना आय. ये ह गोएथे इंस्टीट्यूट/मैक्समूलर भवन, नई दिल्ली के आंशिक सहयोग ले पूरा हो सकिस.
अनुवाद: निर्मल कुमार साहू