“हमनी काम छोड़ दीं, त सगरे देस दुखी हो जाई.”

बाबू लाल के ई बात, अगला लाइन सुनके समझ में आइल, “किसी को भी क्रिकेट खेलने को नहीं मिलेगा (केहू क्रिकेट ना खेल पाई).”

बल्लाबाज आउर गेंदबाज के चहेता, जेकरा से ऊ लोग डेरइबो करेला, लाल आउर उज्जर आउर लाखन दर्शक के जिज्ञासा के केंद्र, क्रिकेट के गेंद चमड़ा से बनल रहेला. इहो जान लीहीं कि चमड़ा उत्तर प्रदेश के मेरठ में एगो बस्ती में लागल चमड़ा कारखाना से आवेला. शहर के ई एकलौता जगह बा, जहंवा चमड़ा मजूर लोग क्रिकेट गेंद बनावे में इस्तेमाल होखे वाला कच्चा माल तइयार करेला. कच्चा माल खातिर ऊ लोग ‘एलम-टैनिंग’ (फिटकरी से चर्मशोधन) के मदद लेवेला. इहंवा चर्मशोधन यानी, जानवर के खाल से बरियार (मजबूत) चमड़ा बनावे के काम. ‘टैनिंग’ के मदद से कच्चा खाल से मुलायम आउर टिकाऊ चमड़ा तइयार कइल जाला.

“एगो फिटकिरिए अइसन चीज बा जेकरा से टैनिंग (चर्म शोधन) कइल जाव, त चमड़ा के पोर पोर तक रंग आसानी से पहुंच जाई,” बाबू लाल कहले. केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान के साठ के दशक में कइल गइल एगो शोध भी उनकर एह बात के पुष्टि करेला. शोध के हिसाब से फिटकरी से टैनिंग कइला से गेंद पर गेंदबाज के हाथ के पसीना लागे, चाहे गेंद के थूक लगा के चमकइला से कवनो खराबी ना आवे, आउर गेंदबाज के, मैच सत्यानाश करे से भी रोकेला.

बाबूलाल, शोभापुर में चमड़ा के आपन कारखाना में एगो प्लास्टिक के कुरसी पर बइठल बानी. चूना के सफेदी से जमीन चमकत बा. 62 बरिस के चमड़ा मजूर के कहनाम बा, “हमनी के पुरखा लोग, कमो ना त, 200 बरिस से इहे काम कर रहल बा.

Left: Bharat Bhushan standing in the godown of his workplace, Shobhapur Tanners Cooperative Society Limited .
PHOTO • Shruti Sharma
Right: In Babu Lal’s tannery where safed ka putthas have been left to dry in the sun. These are used to make the outer cover of leather cricket balls
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: भारत भूषण आपन कारखाना, शोभापुर टैनर्स कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड के गोदाम में ठाड़ बाड़े. दहिना: बाबू लाल के चमड़ा के कारखाना. इहंवा सफेद के पुट्ठा घाम (धूप) में सूख रहल बा. क्रिकेट में जवन चमड़ा के गेंद से खेलल जाला, ओकर बाहरी खोल एकरे से बनेला

बाबू लाल से हमनी के बातचीत सुनके एगो दोसर टैनर (चर्मशोधक) उहंवा अइले. भारत भूषण 13 बरिस जइसन छोट उमिर से चमड़ा के काम कर रहल बाड़े. दूनो लोग एक दूसरा के, “जय भीम!” (आंबेडकर के सलाम) कहलक.

भारत भूषण अपना खातिर एगो कुरसी लइलन आउर हमनिए लगे लगा लेलन. बाबू लाल हमनी से तनी संकोच से पूछले, “रउआ लोगनी के कुछो महक त नइखे आवत?” उनकर मतलब उहंवा रखल हौद से रहे. बात ई रहे कि उहंवा बनावल बहुते हौद में भीज रहल जानवर के खाल से तेज गंध आवत रहे. चमड़ा के काम करे वाला के समाज नीमन नजर से ना देखे. अइसन लोग के अपमान आउर भेदभाव झेले के पड़ेला. इहे सभ कहत भारत आगू कहले, “असल बात त ई बा कि कुछ लोग के नाक तनी जादे लमहर बा. ऊ लोग के एतना दूर से भी चमड़ा के महक आवेला.”

