କପଡ଼ାର‌ ‌ଗଣ୍ଠିଲିଗୁଡ଼ିକ‌ ‌ସମିତାଙ୍କ‌ ‌ଚଲ୍‌ରୁ‌ ‌ନିକଟସ୍ଥ‌ ‌ଆପାର୍ଟମେଣ୍ଟକୁ‌ ‌ଆଉ‌ ‌ଯିବା‌ ‌ଆସିବା‌ ‌କରୁ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌।‌ ‌ଦୁଇମାସ‌ ‌ପୂର୍ବ‌ ‌ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ,‌ ‌ପ୍ରତିଦିନ‌ ‌ସକାଳେ,‌ ‌ସେ‌ ‌ବଡ଼ା‌ ‌ସହରର‌ ‌ଅଶୋକଭାନ୍‌ ‌କମ୍ପ୍ଲେକ୍ସରେ‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌ପରିବାରଗୁଡ଼ିକଠାରୁ‌ ‌ବିଭିନ୍ନ‌ ‌ପ୍ରକାରର‌ ‌ବସ୍ତ୍ର‌ ‌ସଂଗ୍ରହ‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌ହାତରେ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମୁଣ୍ଡରେ‌ ‌ଗଣ୍ଠିଲିଗୁଡ଼ିକ‌ ‌ଧରି‌ ‌ସେ‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌କିଲୋମିଟର‌ ‌ଚାଲି‌ ‌ଚାଲି‌ ‌ସେହି‌ ‌ସହରର‌ ‌ଭାନୁଶାଲି‌ ‌ଚଲ୍‌ରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଘରକୁ‌ ‌ଫେରୁଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ସେଠାରେ‌ ‌ସେ‌ ‌ଲୁଗାକୁ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରି‌ ‌ସୁନ୍ଦର‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌ଭାଙ୍ଗି‌ ‌ସେହି‌ ‌ସନ୍ଧ୍ୟାରେ‌ ‌ପରିବାରଗୁଡ଼ିକୁ‌ ‌ଫେରାଇ‌ ‌ଦେଉଥିଲେ‌ ‌‌।

‘‘ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌ହେବା‌ ‌ପରଠାରୁ,‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ପ୍ରାୟତଃ‌ ‌ଅର୍ଡର‌ ‌ପାଇବା‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌କରି‌ ‌ଦେଇଛି’’‌ ‌ବୋଲି‌ ‌୩୨‌ ‌ବର୍ଷୀୟ‌ ‌ସମିତା‌ ‌ମୋରେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ହେବାକୁ‌ ‌ଥିବା‌ ‌କପଡ଼ାକୁ‌ ‌ସୂଚୀତ‌ ‌କରି‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌‌ମାର୍ଚ୍ଚ‌ ‌୨୪‌ ‌ବର୍ଷୀୟରେ‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ଘୋଷଣା‌ ‌ହେବା‌ ‌ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ‌ ‌ଦିନକୁ‌ ‌ଅତି‌ ‌କମ୍‌ରେ‌ ‌ଚାରିଟି‌ ‌‘ଅର୍ଡର’‌ ‌ଠାରୁ‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌କରି‌ ‌ସମିତା‌ ‌ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ସପ୍ତାହରେ‌ ‌କେବଳ‌ ‌ଗୋଟିଏ‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ଦୁଇଟି‌ ‌ପାଇବାକୁ‌ ‌ସମର୍ଥ‌ ‌ହେଉଛନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌ଦୈନିକ‌ ‌ଟ.‌ ‌୧୫୦-୨୦୦‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌ଏପ୍ରିଲ୍‌ରେ‌ ‌ସପ୍ତାହକୁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୧୦୦କୁ‌ ‌ଖସି‌ ‌ଆସିଛି‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌ପ୍ରତ୍ୟେକ‌ ‌ସାର୍ଟ‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ଟ୍ରାଉଜରକୁ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୫‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଶାଢ଼ି‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୩୦‌ ‌ନିଅନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌ପଚାରନ୍ତି,‌ ‌‘‘ମୁଁ‌ ‌ମାତ୍ର‌ ‌ଏତିକି‌ ‌ଟଙ୍କାରେ‌ ‌କେମିତି‌ ‌ବଞ୍ଚି‌ ‌ପାରିବି?‌ ‌”‌

