“मोजर सूख रहल बा.”
मार्च के गरम दुपहरिया बा. पोमुला बीमवरम गांव में मरुदुपुडी नागराजू आपन तीन एकड़ के आम (मंगिफेरा इंडिका) के बगइचा के मुआयना कर रहल बाड़ें.
आंध्र प्रदेश के अनकापल्ली जिला में उनकर आंख के सामने बड़हन बंगनापल्ली, रसदार चेरुकु रसालू, जादे कर के कच्चे खाइल जाए वाला तोतापुरी आउर नामी पंडुरी मामिडी नियर स्थानीय किसिम के 150 गो गाछ इहंवा से उहंवा पसरल बा.
बगइचा आम के भुअर-पियर मोजर से ढका गइल बा. देखे में त खूब नीमन लागत बा. बाकिर 62 बरिस के ई किसान एकरा देख के खुस नइखन- उनकर कहनाम बा कि एह बेरा आम के गाछ में मोजर देर से आइल. नागराजू कहले, “संक्रांति (जनवरी के बीच में होखे वाला त्योहार) ले मोजर फूला जाए के चाहत रहे, लेकिन ना फुलाइल. फरवरी आइल ह, तब ई फुलाए के सुरु भइल.”
मार्च ले गाछ में टिकोला (नींबू जेतना बड़ आम) आ जाए के चाहत रहे. “फूल ना फुलाई, त एको आम ना आई. आउर एह बरि फेरु से कमाई ना होई.”
नागराजू के चिंता समझल जा सकत बा. एगो दिहाड़ी मजूर खातिर उनकर आम के बगइचा, बहुत मुस्किल से सच भइल एगो सपना बा. मडिगा समुदाय (जेकरा आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जाति के रूप में देखल जाला) से आवे वाला नागराजू के ई जमीन कोई 25 बरिस पहिले राज्य सरकार से मिलल रहे. सरकार ओरी से आंध्र प्रदेश भूमि सुधार (कृषि जोत पर सीलिंग) अधिनियम, 1973 के तहत भूमिहीन वर्ग के लोग के बीच जमीन के पुनर्वितरण खातिर ई कदम उठावल गइल रहे.
जून में आम के मौसम खत्म भइला पर ऊ लगे के गांव में ऊंख के खेत में दिहाड़ी करे लउट जाएलें. काम मिलला पर उनकरा रोज के 350 रुपइया के कमाई होखेला. ऊ मनरेगा में तालाब गहिर करे, खाद तइयार करे के काम आउर दोसरा तरह के मजूरी भी करेंले. ई सभ से उनकरा साल में एह तरह के 70-75 दिन के काम मिल जाला. अइसन काम खातिर उनका 230 आउर 250 रुपइया के दिहाड़ी मिलेला.
नागराजू के जब पहिल बेर जमीन के मलिकई मिलल त ऊ एकरा पर हरदी के खेती कइलें. बाकिर करीब पांच बरिस से ऊ जादे मुनाफा के उम्मीद में आम के खेती करत बाड़ें. जोरदार फसल के ऊ नीमन दिन इयाद करत कहलें, “हम जब (20 बरिस पहिले) सुरु कइनीं, त एगो एगो गाछ से 50 से 70 किलो आम निकलत रहे.” फेरु कहे लगलें, “हमरा आम बहुते नीमन लागेला, खास करके तोतापुरी.”
आंध्र प्रदेश देस के दोसर सबसे बड़ आम उगावे वाला प्रदेश बा. राज्य के बागवानी विभाग के हिसाब से, इहंवा के लगभग 3.78 हेक्टेयर के इलाका में फल उगावल जाला. आउर 2020-21 के बीच एक साल में फल 49.26 लाख मीट्रिक टन भइल रहे.
पोमुला बीमवरम गांव, कृष्णा आउर गोदावरी नदी के बीच के कृषि पट्टी में पड़ेला. दुनो नदी इहंवा से थोरिके दूर पर बंगाल के खाड़ी में गिरेला. खेती के सभे काम खातिर सामान्य मौसम आउर तापमान अच्छा होखेला. आम के मोजर के अक्टूबर-नवंबर के ठंडा आउर नमी के जरूरत पड़ेला. फल दिसंबर-जनवरी के बीच लागे लागेला.
बाकिर, “अक्टूबर आउर नवंबर के बीच पछिला पांच बरिस में बेमौसम बरसात बढ़ गइल बा,” बेंगलुरु के डॉ.एम.शंकरन बतावत बाड़ें. उहां के भारतीय बागवनी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर) के प्रमुख बानी.
आम के खेती करे वाला बतावत बाड़ें कि ऊ बेमौसम गरमी में मोजर के मुरझात देखले बाड़ें. एहि से एह साल आम बहुते कम आइल. ऊ बतइलें, “कबो-कबो, त एगो गाछ से एक बक्सा (120-150)आम भी ना निकले.”