भारत भूषण के बात सुनके बाबू लाल भी कहे लगले, “पछिला 5-7 बरिस में हमनी के एह काम में बहुते कुछ झेले के पड़ल बा.” मेरठ आउर जालंधर के बड़-बड़ क्रिकेट कंपनी सभ में, पछिला 50 बरिस से, चमड़ा के बड़का हिस्सा इहे कारखाना से आवेला. एकरा बावजूद, सांप्रदायिक तनाव चलते चमड़ा कारीगर के जिनगी खतरा में बा, रोजी-रोटी चौपट हो रहल बा. ऊ इहो कहले, “अइसन मुसीबत के घड़ी में केहू संगे नइखे. हमनी के अकेले सभ कुछ संभाले के पड़त बा.”

भारत के चमड़ा उद्योग, देस के सबले पुरान निर्माण उद्योग में से बा. केंद्रीय वाणिज्य आ उद्योग मंत्रालय के काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स के हिसाब से, 2021-2022 में इहंवा 40 लाख लोग काम करत रहे. इहे ना, एह दौरान इहंवा दुनिया के 13 प्रतिशत चमड़ा के उत्पादन भइल.

शोभापुर में जेतना चमड़ा कारखाना बा, जदि ओकर बात कइल जाव, त मोटा-मोटी सभे कारखाना मालिक आउर मजूर लोग जाटव समुदाय से आवेला. एह समुदाय के उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के रूप में पहचानल जाला. भारत भूषण के अनुमान बा कि एह इलाका में 3,000 जाटव परिवार बा आउर “मोटा-मोटी 100 परिवार इहे पेशा में लागल बा.” शोभापुर, वार्ड संख्या 12 में आवेला. इहंवा के आबादी 16,931 बा आउर वार्ड के लगभग आधा परिवार अनुसूचित जाति (साल 2011 जनगणना) से बा.

मेरठ शहर के पश्चिमी छोर पर बसल शोभापुर बस्ती में चमड़ा के अइसन 8 गो कारखाना बा. एह में से एगो कारखाना बाबू लाल के बा. भारत के कहनाम बा, “हमनी इहंवा सफेद के पुट्ठा (खाल के पछिला उज्जर हिस्सा) तइयार कइल जाला. क्रिकेट के चमड़ा के गेंद के बाहरी कवर एकरे से बनेला.” खाल के एल्यूमीनिय सल्फेट यानी फिटकरी से संसाधित कइल जाला.

Left : Babu Lal at his tannery.
PHOTO • Shruti Sharma
Right: An old photograph of tannery workers at Shobhapur Tanners Cooperative Society Limited, Meerut
PHOTO • Courtesy: Bharat Bhushan

बावां: बाबू लाल आपन कारखाना में. दहिना: मेरठ के शोभापुर टैनर्स कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड में चमड़ा के काम करे वाला मजूर सभ के एगो पुरान फोटो

देस के बंटवारा भइल, त खेल के सामान बनावे के धंधा पाकिस्तान के सियालकोट से मेरठ आ गइल. बाबू लाल सामने हाईवे के दोसर ओरी इशारा करत बाड़े जहंवा 1950 के दशक में जिला के उद्योग विभाग स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के मदद खातिर एगो चर्मशोधन (टैनिंग) केंद्र खोलल गइल रहे.

भारत भूषण के कहनाम बा, “मुट्ठी भर चमड़ा मजूर लोग संगे आइल आउर 21 सदस्य वाला एगो टैनर्स कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड बनइलक. हमनी एकर उपयोग करिले आउर एकरा चलावे के खरचा मिल जुल के उठाइले. काहे कि आपन कारखाना लगावे आउर चलावे में बहुते जोखिम बा.”

*****

भारत भूषण भोरे-भोरे उठके कारखाना खातिर कच्चा माल खरीदे निकल जालन. ऑटो पकड़ के ऊ पांच किलोमीटर दूर मेरठ स्टेशन पहुंचेलन. उहंवा से हापुड़ा खातिर भोर के 5.30 बजे वाला खुर्जा जंक्शन एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ लेवेलन. ऊ बतवले, “हापुड़ में हर एतवार के चमड़ा पैंठ (कच्चा चमड़ा के हाट) लागेला. इहंवा देस के कोना-कोना से हर किसिम के खाल बिकाए खातिर आवेला. हमनी कच्चा माल उहंई से लेके आइले.”