ସମିତାଙ୍କ‌ ‌ସ୍ୱାମୀ‌ ‌ସନ୍ତୋଷ,‌ ‌୪୮,‌ ‌ଅଟୋରିକ୍ସା‌ ‌ଡ୍ରାଇଭର‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରୁଥିଲେ,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌୨୦୦୫‌ ‌ରେ‌ ‌ସେ‌ ‌ବଡ଼ା‌ ‌ନିକଟରେ‌ ‌ଯାତ୍ରା‌ ‌କରୁଥିବା‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌ଯେତେବେଳେ‌ ‌କେହି‌ ‌ଜଣେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଟେମ୍ପୋ‌ ‌ଉପରକୁ‌ ‌ଟେକା‌ ‌ପକାଇଲେ‌ ‌ସେ‌ ‌ଗୋଟିଏ‌ ‌ଆଖିର‌ ‌ଦୃଷ୍ଟି‌ ‌ଶକ୍ତି‌ ‌ହରାଇଲେ‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌"ମୁଁ‌ ‌ମୋ‌ ‌ପତ୍ନୀଙ୍କୁ‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବାରେ‌ ‌ସାହାଯ୍ୟ‌ ‌କରେ‌ ‌କାରଣ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌କୌଣସି‌ ‌କାମ‌ ‌କରିପାରିବି‌ ‌ନାହିଁ।"‌ ‌"ପ୍ରତିଦିନ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଚାରି‌ ‌ଘଣ୍ଟା‌ ‌ଠିଆ‌ ‌ହେବାରୁ‌ ‌ମୋର‌ ‌ଗୋଡ଼ରେ‌ ‌ଯନ୍ତଣା‌ ‌ହେଉଛି‌ ‌‌।‌”‌

ସନ୍ତୋଷ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସମିତା‌ ‌୧୫‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ଧରି‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରୁଛନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌ସମିତା‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ତାଙ୍କ‌ ‌ଦୁର୍ଘଟଣା‌ ‌ପରେ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଖାଇବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌ପୁଅଙ୍କୁ‌ ‌ସ୍କୁଲ‌ ‌ପଠାଇବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଅର୍ଥ‌ ‌ଦରକାର‌ ‌ଥିଲା,‌ ‌ତେଣୁ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଏହି‌ ‌କାମ‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌କଲି।‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ଆମ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ବାସ୍ତବରେ‌ ‌ଖରାପ‌ ‌ହୋଇଛି‌ ‌।’’‌ ‌ପରିବାରଟି‌ ‌ଗତ‌ ‌କିଛି‌ ‌ସପ୍ତାହ‌ ‌ମଧ୍ୟରେ‌ ‌ନିଜର‌ ‌ସାମାନ୍ୟ‌ ‌ସଞ୍ଚୟ‌ ‌ବ୍ୟବହାର‌ ‌କରିଦେଇଛନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ତେଜରାତି‌ ‌କିଣିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମାସିକ‌ ‌ପ୍ରାୟ‌ ‌ଟ.‌ ‌୯୦୦ର‌ ‌ବିଦ୍ୟୁତ୍‌‌ ‌ବିଲ୍‌‌ ‌ଦେବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ସମ୍ପର୍କୀୟମାନଙ୍କ‌ ‌ଟ.‌ ‌୪,୦୦୦‌ ‌ଉଧାର‌ ‌ଆଣିଛନ୍ତି‌ ‌।‌

Santosh and Samita More have been ironing clothes for 15 years; they have used up their modest savings in the lockdown weeks and borrowed from relatives
PHOTO • Shraddha Agarwal
Santosh and Samita More have been ironing clothes for 15 years; they have used up their modest savings in the lockdown weeks and borrowed from relatives
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ସନ୍ତୋଷ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସମିତା‌ ‌୧୫‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ଧରି‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରୁଛନ୍ତି‌ ‌:‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ସପ୍ତାହଗୁଡ଼ିକରେ‌ ‌ନିଜର‌ ‌ସାମାନ୍ୟ‌ ‌ସଞ୍ଚୟ‌ ‌ଖର୍ଚ୍ଚ‌ ‌କରି‌ ‌ଦେଇଛନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସମ୍ପର୍କୀୟମାନଙ୍କ‌ ‌ଠାରୁ‌ ‌ଧାର‌ ‌ଆଣିଛନ୍ତି‌ ‌

ମହାରାଷ୍ଟ୍ରର‌ ‌ପାଲଘର‌ ‌ଜିଲ୍ଲାର‌ ‌ବଡ଼ା‌ ‌ସହରରେ‌ ‌ସମିତା‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌ଗଳିରେ‌ ‌୪୫‌ ‌ବର୍ଷୀୟ‌ ‌ଅନୀତା‌ ‌ରାଉତ‌ ‌ବାସ‌ ‌କରନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌ସେ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରି‌ ‌ଜୀବିକା‌ ‌ନିର୍ବାହ‌ ‌କରନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି‌ ‌“ଯେତେବେଳେ‌ ‌ଛଅ‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ପୂର୍ବେ‌ ‌ମୋର‌ ‌ସ୍ୱାମୀଙ୍କର‌ ‌ଦେହାନ୍ତ‌ ‌ହୋଇଥିଲା‌ ‌ସେତେବେଳେ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌କୌଣସି‌ ‌ମତେ‌ ‌ଚଳେଇ‌ ‌ନେଇଥିଲି‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌ଆମର‌ ‌ବ୍ୟବସାୟ‌ ‌ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଛି‌ ‌ବୋଲି‌ ‌।‌ ‌ଅନୀତାଙ୍କ‌ ‌ସ୍ୱାମୀ‌ ‌ଅଶୋକଙ୍କୁ‌ ‌୪୦‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ହୋଇଥିଲା‌ ‌ବେଳେ‌ ‌ସେ‌ ‌ପକ୍ଷାଘାତ‌ ‌ହେବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ପରେ‌ ‌ମୃତ୍ୟୁବରଣ‌ ‌କରିଥିଲେ‌ ‌‌।‌

ସେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌୧୮‌ ‌ବର୍ଷର‌ ‌ପୁଅ‌ ‌ଭୂଷଣଙ୍କ‌ ‌ସହ‌ ‌ରୁହନ୍ତି,‌ ‌ଯିଏକି‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବାରେ‌ ‌ସାହାଯ୍ୟ‌ ‌କରନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌ଅନୀତା‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ମୋ‌ ‌ସ୍ୱାମୀ,‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପିତା‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଜେଜେବାପା‌ ‌ସମସ୍ତେ‌ ‌ଏହି‌ ‌କାମ‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌।‌’’‌ ‌ସେ‌ ‌ଓବିସି‌ ‌ସମ୍ପ୍ରଦାୟର‌ ‌ଧୋବି‌ ‌ନାମରେ‌ ‌ତାଲିକାଭୁକ୍ତ‌ ‌ପାରିତ୍‌‌ ‌ଜାତିର‌ ‌‌।‌ ‌‌(ଏଠାରେ‌ ‌ଉଲ୍ଲେଖ‌ ‌କରାଯାଇଥିବା‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ପରିବାରମାନେ‌ ‌ମରାଠା‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ଓବିସି‌ ‌ସମ୍ପ୍ରଦାୟର‌ ‌ଅଟନ୍ତି।)‌ ‌ବଡ଼ାର‌ ‌ଏକ‌ ‌ଜୁନିୟର‌ ‌କଲେଜରେ‌ ‌ଦ୍ୱାଦଶ‌ ‌ଶ୍ରେଣୀରେ‌ ‌ପଢ଼ୁଥିବା‌ ‌ଭୂଷଣ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ଦିନକୁ‌ ‌୫-୬‌ ‌ଘଣ୍ଟା‌ ‌ଠିଆ‌ ‌ହୋଇ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଗୋଡ‌ ‌ଫୁଲିଯାଏ‌ ‌‌।‌ ‌‌ତେଣୁ‌ ‌ତା’‌ ‌ପରେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଦାୟିତ୍ୱ‌ ‌ଗ୍ରହଣ‌ ‌କରେ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସହରରେ‌ ‌ଅର୍ଡର‌ ‌ଗୁଡ଼ିକ‌ ‌ପହଞ୍ଚାଏ’’‌‌ ‌।‌

ଅନୀତା‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ଏହି‌ ‌ମାସ‌ ‌ଗୁଡ଼ିକରେ‌ ‌[ଏପ୍ରିଲରୁ‌ ‌ଜୁନ୍]‌ ‌ବିବାହ‌ ‌ହୁଏ,‌ ‌ତେଣୁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଋତୁରେ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଶାଢ଼ି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଡ୍ରେସ‌ ‌[‌ସାଲୱାର‌ ‌କାମିଜ‌]‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ଅନେକ‌ ‌ଅର୍ଡର‌ ‌ପାଇଥାଉ‌ ‌‌।‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଭାଇରସ‌ ‌ଯୋଗୁଁ‌ ‌ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ସମସ୍ତ‌ ‌ବିବାହ‌ ‌ବାତିଲ‌ ‌କରାଯାଇଛି‌।‌’’‌ ‌ସେ‌ ‌ଖୋଲା‌ ‌ଡ୍ରେନ୍‌ ‌ସହ‌ ‌ସଂଲଗ୍ନ‌ ‌ଏକ‌ ‌ସଂକୀର୍ଣ୍ଣ‌ ‌ଗଳିରେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ବଖୁରିଆ‌ ‌ଘର‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ପ୍ରତି‌ ‌ମାସରେ‌ ‌ଟ.‌ ‌୧୫୦୦‌ ‌ଭଡ଼ା‌ ‌ଦେଉଛନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌"ଗତ‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ମୋ‌ ‌ଭଉଣୀଙ୍କ‌ ‌ଠାରୁ‌ ‌ଦୈନନ୍ଦିନ‌ ‌ଖର୍ଚ୍ଚ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌କିଛି‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ଋଣ‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ପଡ଼ିଥିଲା’’‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଛଅ‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ପୂର୍ବେ‌ ‌ଅଶୋକ‌ ‌ପାରାଲିସିସ୍‌ ‌ପରେ‌ ‌ହସ୍ପିଟାଲରେ‌ ‌ଭର୍ତ୍ତି‌ ‌ହେବା‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌ସେ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଭଉଣୀଙ୍କଠାରୁ‌ ‌ଋଣ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ନେଇଥିଲେ।‌ ‌ସେ‌ ‌ପଚାରନ୍ତି,‌ ‌‘‘ମୁଁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ମାସରେ‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ଫେରସ୍ତ‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ପ୍ରତିଶୃତି‌ ‌ଦେଇଥିଲି‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଆମର‌ ‌କୌଣସି‌ ‌ବ୍ୟବସାୟ‌ ‌ନାହିଁ‌।‌‌ ‌ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌କିପରି‌ ‌ପରିଶୋଧ‌ ‌କରିବି?‌ ‌”‌ ‌

