तेज-गर्मी-में-भी-अगर-मैं-पानी-पी-लूं-तो-अपराध-का-बोध-होता-है

Latur, Maharashtra

Oct 17, 2017

‘तेज गर्मी में भी, अगर मैं पानी पी लूं तो अपराध का बोध होता है...’

लातूर की बस्ती काशीराम सोमला की शालूबाई चह्वाण, प्रतिदिन आठ घंटे अपने परिवार के लिए पानी भरने में लगाती हैं; कुछ लोग इससे भी कम समय लगाते हैं लेकिन उन्हें औरंगाबाद की बियर फैक्ट्रियों की तुलना में तीन गुना अधिक मूल्य पर पानी मिलता है। और अधिकतर मामलों में, महिलाएं तथा लड़कियां ही अपने स्वास्थ्य की भारी कीमत चुकाते हुए इस कड़ी मेहनत वाले काम को करती हैं

Translator

Qamar Siddique

Want to republish this article? Please write to zahra@ruralindiaonline.org with a cc to namita@ruralindiaonline.org

Author

Parth M.N.

पार्थ एम एन, साल 2017 के पारी फ़ेलो हैं और एक स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर विविध न्यूज़ वेबसाइटों के लिए रिपोर्टिंग करते हैं. उन्हें क्रिकेट खेलना और घूमना पसंद है.

Translator

Qamar Siddique

क़मर सिद्दीक़ी, पीपुल्स आर्काइव ऑफ़ रुरल इंडिया के ट्रांसलेशन्स एडिटर, उर्दू, हैं। वह दिल्ली स्थित एक पत्रकार हैं।