हापुड़ जिला में लागे वाला ई इतवारी बाजार शोभापुर से मोटा-मोटी 40 किमी दूर होई. मार्च 2023 में क्वालिटी के हिसाब से गाय के खाल के भाव 500 से 1200 रुपइया रहे.

बाबू लाल बतावत बाड़े कि जानवर के चारा, सेहत आउर दोसर कइएक चीज के बिना (आधार) पर खाल के भाव तय होखेला. “राजस्थान के खाल के बात करीं, त एकरा पर जादे करके कीकर (बबूल) के कांटा के निसान होखेला. उहंई हरियाणा से आवे वाला खाल पर चिचड़ी के धब्बा रहेला. ई सभ दोयम दरजा के माल होखेला.”

साल 2022-23 में चमड़ा के लंपी रोग चलते 1.84 लाख से भी जादे जनावर के मौत भइल रहे. एहि से बाजार में बहुत जादे खाल आ गइल रहे. बाकिर भारत भूषण के हिसाब से, “हमनी अइसन माल खरीद ना सकीं. एकरा पर बड़ बड़ धब्बा रहे आउर क्रिकेट गेंद बनावे वाला खातिर ई कवनो काम के ना रहे.”

Hide of cattle infected with lumpy skin disease (left). In 2022-23, over 1.84 lakh cattle deaths were reported on account of this disease.
PHOTO • Shruti Sharma
But Bharat (right) says, 'We could not purchase them as [they had] big marks and cricket ball makers refused to use them'
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: चमड़ा के लंपी रोग से संक्रमित जनावर के खाल. दहिना: साल 2022-23 में एह रोग चलते 1.84 लाख से जादे जनावर के मौत हो गइल. भारत भूषण के हिसाब से, ‘बाकिर हमनी अइसन माल खरीद ना सकीं. एकरा पर बड़ बड़ धब्बा रहे आउर क्रिकेट गेंद बनावे वाला खातिर ई कवनो काम के ना रहे’

चमड़ा मजूरन के कहनाम बा मार्च 2017 में राज्य सरकार के अवैध बूचड़खाना बंद करे के हुकूम आवे के बाद एह उद्योग गंभीर संकट में आ गइल. हुकूम आवे के तुरंते बाद केंद्र सरकार एगो अधिसूचना जारी कइलक. एकरा बाद बूचड़खाना खातिर जनावर के पशु हाट में खरीद-फरोख्त पर भी रोक लगा देहल गइल. भारत भूषण बतावत बाड़े कि एकरे नतीजा ह, “आज बाजार पहिले के तुलना में आधो नइखे रह गइल. कबो-कबो त, एतवारो के बाजार ना लागे.”

गोरक्षक सभ के अइसन आतंक हो गइल कि लोग जनावर आउर ओकर खाल एक जगह से दोसरा जगह लावे-ले जाए में डेराए लागल. बाबू लाल कहले, “डर एतना बढ़ गइल बा कि बिल पर भी खाल लावे वाला (पंजीकृत अंतरराज्यीय ट्रांसपोर्टर) कच्चा माल ले जाए से पहिले बहुते दफा सोचेला. माहौले अइसन हो गइल बा, का कइल जाव.”

साल 2019 में ह्यूमन राइट्स वॉच के, गोरक्षा हमला पर, ‘वायलेंट काऊ प्रोटेक्शन इन इंडिया’ नाम से एगो रिपोर्ट आइल. रिपोई में बतावल गइल कि मई 2015 से लेके दिसंबर 2018 के भीतर देस के 12 राज्य में कमो ना त, 44 लोग (जे में 36 लोग मुस्लिम समुदाय से रहे) के मार देहल गइल. उहे दौरान, 20 ठो राज्य में 100 अलग-अलग वारदात में 280 लोग घायल हो गइल .

“हमार धंधा त पूरा तरह से कानूनी बा. हमनी के सभे काम रसीद पर होखेला. तबो इ लोग के दिक्त बा,” बाबू लाल कहले.