ବଡ଼ାର‌ ‌ସେହି‌ ‌ଅଞ୍ଚଳରେ‌ ‌ରହୁଥିବା‌ ‌୪୭‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ବୟସ୍କ‌ ‌ଅନିଲ‌ ‌ଦୁର୍ଗୁଡେ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ଏପ୍ରିଲରୁ‌ ‌ଜୁନ୍‌ ‌ମଧ୍ୟରେ‌ ‌ଅତିରିକ୍ତ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କାମକୁ‌ ‌ଆଶା‌ ‌କରିଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଡାହାଣ‌ ‌ପାଦରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ଭେରିକୋଜ୍‌ ‌-‌ ‌ଦୁର୍ବଳ‌ ‌କିମ୍ବା‌ ‌ନଷ୍ଟ‌ ‌ହୋଇଯାଇଥିବା‌ ‌ଶିରା‌ ‌ପ୍ରାଚୀର‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଭଲଭ୍‌ ‌ଦ୍ୱାରା‌ ‌ସୃଷ୍ଟି‌ ‌ହୋଇଥିବା‌ ‌ଅବସ୍ଥା,‌ ‌ନିମନ୍ତେ‌ ‌ଅସ୍ତ୍ରୋପଚାର‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ଦରକାର‌ ‌‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ମୋର‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ହେଲା‌ ‌ଏହି‌ ‌ଅବସ୍ଥା‌ ‌ଅଛି‌ ‌‌।‌ ‌‌ବଡ଼ାଠାରୁ‌ ‌ପ୍ରାୟ‌ ‌୨୫‌ ‌କିଲୋମିଟର‌ ‌ଦୂରରେ‌ ‌ଥିବା‌ ‌ଏକ‌ ‌ଘରୋଇ‌ ‌ଡାକ୍ତରଖାନାରେ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଅପରେସନ୍‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌ଟ.‌ ‌୭୦,୦୦୦‌ ‌ଦରକାର‌ ‌।‌

ଗୋଡରେ‌ ‌ଲଗାତାର‌ ‌ଯନ୍ତ୍ରଣା‌ ‌ସହୁଥିବା‌ ‌ଅନିଲ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“କିନ୍ତୁ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌ ‌ଯୋଗୁଁ‌ ‌ମୋର‌ ‌ବ୍ୟବସାୟ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଛି।‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଦିନକୁ‌ ‌ଅତି‌ ‌କମରେ‌ ‌ଛଅ‌ ‌ଘଣ୍ଟା‌ ‌ଠିଆ‌ ‌ହେବାକୁ‌ ‌ପଡ଼େ‌ ‌‌।‌ ‌‌ମୋର‌ ‌ସାଇକେଲ୍‌‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌ତେଣୁ‌ ‌ମୋର‌ ‌ଗ୍ରାହକମାନେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କ‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ମୋ‌ ‌ଘରେ‌ ‌ଦେଇ‌ ‌ଦିଅନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ସେମାନଙ୍କୁ‌ ‌ଆସି‌ ‌ତାହା‌ ‌ନେଇ‌ ‌ଯିବାକୁ‌ ‌ସମୟ‌ ‌ଦେଇଥାଏ।‌ ‌”‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ପୂର୍ବରୁ‌ ‌ଅନିଲ‌ ‌ମାସକୁ‌ ‌ପ୍ରାୟ‌ ‌ଟ.‌ ‌୪,୦୦୦‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ସକ୍ଷମ‌ ‌ହେଉଥିଲେ।‌ ‌ଗତ‌ ‌ଦୁଇମାସ‌ ‌ହେବ‌ ‌ସେ‌ ‌ଟ.‌ ‌୧,୦୦୦‌ ‌-‌ ‌୧୫୦୦‌ ‌ମଧ୍ୟରେ‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରିଛନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ନିଜ‌ ‌ସଞ୍ଚୟରୁ‌ ‌ଖର୍ଚ୍ଚ‌ ‌କରୁଛନ୍ତି‌ ‌।‌

Left: Anita Raut, son Bhushan (centre) and nephew Gitesh: 'Our [ironing] business has shut down'. Right: Anil and Namrata Durgude: 'We are losing our daily income'
PHOTO • Shraddha Agarwal
Left: Anita Raut, son Bhushan (centre) and nephew Gitesh: 'Our [ironing] business has shut down'. Right: Anil and Namrata Durgude: 'We are losing our daily income'
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ବାମ:‌ ‌ଅନୀତା‌ ‌ରାଉତ,‌ ‌ପୁଅ‌ ‌ଭୂଷଣ‌ ‌(ମଝି)‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ପୁତୁରା‌ ‌ଗୀତେଶ:‌ ‌'ଆମର‌ ‌[ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବା]‌ ‌ବ୍ୟବସାୟ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଛି'‌।‌ ‌‌ଡାହାଣ:‌ ‌ଅନିଲ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ନମ୍ରତା‌ ‌ଦୁର୍ଗୁଡେ:‌ ‌'ଆମେ‌ ‌ଆମର‌ ‌ଦୈନନ୍ଦିନ‌ ‌ଆୟ‌ ‌ହରାଉଛୁ'‌ ‌