खाद, कीटनाशक आउर मजदूरी के खरचा निकाले खातिर नागराजू के पछिला कुछ बरिस से नियम से हर साल एक लाख रुपइया के करजा उठावे के पड़त बा. ई पइसा ऊ एगो प्राइवेट साहूकार से 32 प्रतिशत के सलाना ब्याज पर लेवले. उनकर सलाना कमाई 70,000 से 80,000 होई. एह में से कुछ पइसा जून में साहूकार के देवे के पड़ जाला. उनकरा डर बा आम कम होखे से, जल्दिए ई सभ बंद करे के पड़ी. बाकिर अबहियो ऊ हड़बड़ी में आम के खेती छोड़े के तइयार नइखन.
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उनकर पड़ोसी कांटमरेड्डी श्रीराममूर्ति आपन हाथ में एगो हल्का पियर फूल धइले बाड़ें. ओकरा ऊ बीच बीच में हिला देवलें. सूखला के चलते ई फूल तुरंते झड़ जाला.
उहे गांव में उनकर 1.5 एकड़ के बगइचा में बंगनापल्ले, चेरुकु रसालू आउर सुवर्णरेखा जइसन किसिम किसिम के आम के 75 गो गाछ बा. उहो नागराजू के बात से राजी बाड़ें कि मोजर कम आवे लागल बा. तुरुपु कापू समुदाय (आंध्र प्रदेस के अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में पहिचानल जाए वाला) आवे वाला किसान कहले, “अइसन जादे करके अक्टूबर आ नवंबर के बीच लगातार बेमौसम बरसात के कारण होखेला. पछिला पांच बरिस में अइसन जादे होखे लागल बा.” ऊ हर बरिस जुलाई से सितंबर के बीच आपन एगो कुटुंब के खेत में काम करेलन. इहंवा काम करके उनका महीना के 10,000 मिल जाएला.
एह बरिस मार्च, 2023 में श्रीराममूर्ति के गाछ में जे मोजर आउर टिकोला लागल रहे, ऊ आंधी-तूफान में झड़ गइल. श्रीराममूर्ति बतइलें कि बरखा संगे जे तेज हवा आवेला ओकरा में बहुते फल गाछ से गिर जाला. ऊ कहलें, “आम खातिर गरमी के बरखा नीमन बा. बाकिर एह बरिस त हद से जादे बरखा हो गइल.”
बागवानी के जानकार शंकरन के कहनाम बा कि आम खातिर 25-30 डिग्री के तापमान नीमन होखेला. ऊ कहले, “फरवरी 2023 में, दिन आउर रात के तापमान में बहुत अंतर देखल गइल. गाछ सभ एकरा सह ना पाइल.”
पछिला कुछ बरिस में आम के खेती खातिर स्थिति आदर्श ना रह गइल बा. श्रीराममूर्ति के साल 2014 में लेहल गइल आपन फैसला पर अफसोस होखे लागल बा. एकरा खातिर ऊ ओह साल अनकापल्ली शहर लगे आपन 0.9 एकड़ जमीनल बेचले आउर एकरा से मिले वाला छव लाख रुपइया एह खेती में लगा देलें. एकरा से ऊ पोमुला बीमवरम में आम के एगो बगइचा खरीदले रहस.
ओह घरिया के आपन फैसला के बारे में ऊ बतइलें, “सभे के आम भावेला, एकर मांग भी बहुत बा. हमरा लागल कि आम के खेती कइला से पइसा जादे कमा सकेनी.”
अइसे त, तब से, उनकर कहनाम बा कि उनकरा कवनो फायदा ना भइल. श्रीराममूर्ति कहले, “साल 2014 से 2022 के बीच के एह आठ बरिस में आम के खेती से हमरा कुल छव लाख से जादे कमाई ना भइल होई.” उनकरा आम के खेती खातिर आपन जमीन बेचे के बहुते अफसोस बा. ऊ कहतारे, “जे जमीन हम बेचनी ओकर दाम आज बहुते बढ़ गइल बा. हमरा आम के खेती शायद ना करे के चाहत रहे.”
ई खाली मौसम के ही बात नइखे. आम के गाछ सागु नीरू (सिंचाई) पर भी निर्भर करेला. नागराजू आउर श्रीराममूर्ति के खेत में अबले बोरवेल नइखे. साल 2018 में श्रीराममूर्ति बोरवेल लगावे खातिर 2.5 लाख रुपइया खरचा कइलें बाकिर एक बूंद पानी ना मिलल. दुनो लोग के बगइचा, जे बुचियाहपेटा मंडल में पड़ेला, ऊ पोमुला बीमवरम गांव में बा. इहंवा सरकारी तौर पर खाली 35 ठो बोरवेल आउर 30 ठो ईनार (कुंआ) बा.