Left : Buffalo hides drying in the sun at the government tanning facility in Dungar village near Meerut.
PHOTO • Shruti Sharma
Right: Bharat near the water pits. He says, 'the government constructed amenities for all stages of tanning here'
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: मेरठ लगे के डूंगर गांव में एगो सरकारी चर्मशोधन केंद्र में भइंस के खाल घाम में सूखत बा. दहिना: पानी के हौद लगे भारत भूषण जी ठाड़ बाड़े. उनकर कहनाम बा, ‘सरकार इहंवा चमड़ा तइयार करे के सभे जरूरी सुविधा देले बा’

जनवरी 2020 में शोभापुर में चमड़ा कारीगर के एगो आउर गुगली झेले के पड़ल. ओह लोग के खिलाफ प्रदूषण के एगो जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कइल गइल. भारत भूषण बतावत बाड़े, “ऊ लोग इहो शर्त रखलक कि चमड़ा के काम हाईवे से देखाई ना देवे के चाहीं.” स्थानीय पुलिस सभे चमड़ा कारखाना के बद करे के नोटिस दे देलक, जबकि पीआईएल के हिसाब से सरकारी सहायता से एह कारखाना सभ के दोसरा जगह ले जाए के आदेश रहे.

बाबू लाल कहले, “एतने दिक्कत बा, त सरकार हमनी के सभ इंतजाम करके दे देवे. जइसे डूंगर में साल 2003-04 में टैनिंग के बेवस्था कइल गइल रहे.”

भारत भूषण के कहनाम बा, “हमनी के बस इहे चिंता लागल बा कि नगर निगम अबले नाली बनावे के काम पूरा नइखे कइले.” इलाका के बेवस्था 30 बरिस से नगर निगम देखत बा. “बरसात में, जहंवा के जमीन बराबर नइखे कइल, अइसन केतना बस्ती पानी में डूब जाला.”

*****

शोभापुर में क्रिकेट के गेंद में इस्तेमाल होखे वाला उज्जर खाल तइयार करे पर खास तवज्जो देहल जाला. इहंवा अइसन 8 गो चमड़ा कारखाना बा. एह कारखाना में मजूर लोग सबले पहिले खाल से माटी, गर्दा आउर गंदा साफ करेला. एगो खाल से चमड़ा बनावे खातिर ऊ लोग के मजूरी में 300 रुपइया मिलेला.

बाबू लाल बतइले “खाल के सफाई होखला के बाद, एकरा गुण, मोटाई के हिसाब से छांटल जाला.” मोट खाल के फिटकरी से टैन करे में 15 दिन लागेला. पातर खाल के बबूल के कस्सा से टैन कइल जाला, जेकरा में 24 दिन लाग जाला. “एक साथ बहुते खाल के टैन कइल जाला, एहि से रोज चमड़ा के गट्ठर तइयार करे के पड़ेला.”

Left: A leather-worker washes and removes dirt, dust and soil from the raw hide. Once clean and rehydrated, hides are soaked in a water pit with lime and sodium sulphide. 'The hides have to be vertically rotated, swirled, taken out and put back into the pit so that the mixture gets equally applied to all parts,' Bharat explains.
PHOTO • Shruti Sharma
Right: Tarachand, a craftsperson, pulls out a soaked hide for fleshing
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: एगो चमड़ा मजूर खाल से गरदा, माटी आउर गंदा धोके साफ करत बाड़न. साफ कइला के बाद सभे खाल के, हौद में रखल चूना आउर सोडियम सल्फाइड के घोल में डूबावल जाई. भारत भूषण कहत बाड़े, ‘खाल सभ के ऊपर ओरी उठा के घुमावल जाला आउर बाहर निकाल के दोसर बेर हौदी में डाल देहल जाला. अइसन करे से खाल के पोर पोर एह में भीज जाला.’ दहिना: ताराचंद, एगो कारीगर, घोल में फूलल खाल से बचल खुचल मांस हटावत बाड़े

Left: A rafa (iron knife) is used to remove the flesh. This process is called chillai
PHOTO • Shruti Sharma
Right: A craftsperson does the sutaai (scraping) on a puttha with a khaprail ka tikka (brick tile). After this the hides will be soaked in water pits with phitkari (alum) and salt
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: खाल पर जे फालतू मांस रह गइल बा, ओकरा के राफा (लोहा के चाकू) से हटावल जात बा. एकरा छिलाई कहल जाला. दहिना: एगो चमड़ा कारीगर पुट्ठा पर खपरैल के टिक्का से सुताई करत बाड़न. एकरा बाद खाल सभ के फिटकरी, नीमक आउर पानी के घोल में डूबा के रखल जाई