“ମୋ‌ ‌ପତ୍ନୀ‌ ‌ନମ୍ରତା‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀରୁ‌ ‌ଆସୁଥିବା‌ ‌ଉତ୍ତାପକୁ‌ ‌ସହି‌ ‌ପାରିବେ‌ ‌ନାହିଁ।‌ ‌ସେ‌ ‌ଘରର‌ ‌ସମସ୍ତ‌ ‌କାମ‌ ‌ବୁଝନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଆମର‌ ‌ଅର୍ଡରଗୁଡିକର‌ ‌ହିସାବ‌ ‌ରଖନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ଆମର‌ ‌ସନ୍ତାନ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ମୋର‌ ‌ଭାଇର‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌ପୁଅର‌ ‌ଯତ୍ନ‌ ‌ନେଉଛୁ‌ ‌‌।‌ ‌ମୋର‌ ‌ସାନଭାଇ‌ ‌କିଛି‌ ‌ବର୍ଷ‌ ‌ପୂର୍ବରୁ‌ ‌ଏକ‌ ‌ଦୁର୍ଘଟଣାରେ‌ ‌ପ୍ରାଣ‌ ‌ହରାଇଥିଲେ,”‌ ‌ବୋଲି‌ ‌ଅନିଲ‌ ‌କହିଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌‌ଏହି‌ ‌ପିଲାମାନଙ୍କର‌ ‌ମାଆ‌ ‌ଟେଲର୍‌ ‌ଭାବେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରନ୍ତି,‌ ‌ଯାହାଙ୍କର‌ ‌ମାସିକ‌ ‌ଟ.‌ ‌୫୦୦୦୦‌ ‌ଆୟ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ଦ୍ୱାରା‌ ‌ଅଧିକ‌ ‌କ୍ଷତିଗ୍ରସ୍ତ‌ ‌ହୋଇଛି‌ ‌‌।‌ ‌ଅନିଲ‌ ‌ଆହୁରି‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌କହିଛନ୍ତି‌ ‌ଯେ,‌ ‌‘‘ଏହି‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ପଛର‌ ‌କାରଣଗୁଡିକ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ‌ ‌ରୂପେ‌ ‌ବୁଝିପାରୁ‌ ‌ନାହୁଁ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଏହା‌ ‌କେବେ‌ ‌ସ୍ୱାଭାବିକ‌ ‌ଅବସ୍ଥାକୁ‌ ‌ଫେରିବ‌ ‌ତାହା‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଜାଣି‌ ‌ନାହୁଁ।‌ ‌ଆମେ‌ ‌କେବଳ‌ ‌ଜାଣିଛୁ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଆମର‌ ‌ଦୈନନ୍ଦିନ‌ ‌ଆୟ‌ ‌ହରାଉଛୁ‌ ‌।’’‌

ଏହି‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ସୁନୀଲ‌ ‌ପାଟିଲଙ୍କ‌ ‌ଆୟକୁ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ପ୍ରଭାବିତ‌ ‌କରିଛି‌ ‌-‌ ‌ମାର୍ଚ୍ଚ‌ ‌୨୫‌ ‌ପୂର୍ବରୁ‌ ‌ସେ‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀରୁ‌ ‌ଦିନକୁ‌ ‌ପ୍ରାୟ‌ ‌ଟ.‌ ‌୨୦୦‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଏକ‌ ‌ଛୋଟ‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌ଚଳାଇ‌ ‌ଟ.‌ ‌୬୫୦‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରୁଥିଲେ‌ ‌।‌ ‌ତାଙ୍କର‌ ‌'ମହାଲକ୍ଷ୍ମୀ‌ ‌ତେଜରାତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଜେନେରାଲ୍‌‌ ‌ଷ୍ଟୋର୍'‌ ‌ଡାଲି,‌ ‌ଚାଉଳ,‌ ‌ତେଲ,‌ ‌ବିସ୍କୁଟ,‌ ‌ସାବୁନ୍‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଅନ୍ୟାନ୍ୟ‌ ‌ଜିନିଷ‌ ‌ବିକ୍ରି‌ ‌କରେ‌ ‌‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ମୋର‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌ଦୈନିକ‌ ‌ଟ.‌ ‌୧୦୦‌ ‌–‌ ‌୨୦୦‌ ‌କୁ‌ ‌ହ୍ରାସ‌ ‌ପାଇଛି’’‌।‌