श्रीराममूर्ति के कहनाम बा जदि गाछ के लगातार पानी मिले त मोजर सूखे आउर झड़े के दिक्कत ठीक हो सकेला. ऊ हर हफ्ता पानी के दू गो टंकी खरीदेलें. एकरा में उनकरा महीना के 10,000 रुपइया खरचा हो जाला. श्रीराममूर्ति कहले, “एगो गाछ में रोज एक लीटर पानी चाहीं. बाकिर हम हफ्ता में बस दू बेर पानी पटाइले. हम एतने कर सकिले.”
आपन आम के गाछ में पानी पटावे (सिंचाई) खातिर, नागराजू आठ-आठ हजार में हफ्ता में पानी के दू गो टंकी खरीदेलें.
वल्लीविरेड्डी राजू नवंबर से आपन गाछ में हफ्ता में एक बेर पानी देवे के सुरु कर देवेलें. फरवरी तक आवत-आवत हफ्ता में दू बेर पानी देवेलें. गांव में दोसरा के मुकाबले आम के खेती करे वाला 45 बरिस के नयका किसान 2021 में खेती सुरु कइलें. ऊ आपन 0.7 एकड़ के खेत में आम के गाछ लगइलें. दू बरिस बाद गाछ बस राजू से तनिके ऊंच उगल बा. ऊ कहलें, “आम के छोट गाछ के जादे देखभाल चाहीं. इनकरा दू लीटर पानी के रोज जरूरत पड़ेला, खास करके गरमी में.”
उनकरो खेत में बोरवेल नइखे लागल. एहि से राजू के गाछ खातिर पानी के इंतजाम में करीब 20,000 रुपइया लाग जाला. ऊ टंकी से पानी लाके खेत पर रखेले. उनकरा हिसाब से ऊ हर गाछ में रोज पानी ना पटा सकस. “जदि रोज पानी पटायम, त हम बिका जाएम.”
उनकरा उम्मीद बा कि तीन बरिस पहिले लगावल गइल पइसा से उनकरा फायदा होई. ऊ कहलें, “मालूम बा कि जादे मुनाफा ना होई, बाकिर जादे नुकसान होखे के भी डर नइखे.”
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पछिला महीना, (अप्रिल 2023) नागराजू के कइसहूं 3,500 किलो आम, मतलब मोटा-मोटी आम के 130-140 बक्सा हो गइल रहे. विशाखापत्तनम के ब्यापारी 15 रुपइए किलो के दाम लगवलन: पहिल खेप से उनका 52,500 रुपइया हो गइल.
ऊ बतइलें, “बीस बरिस पहिले भी, जब हम खेती सुरुए कइले रहीं, भाव 15 रुपइया किलो रहे.” “विशाखापत्तनम के मधुरवाड़ा रयथु बाजार मेंअबही एक किलो बंगनापल्ले आम के भाव 60 रु किलो चल रहल बा. पूरा गरमी भाव 50-100 रुपइया के बीच चलत रहेला,” बाजार के एस्टेट ऑफिसर, पी जगदेश्वर राव कहले.
श्रीराममूर्ति के एह बरिस के पहिल खेप में 1,400 किलो आम भइल. ओह में से दू-तीन किलो आम ऊ आपन बेटी खातिर बचा लेलें. बाकी के आम ऊ विशाखापत्तनम के ब्यापारी के मोटा-मोटी 11 रुपइए किलो में बेच देले. ऊ खुद आम काहे ना बेचेलें, एकरा बारे में ऊ कहले, “सबसे लगे वाला हाट 40 किमी दूर बा.”
पोमुला बीमवरम के आम किसान लोग जून में होखे वाला दूसर खेप के इंतजारी में बा. एकरा बाद पता चली कि एह बरिस ओह लोग के केतना आमदनी भइल. बाकिर नागराजू हारल देखाई देत बाड़ें. ऊ कहत बाड़ें, “कवनो फायदा ना भइल, खाली घाटा मिलल.”
मोजर से लदल आम के गाछ ओरी पलटलें आउर कहलें, “अबले तक गाछ में आम एतना लमहर (हथेली देखावत) हो जाए के चाहत रहे.” ई आम उनकर मनपसंद आम- पांडुरी मामिडी- बा. खूब हरियर आउर गोल गोल.
ऊ दू-चार गो आम गाछ से तुड़ के कहत बाड़ें, “दोसर कवनो आम में रउआ एतना स्वाद ना मिली जेतना एह में बा. हरियर रहलो पर ई मीठ लागेला; इहे एकर खासियत बा.”
एह कहानी के रंग दे अनुदान मिलल बा.
अनुवाद: स्वर्ण कांता