खाल सभ के चूना, सोडियम सल्फाइड आउर पानी के घोल में डूबा देहल जाला. तीन दिन बाद निकाल के जमीन पर सूखे खातिर बिछावल जाला. एकरा बाद लोहा के भोथर औजार से सभ खाल से बाल निकाले के काम कइल जाई. एकरा सुताई कहल जाला. भारत भूषण बतावत बानी, “खाल फूल जाए से रोवां सभ आराम से हट जाला.” खाल के मोटा करे खातिर फेरु से भिगावल जाला.

ताराचंद, 44 बरिस, बाबूलाल के मास्टर कारीगर हवन. ऊ राफा चाहे चाकू से खाल के भीतरी हिस्सा से बचल-खुचल मांस छील के हटावे के काम करेलन. एकरा बाद एह खाल के तीन दिन खातिर सादा पानी में भिगावल जाई, अइसन करे से एह में से चूना पूरा तरीका से हटावल जा सकेला. फेरु खाल सभ के रात भर खातिर पानी आउर हाइड्रोजन पैराक्साइड के घोल में डाल देहल जाई. बाबू लाल के कहनाम बा, “एकरा से खाल साफ (कीटाणुरहित) हो जाई आउर एकर सफेदी भी हो जाई. तनी-तनी करके एह में से गंदगी आउर महक सभ निकलत जाई.”

भरत कहले, “गेंद के कारीगर लगे जब चमड़ा पहुंचेला, त ऊ एकदम साफ होखेला.”

क्रिकेट गेंद बनावे वाला के साफ कइल गइल एगो खाल (सफेद के पुट्ठा) 1,700 रुपइया में पड़ेला. भारत खाल के भीतरी हिस्सा के देखावत कहले, “एह हिस्सा से सबसे नीमन 18 से 24 गेंद बनावल जाला. ई हिस्सा सबले बरियार होखेला. एकरा विलायती गेंद पुकारल जाला. अइसन एगो गेंद (खुदरा बाजार में) के दाम 2,500 रुपइया होखेला.”

Left : Raw hide piled up at the Shobhapur Tanners Cooperative Society Limited
PHOTO • Shruti Sharma
Right: 'These have been soaked in water pits with boric acid, phitkari [alum] and salt. Then a karigar [craftsperson] has gone into the soaking pit and stomped the putthas with his feet,' says Babu Lal
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: शोभापुर टैनर्स कोऑपरेटिव सोसायटी में कच्चा खाल के गठरी पड़ल बा. दहिना: बाबू लाल कहले, ‘इनकरा के बोरिक एसिड, फिटकरी, नीमक आउर पानी के घोल में फुलावल जाला. फेरु कारीगर हौद के लगे जाकर आपन गोड़ से पुट्ठा सभ के मलाई (रउंदे) करेला’

Left: Bharat in the Cooperative Society's tanning room.
PHOTO • Shruti Sharma
Right: 'Raw hide is made into a bag and bark liquor is poured into it to seep through the hair grains for vegetable-tanning. Bharat adds , 'only poorer quality cricket balls, less water-resistant and with a hard outer cover are made from this process'
PHOTO • Shruti Sharma

बावां: भारत भूषण कोऑपरेटिव सोसायटी के टैनिंग रूम में बाड़े. दहिना: कच्चा खाल से एगो झोला जइसन बनावल जाला आउर ओह में बबूल के कस्सा के घोल डाल देहल जाला. अइसन करे से खाल के रोवां ओह में डूब जाई. भारत भूषण के कहनाम बा, ‘एकरा से बने वाला गेंद नीमन ना होखे. ई पानी सोख लेवेला आउर एकर आकार जल्दी खराब हो जाला’

बाबू लाल कहले, “अइसन खाल के दोसर हिस्सा बहुते पातर, आउर जादे बरियार ना होखे. एहि से अइसन गेंद सस्ता होखेला. एह गेंद के खेल में जादे ओवर खातिर इस्तेमाल ना कइल जाला. आउर इनकर आकार भी बहुते जल्दी खराब हो जाए के डर रहेला.” भारत भूषण फटाफट हिसाब लगावत बाड़े, “एगो पुट्ठा से अलग अलग गुण के कुल 100 गो गेंद बनेला. जदि एगो गेंद के 150 रुपइया भाव लगावल जाव, त गेंद निर्माता के हर पुट्ठा से कमो ना त 15,000 रुपइया के कमाई हो जाला.”