ଅକ୍ଟୋବର‌ ‌୨୦୧୯‌ ‌ରେ‌ ‌ସୁନୀଲ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପତ୍ନୀ‌ ‌ଅଞ୍ଜୁ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ତିନି‌ ‌ପିଲାଙ୍କ‌ ‌ସହ‌ ‌ବଡ଼ାକୁ‌ ‌ଯିବା‌ ‌ପୂର୍ବରୁ‌ ‌ଏକ‌ ‌ଗ୍ରୋସରୀ‌ ‌ଦୋକାନରେ‌ ‌ଦିନକୁ‌ ‌ଟ.୧୫୦ରେ‌ ‌ହେଲପର‌ ‌ଭାବରେ‌ ‌କାର୍ଯ୍ୟ‌ ‌କରୁଥିଲେ।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌"ମୋ‌ ‌ଭଉଣୀ‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ବଡ଼ାର‌ ‌ଏହି‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌ବିଷୟରେ‌ ‌କହିଥିଲେ,‌ ‌ତେଣୁ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ତାଙ୍କଠାରୁ‌ ‌୬‌ ‌ଲକ୍ଷ‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ଋଣ‌ ‌ନେଇ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଜେନେରାଲ୍‌‌ ‌ଷ୍ଟୋର୍‌‌ ‌କିଣିଥିଲି।’’‌ ‌ନିଜର‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌କିଣିବା‌ ‌ପରିବାର‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଏକ‌ ‌ବଡ଼‌ ‌ପଦକ୍ଷେପ‌ ‌ଥିଲା‌ ‌‌।‌ ‌

ସୁନୀଲ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବା‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌ବାହାରେ‌ ‌ଏକ‌ ‌ଟେବୁଲ୍‌ ‌ରଖିଛନ୍ତି‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌ ‌ପୂର୍ବରୁ‌ ‌ସାଧାରଣତଃ‌ ‌ଦିନକୁ‌ ‌୪-୫‌ ‌ଅର୍ଡର‌ ‌ପାଇଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌“ମୁଁ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌କରିବା‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌କଲି‌ ‌କାରଣ‌ ‌ଏହା‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ଏକ‌ ‌ସ୍ଥିର‌ ‌ଆୟ‌ ‌ଦେଲା;‌ ‌ଦୋକାନ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ସେଠାରେ‌ ‌ଅଛି,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ସେଥିରୁ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ବେଳେବେଳେ‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରୁ,‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ବେଳେବେଳେ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ପାଉନି‌।‌ ‌‌”‌

ସେମାନଙ୍କର‌ ‌୨୩‌ ‌ବର୍ଷର‌ ‌ଝିଅ‌ ‌ସୁଭିଧା‌ ‌ବଡ଼ା‌ ‌ସହରର‌ ‌ପିଲାମାନଙ୍କୁ‌ ‌ଟ୍ୟୁସନ‌ ‌କରି‌ ‌ଆଣୁଥିବା‌ ‌ରୋଜଗାର-ମାସକୁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୧୨୦୦‌ ‌-‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଛି,‌ ‌କ୍ଲାସଗୁଡିକ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଛି‌ ‌‌।‌ ‌ସୁନୀଲ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌"ଲକ୍‌ଡାଉନ୍‌ ‌ହେତୁ‌ ‌ଆମକୁ‌ ‌ଏପ୍ରିଲରେ‌ ‌ସୁଭିଧାର‌ ‌ନିର୍ବନ୍ଧକୁ‌ ‌ସ୍ଥଗିତ‌ ‌ରଖିବାକୁ‌ ‌ପଡିଲା।‌ ‌“ଯଦି‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ବିବାହ‌ ‌ଖର୍ଚ୍ଚ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୫୦,୦୦୦‌ ‌ନ‌ ‌ଦେବି‌ ‌ତେବେ‌ ‌ବରର‌ ‌ପିତା‌ ‌ସାଖରପୁଡା‌ ‌[ନିର୍ବନ୍ଧ]‌ ‌ବାତିଲ‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ଧମକ‌ ‌ଦେଇଛନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌‌କାରଣ‌ ‌ସେ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଲକଡାଉନ୍‌ ‌ସମୟରେ‌ ‌କ୍ଷତି‌ ‌ସହିଛନ୍ତି।‌ ‌”‌

ପାଟିଲ‌ ‌ପରିବାରର‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ବଡ଼ା‌ ‌ସହରରେ‌ ‌ଗ୍ରହଣୀୟ‌ ‌ନୁହେଁ,‌ ‌ତେଣୁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ବଜାରରୁ‌ ‌ଗହମ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌କିଣନ୍ତି‌ ‌‌।‌‌ ‌ଏହା‌ ‌ହୁଏ‌  ‌ଯେତେବେଳେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ନିୟମିତ‌ ‌ଆୟ‌ ‌ଆସେ‌

ଭିଡିଓ‌ ‌ଦେଖନ୍ତୁ:‌  ‌'ମୁଁ‌ ‌ଆଜି‌ ‌ବଞ୍ଚି‌ ‌ପାରିବି,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ମୋର‌ ‌କାଲି‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌'‌

ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ଦୁଇ‌ ‌ସନ୍ତାନ‌ ‌ଅନିକେତ,‌ ‌୨୧‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସାଜନ,‌ ‌୨୬,‌ ‌କାମ‌ ‌ଖୋଜୁଛନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌“ମୋର‌ ‌ବଡ‌ ‌ପୁଅ‌ ‌ଭିୱାଣ୍ଡିରେ‌ ‌ଏକ‌ ‌କ୍ୟାମେରା‌ ‌ମରାମତି‌ ‌ଦୋକାନରେ‌ ‌କାମ‌ ‌କରୁଥିଲା,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ସେହି‌ ‌ବ୍ୟବସାୟ‌ ‌ବନ୍ଦ‌ ‌ହୋଇଯାଇଥିଲା‌ ‌(ଲକ୍‌‌ ‌ଡାଉନ୍‌‌ ‌ପୂର୍ବରୁ)‌।‌ ‌‌ସୁନୀଲ‌ ‌କୁହନ୍ତି‌ ‌ଅନିକେତ‌ ‌ସ୍ନାତକ‌ ‌ସମାପ୍ତ‌ ‌କରିଛନ୍ତି”‌ ‌।‌ ‌“ବେଳେବେଳେ,‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ଏତେ‌ ‌ଟେନସନରୁ‌ ‌ଆତ୍ମହତ୍ୟା‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ଇଚ୍ଛା‌ ‌ହୁଏ,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ତା’ପରେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଅନୁଭବ‌ ‌କରେ‌ ‌ଯେ‌ ‌ଏଥିରେ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ସମସ୍ତେ‌ ‌ଏକାଠି‌ ‌ଅଛୁ‌ ‌‌।‌ ‌ପାଖ‌ ‌ଘରର‌ ‌ବାରିକ‌ ‌ଅନେକ‌ ‌ଦିନ‌ ‌ଧରି‌ ‌କିଛି‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରିନାହାଁନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌ତେଣୁ,‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ବେଳେବେଳେ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌କିଛି‌ ‌ବିସ୍କୁଟ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମୋ‌ ‌ଦୋକାନରୁ‌ ‌[ବଳକା]‌ ‌ଡାଲି‌ ‌ଦେଇଥାଏ‌ ‌‌।‌‌ ‌”

ଭିୱାଣ୍ଡିରେ‌ ‌ପଞ୍ଜିକୃତ‌ ‌ହୋଇଥିବାରୁ‌ ‌ପାଟିଲ‌ ‌ପରିବାରର‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡ‌ ‌ବଡ଼ା‌ ‌ସହରରେ‌ ‌ଗ୍ରହଣୀୟ‌ ‌ନୁହେଁ‌ ‌‌।‌ ‌ପିଡିଏସରେ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ପିଛା‌ ‌ଗହମ‌ ‌ଟ.‌ ‌୨ରେ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ଟ.‌ ‌୩‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ପାଇ‌ ‌ପାରିଥାନ୍ତେ‌ ‌‌।‌ ‌ସୁନୀଲ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌“ଏହା‌ ‌ବଦଳରେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ବଜାରରୁ‌ ‌ଟ.‌ ‌୨୦ରେ‌ ‌ଗହମ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ଟ.‌ ‌୩୦‌ ‌ରେ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌କିଣୁଛି‌ ‌।”‌ ‌ଯେତେବେଳେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କର‌ ‌ନିୟମିତ‌ ‌ଆୟ‌ ‌ଆସେ‌ ‌ତାହା‌ ‌ହୁଏ‌ ‌‌।‌ ‌“ବର୍ତ୍ତମାନ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଦୋକାନରୁ‌ ‌କିଛି‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରିବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ସପ୍ତାହରେ‌ ‌ଥରେ‌ ‌କିଛି‌ ‌ରାସନ‌ ‌କିଣିବାକୁ‌ ‌ସକ୍ଷମ‌ ‌ହେଉଛି‌ ‌।‌ ‌ଯେଉଁଦିନ‌ ‌ଦୋକାନରେ‌ ‌କିଛି‌ ‌ବିକ୍ରି‌ ‌ନହୁଏ‌ ‌ସେହି‌ ‌ଦିନମାନଙ୍କରେ‌ ‌ଆମେ‌ ‌ଦିନରେ‌ ‌କେବଳ‌ ‌ଥରେ‌ ‌ଖାଇଥାଉ‌ ‌।’’‌ ‌ଏହା‌ ‌କହିବା‌ ‌ବେଳେ‌ ‌ସୁନୀଲଙ୍କ‌ ‌ଆଖିରେ‌ ‌ଲୁହ‌ ‌ଭରିଗଲା‌ ‌।‌

ଅନ୍ୟ‌ ‌ପରିବାରମାନେ‌ ‌ମଧ୍ୟ‌ ‌ଲକଡାଉନକୁ‌ ‌ସଜ୍ୟ‌ ‌କରିବାର‌ ‌ବ୍ୟବସ୍ଥା‌ ‌କରିଛନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ଏପ୍ରିଲ‌ ‌୧‌ ‌ତାରିଖରୁ‌ ‌ଅନୀତା‌ ‌ନିକଟସ୍ଥ‌ ‌ଏକ‌ ‌ବିଲଡିଂରେ‌ ‌ଘରୋଇ‌ ‌କାମ‌ ‌ଆରମ୍ଭ‌ ‌କରିଛନ୍ତି‌ ‌‌।‌ ‌ଯାହା‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ମାସକୁ‌ ‌୧୦୦୦‌ ‌ଟଙ୍କା‌ ‌ଦେଉଛି‌ ‌।‌ ‌ସେ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌"ଯଦି‌ ‌ମୁଁ‌ ‌କାମ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ବାହାରକୁ‌ ‌ନ‌ ‌ଯିବି,‌ ‌ତେବେ‌ ‌ଆମକୁ‌ ‌ଖାଇବାକୁ‌ ‌ଖାଦ୍ୟ‌ ‌ମିଳିବ‌ ‌ନାହିଁ।‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ପୁରୁଣା‌ ‌ଚିରା‌ ‌କପଡ଼ାରୁ‌ ‌ଏକ‌ ‌ମାସ୍କ‌ ‌ସିଲେଇ‌ ‌କରିଛି।‌ ‌ମୁଁ‌ ‌କାମକୁ‌ ‌ଯିବାବେଳେ‌ ‌ଏହାକୁ‌ ‌ପିନ୍ଧିଥାଏ।‌ ‌”‌