भरत, बाबू लाल ओरी देखत कहले, “बाकिर एकरा से हमनी के का मिलेला?” ऊ लोग के एगो चमड़ा खातिर 150 रुपइया मिलेला. भरत इहो कहले, “कारीगर के एक हफ्ता के मेहनताना देवे आउर कच्चा माल खरीदे में हमनी के 700 रुपइया के खरचा बइठेला. क्रिकेट के गेंद खातिर चमड़ा हमनी आपन हाथ आउर गोड़ से बनाइले. बाकिर जब नाम के बात आवेला, रउआ त पता बा गेंद पर बड़ कंपनी के नाम के अलावा का लिखल रहेला? ‘एलम टैन्ड हाइड’. मालूम ना, खिलाड़ी लोग के एकर मतलब भी पता होई कि ना.”

*****

“रउआ लोग के सही में लागेला कि हाईवे से देखाई देवे आउर खराब गंध आ प्रदूषण चलते इहंवा के चमड़ा उद्योग संकट में बा?”

उत्तर प्रदेश के पश्चिम ओरी, सूरज अब ऊंख के खेत के पाछू डूबे लागल बा. चमड़ा मजूर लोग जल्दी जल्दी नहा के, घरे लउटे से पहिले कपड़ा बदलत बा.

The smell of raw hide and chemicals hangs over the tannery
PHOTO • Shruti Sharma
Workers take a quick bath and change out of their work clothes (left) before heading home
PHOTO • Shruti Sharma

चमड़ा के कारखाना में कच्चा खाल आउर केमिकल सभ के तेज गंध फइलल रहेला. घरे जाए से पहिले सभे कारीगर लोग नहा-धोवा के कपड़ा (बावां) बदल लेवेला

भारत बतवले, “हम आपन चमड़ा पर, आपन लइका के नाम के पहिल अक्षर ‘एबी’ खोदवइले बानी.” ऊ जोर लगा के कहले, “हम आपन लइका के चमड़ा के काम ना करे देहम. हमनी के अगिला पीढ़ी पढ़त-लिखत बा. ऊ लोग आगू बढ़ी, आउर चमड़ा के काम खत्म हो जाई.”

हाईवे ओरी निकलत भारत भूषण कहले, “क्रिकेट खातिर जइसे लोग पगलाएल रहेला, हमनी के चमड़ा के काम खातिर कवनो जुनून नइखे. एह से हमनी के रोजी-रोटी चलेला, बस. कवनो दोसर उपाय नइखे, एहि से इहे करे के पड़ेला.”

प्रवीण कुमार आउर भारत भूषण के, आपन बहुमूल्य समय निकाले, रिपोर्टिंग करे घरिया हर कदम पर पूरा सहायता करे खातिर, रिपोर्टर के ओरी से बहुत बहुत धन्यबाद रही. स्टोरी के मृणालिनी मुखर्जी फाउंडेशन (एमएमएफ) से मिले वाला फेलोशिप के तहत लिखल गइल बा.

अनुवाद: स्वर्ण कांता

Shruti Sharma

Shruti Sharma is a MMF-PARI fellow (2022-23). She is working towards a PhD on the social history of sports goods manufacturing in India, at the Centre for Studies in Social Sciences, Calcutta.

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Editor : Riya Behl

Riya Behl is Senior Assistant Editor at People’s Archive of Rural India (PARI). As a multimedia journalist, she writes on gender and education. Riya also works closely with students who report for PARI, and with educators to bring PARI stories into the classroom.

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Photo Editor : Binaifer Bharucha

Binaifer Bharucha is a freelance photographer based in Mumbai, and Photo Editor at the People's Archive of Rural India.

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Translator : Swarn Kanta

Swarn Kanta is a journalist, editor, tech blogger, content writer, translator, linguist and activist.

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