ଉଭୟ‌ ‌ଅନୀତା‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ସମିତାଙ୍କ‌ ‌ପରିବାର‌ ‌ଏପ୍ରିଲ୍‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମେ‌ ‌ମାସରେ‌ ‌ପ୍ରଧାନ‌ ‌ମନ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ଜନ‌ ‌ଧନ‌ ‌ଯୋଜନା‌ ‌ଅଧୀନରେ‌ ‌ଟ.‌ ‌୫୦୦‌ ‌ପାଇଛନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ମେ‌ ‌ମାସରେ‌ ‌(କିନ୍ତୁ‌ ‌ଏପ୍ରିଲରେ‌ ‌ନୁହେଁ)‌ ‌ଉଭୟେ‌ ‌ନିଜ‌ ‌ରାସନ‌ ‌କାର୍ଡରେ‌ ‌୫‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ବ୍ୟତୀତ‌ ‌ମୁଣ୍ଡ‌ ‌ପିଛା‌ ‌ଅଧିକ‌ ‌୫‌ ‌କିଲୋ‌ ‌ଲେଖାଏଁ‌ ‌ଚାଉଳ‌ ‌ମାଗଣାରେ‌ ‌ପାଇଥିଲେ‌ ‌‌।‌ ‌ସମିତା‌ ‌ଯେତେବେଳେ‌ ‌ବି‌ ‌ସମ୍ଭବ‌ ‌ଅଳ୍ପ‌ ‌କିଛି‌ ‌ପୋଷାକ‌ ‌ଇସ୍ତ୍ରୀ‌ ‌ଜାରି‌ ‌ରଖିଛନ୍ତି‌ ‌।‌ ‌ସମିତା‌ ‌କୁହନ୍ତି‌ ‌“ଯଦିଓ‌ ‌ଏହି‌ ‌ଲକଡାଉନରେ‌ ‌କେହି‌ ‌ସାର୍ଟ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ପ୍ୟାଣ୍ଟ‌ ‌ପିନ୍ଧନ୍ତି‌ ‌ନାହିଁ,‌ ‌ତଥାପି‌ ‌ଯଦି‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ଅର୍ଡର‌ ‌ପାଏ‌ ‌ତେବେ‌ ‌ମୁଁ‌ ‌ବାହାରକୁ‌ ‌ଯାଏ‌ ‌‌।‌ ‌ମୋ‌ ‌ପୁଅମାନେ‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ଘରୁ‌ ‌ବାହାରକୁ‌ ‌ନଯିବାକୁ‌ ‌କୁହନ୍ତି,‌ ‌କିନ୍ତୁ‌ ‌ସେମାନେ‌ ‌ବୁଝନ୍ତି‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌ଯେ‌ ‌ଅନ୍ୟ‌ ‌ଉପାୟ‌ ‌ନାହିଁ‌ ‌‌।‌ ‌କୌଣସି‌ ‌ପ୍ରକାରେ,‌ ‌ମୋତେ‌ ‌ସେମାନଙ୍କ‌ ‌ପାଇଁ‌ ‌ଅର୍ଥ‌ ‌ରୋଜଗାର‌ ‌କରିବାକୁ‌ ‌ପଡିବ‌ ‌‌।‌’’‌

ପୋଷାକ‌ ‌ସଂଗ୍ରହ‌ ‌ଏବଂ‌ ‌ବିତରଣ‌ ‌କରିବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ଘରକୁ‌ ‌ଫେରିବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ସେ‌ ‌–‌ ‌ତାଙ୍କ‌ ‌ପୁଅ‌ ‌ୟୁଟ୍ୟୁବ୍‌ରେ‌ ‌‘କିପରି’‌ ‌ଭିଡିଓ‌ ‌ଦେଖିବା‌ ‌ପରେ‌ ‌ତାଙ୍କୁ‌ ‌ଶିଖାଇଥିବା‌ ‌ଅନୁଯାୟୀ-‌ ‌ସାବୁନରେ‌ ‌ହାତ‌ ‌ଧୁଅନ୍ତି‌

ଅନୁବାଦ:‌ ‌ଓଡ଼ିଶାଲାଇଭ୍‍‌

Shraddha Agarwal

Shraddha Agarwal is a Reporter and Content Editor at the People’s Archive of Rural India.

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